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जब भी चीन भारत के साथ वार्ता की मेज पर आने वाला होता है, सीमा विवाद को सुलझाने की पहल पर उत्साह दिखाने की बजाय चीन की सेना सीमा पर तनाव पैदा करने लगती है। दूसरी ओर व्यापार सम्बन्ध और बातचीत भी जारी रखी जाती है। इस बार भी शुरुआत कुछ ऐसी हुई लेकिन भारत के स्पष्ट रुख और दो टूक बयानों ने चीन को अपना परम्परागत पैंतरा बदलने पर मजबूर कर दिया। लद्दाख के चुमार और देंचोक सेक्टर में घुस आए चीनी सैनिकों को लौटना पड़ा। हालांकि प्रथम दृष्ट्या इसे भारतीय पक्ष की सफलता माना जा सकता है। लेकिन चीनी कूटनीति के इस मंझे हुए दांव को समझने के लिए पड़ोसियों के साथ ड्रैगन के संबंधों पर एक दृष्टि डालनी चाहिए।
1. उत्तरी कोरिया : चीन का सबसे पक्का दोस्त है उत्तर कोरिया। इसकी दोस्ती के दम पर यहां के तानाशाह पिता-पुत्र अमरीका को हर सांस में कोसते हैं। पर चीन का दुनिया को देखने का ढंग जरा अलग है। दोनों की सीमा पर पीकदू पर्वत श्रृंखला है, जिसे उत्तरी कोरिया के ध्वज में अंकित किया गया है। पीकदू से दो नदियां येलु और तुमेन निकलकर दो दिशाओं में गई हैं। ये नदियां ही चीन और उत्तर कोरिया की विभाजन रेखा हैं। चीन का दावा पीकदू पर्वत, नदियों के जल और कुछ द्वीपों पर है। जापान के समुद्री क्षेत्र तक पहुंचने में उत्तरी कोरिया की भूमि बाधा भी चीन को खटकती है। उ. कोरिया भूमि विवादों को सुलझाने की पेशकश कर चुका है, पर चीन इच्छा नहीं दिखा रहा है।
2. रूस : सीमा विवाद के कारण मार्च 1969 में चीन और रूस युद्घ की कगार पर पहुंच गए थे। 7 माह तक सीमा पर झड़पें चलती रहीं। झेनबाओ द्वीप, आमूर और अरगुन नदियों के कुछ द्वीपों और पामीर पर्वतों पर चीन दावा जता रहा था। चीन वार्ता की मेज पर पूरे मन से तब बैठा, जब 1991 में रूस का विघटन हुआ। 2004 में उसने रूस से हीकियाजी द्वीप का 335 वर्ग किलोमीटर भाग प्राप्त कर ही लिया। आज विश्व में अमरीका के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए दोनों देश औपचारिक गठबंधन की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।
3. कजाकिस्तान : जब कजाकिस्तान सोवियत रूस का हिस्सा था, तभी से उसके कुछ क्षेत्रों पर चीन अपना दावा जता रहा था। स्वतंत्र कजाकिस्तान के साथ चीन ने सीमा विवाद सुलझाए, लेकिन साथ ही कुछ अन्य समझौते भी किए। इनमें कजाकिस्तान के सबसे बड़े तेल क्षेत्र में निवेश, कजाकिस्तान से होकर 3000 किमी. लंबी गैस पाइपलाइन और 15 वर्षीय आर्थिक सहयोग समझौता शामिल है। इस भूमि विवाद को सुलझाने के एवज में चीन ने आर्थिक और सामरिक लाभ हासिल किए। उसे पश्चिम एशिया के तेल भंडार तक पहुंचने के लिए भूमिमार्ग मिल गया, साथ ही कजाकिस्तान के रूप में रूस और उसके बीच ह्यबफर स्टेटह्ण भी तैयार हो गया।
4. किरगिस्तान : किरगिस्तान की भूमि पर भी चीन का दावा सोवियत रूस के जमाने से था। 1999 में दोनों के बीच हुए समझौते में चीन ने विवादित क्षेत्र का 30 प्रतिशत प्राप्त कर लिया। इस समझौते के कारण किरगिस्तान के राष्ट्रपति अकायेन को अपने देश में भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
5. तजाकिस्तान : तज़ाकिस्तान के भी हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन का दावा था, परंतु 1999 के समझौते में पामीर पर्वत के मात्र हजार वर्ग किलोमीटर को स्वीकार कर चीन ने सबको चौंकाया। इसका वास्तविक कारण था, चीन के सिक्यांग में बढ़ रहा मुस्लिम अलगाववाद व जिहादी आतंकी घटनाएं। चीन चाहता है कि तजाकिस्तान समेत मध्य एशियाई सरकारें इस्लामिक जिहादियों पर नियंत्रण कर उइगर अलगाववाद की रोकथाम में उसका सहयोग करें।
6. अफगानिस्तान : अफगानिस्तान के साथ चीन सीमा विवाद 1963 में सुलझ चुके हैं। अब उसकी नजर अफगानिस्तान के खनिज पर है। अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को हर हाल में सीमित करना चाहता है, जिसमें पाकिस्तान उसके साथ है। लेकिन 2014 के बाद तालिबान की वापसी को लेकर आशंकित है, क्योंकि तालिबान उइगर अलगाववादियों के समर्थक रहे हैं।
7. पाकिस्तान : चीन और पाकिस्तान ह्यहर मौसम के साथीह्ण हैं। पाकिस्तान ने चीन को भारत की अवैध रूप से हड़पी गई जमीन में से 2,239 वर्ग मील भूमि (शक्सगाम घाटी) तोहफे में दी। गिलगित, बाल्टिस्तान में खनन के अधिकार और दक्षिण में अरब सागर तक रास्ता दिया। बदले में चीन ने पाकिस्तान को सब कुछ दिया – आर्थिक सहयोग, कूटनीतिक समर्थन, सैनिक साजो-सामान, सैनिक-असैनिक तकनीक और परमाणु बम का डिज़ाइन। पाकिस्तान की मिसाइलें भी चीन की मिसाइलों की नकल हैं।
8. नेपाल : नेपाल के साथ चीन ने सारे विवाद सुलझा लिए हैं। नेपाल के लिए चीन आर्थिक सहयोग, विकास में सहायक और निवेश का स्रोत है, तो नेपाल चीन की तिब्बत समस्या के संदर्भ में भारत और चीन के बीच ह्यबफर स्टेटह्ण का काम करता है। नेपाल तिब्बती शरणार्थियों को भारत जाने का मार्ग देता है, पर अपने यहां बसने नहीं देता।
9. भूटान : भूटान भारत का सहयोगी देश है, जिसने चीन के साथ आधिकारिक संबंध स्थापित नहीं किए हैं। चीनी सैनिक भूटान की सीमाओं का उल्लंघन करते रहते हैं।
10. म्यांमार : शीतयुद्ध के दौरान दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण रहे। लेकिन 1986 में चीन ने यहां की तानाशाह सरकार को संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के विपरीत जाकर सहयोग देना प्रारंभ किया। आज दोनों की सीमाओं पर म्यांमार के सशस्त्र विद्रोहियों के चलते पूर्ण शांति नहीं है। नदी जल विवाद भी है, लेकिन दोनों के संबंध बहुत अच्छे हैं। म्यांमार में चीन की तूती बोलती है।
11. वियतनाम : ऐतिहासिक रूप से वियतनाम पर चीन का आक्रामक रूख रहा है। 1979 में चीन के हमला करने पर खूनी यु हो चुका है। वर्तमान में सीमा विवाद और व्यापार संबंध साथ-साथ चल रहे हैं।
12. मंगोलिया और लाओस : दोनों के ही साथ सीमा विवाद सुलझ चुके हैं। आज मंगोलिया चीनी प्रभाव में है।
समुद्री सीमाएं : चीन चार देशों के साथ समुद्री सीमाएं साझा करता है। पूर्वी चीन सागर में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ तथा दक्षिण चीन सागर में फिलीपीन्स व वियतनाम के साथ। दोनों सागरों के क्रमश: सवा लाख व तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेकर चीन का इन चारों देशों को लेकर गंभीर विवाद है। यह समुद्री क्षेत्र खनिज व तेल संपदा से भरपूर है, और संसार के व्यस्ततम समुद्री मागोंर् में से एक है। इस क्षेत्र में चीनी सेना की आक्रामकता से जापान सहित चारों देश बेहद आशंकित हैं। इतना ही नहीं, समुद्र में चीनी नौसेना की आक्रामक गतिविधियों से उत्पन्न चिंता की लहरें दक्षिण पूर्वी एशिया एवं आस्ट्रेलिया तक जा पहुंची हैं।
इन सारी परिस्थितियों का विश्लेषण करने से एक बात स्पष्ट होती है कि चीन सीमा विवादों और सीमा पर तनाव का उपयोग वार्ता की मेज पर दबाव बनाने और मोलभाव में करता है। एक ओर जहां वह अपने सुरक्षा सरोकारों के लिए मध्य एशियाई देशों से विवाद सुलझाने पर जोर देता है, तो वहीं दूसरी ओर चीन सागर में सैनिक तनाव को चिंताजनक स्तर तक पहुंचाने से भी नहीं चूकता। रूस जैसे मजबूत देश के कमजोर होने की प्रतीक्षा करता है, तो उत्तरी कोरिया जैसे पिछलग्गू और म्यांमार जैसे सहयोगी को भी सीमाओं को लेकर पूर्ण निश्िंचत नहीं होने देता। समझौता कुछ लेकर करने में ही उसका विश्वास है। वह स्वयं को शक्तिशाली तो दिखाता है, पर धौंसबाज कहलाने से भी बचता है। प्रस्तुति- प्रशांत बाजपेई
बहुत से लोग चीन को खतरा मानते हैं। हमारे ऊपर वर्चस्ववादी होने का आरोप लगाते हैं। मैं इस सच्चाई से अवगत हूं। लेकिन यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि चीन शांतिपूर्ण विकास के लिए वचनबद्ध है। – शी जिनपिंग, चीनी राष्ट्रपति
सीमा पर जो घटनाएं हुई हैं, मैंने उन पर अपनी चिंता व्यक्त कर दी है। सीमा पर शांति बनाए रख कर ही आर्थिक संभावनाओं की नींव मजबूत की जा सकती है। – नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
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