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2 जी घोटाला मामले की जांच कर रही अदालत को सीबीआई ने बताया कि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा एफआईपीबी (विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड) की मंजूरी देना गलत था। उन्हें 600 करोड़ रुपए तक की मंजूरी देने का अधिकार था, लेकिन उन्होंने 3500 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी।
मामले की सुनवाई के दौरान गत 22 सितम्बर को सीबीआई ने विशेष न्यायाधीश के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वर्ष 2006 में एयरसेल-मैक्सिस सौदे में 3500 करोड़ रुपए का अनुमानित निवेश होना था। एफआईपीबी के लिए चिदम्बरम ने उस समय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर 600 करोड़ रुपए के निवेश की अनुमति दी थी, जो कि गलत था। सीबीआई ने न्यायालय को बताया कि इस मंजूरी के लिए सीसीईए के पास अधिकार क्षेत्र था। इस मामले में अब अगली सुनवाई 13 अक्तूबर को की जाएगी। इससे पूर्व सीबीआई ने न्यायालय को बताया था कि पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने चेन्नै के दूरसंचार प्रवर्तक सी. शिव शंकरन को एयरसेल और दो सहायक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी मलेशिया की कंपनी मैक्सिस समूह को वर्ष 2006 में बेचने का दबाव बनाकर बाध्य किया था। मारन मलेशिया की कंपनी को सहयोग कर रहे थे। – प्रतिनिधि
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