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जम्मू-कश्मीर में आई भयंकर बाढ़ व भूस्खलन के बाद जिन्दगी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी है। श्रीनगर सहित दक्षिण कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में लगातार जलस्तर में कमी हो रही है। इसके साथ ही आपदा में मरने वालों की संख्या 275 पहुंच गई है,जिसमें 151 अकेले जम्मू संभाग के ही शामिल हैं। सेना युद्ध स्तर पर अभी भी बाढ़ प्रभावित इलाकों में लगी हुई है। जिसका परिणाम है कि अब तक ढाई लाख लोगों को यहां से निकाला जा चुका है तथा अभी भी लगभग दो लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहंुचाया जाना बाकी है।
अब झेलम नदी और मुख्य नहर में पानी नीचे उतर गया है। पिछले दिनों इनमें पानी उफान पर रहने से श्रीनगर के कई इलाकों में भीषण बाढ़ आ गई थी। लेकिन अब जलस्तर घट रहा है।। श्रीनगर की कई कालोनियों में ओएनजीसी और दमकल विभाग के पंपों के माध्यम से लगातार पानी निकालने का काम किया जा रहा है। लेकिन इसके बाद भी कई क्षेत्र अभी भी पानी में डूबे हुए हैं। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित स्थानों पर अस्थाई रूप से रह रहे लोगों को राहत सामग्री भेजी जा रही है। बाढ़ के कारण अपने घरों को छोड़कर गए लोग अब नुकसान का जायजा लेने के लिए घरों में वापस लौट रहे हैं। कुछ हद तक लोगों ने राहत की सांस ली है और अब एक-दूसरे का हालचाल लेते हुए देखा जा सकता है। साठ वर्ष बाद जम्मू-कश्मीर में ऐसी तबाही देखने को मिली है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने बाढ़ में लापता हुए लोगों का पता लगाने के लिए 24 घंटे काम करने वाला एक हेल्पलाइन केंद्र स्थापित किया है। यह केंद्र जम्मू के रेल हेड काम्प्लेक्स में संभागीय आयुक्त के कार्यालय परिसर में स्थापित किया गया है। इस संपर्क केंद्र का मुख्य उद्देश्य उन लोगों का पता लगाना है, जो बाढ़ में लापता हुए हैं। हेल्पलाईन के तहत इन नम्बरों को शुरू किया गया है-18001807049, 18001807050, 0191-2471522 तथा 0191-2471922
जम्मू-कश्मीर में हुए जानमाल के नुकसान का सही आंकड़ा तो तभी साफ हो पायेगा जब जम्मू-कश्मीर में पानी पूरी तरह कम हो जायेगा। एसोशिऐट चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया ने जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ से 5700 करोड़ रुपये नुकसान होने का अनुमान लगाया है। उनके अनुसार राज्य के होटल, ट्रेड, कृषि तथा बुनियादी ढांचे को ही अकेले 2630 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है। हालांकि यह शुरुआती अनुमान है, क्योंकि जब तक जम्मू-कश्मीर के सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से पानी का स्तर कम नहीं होता है तब तक अनुमान लगा पाना मुश्किल है। ऐसा माना जा रहा है कि इस प्राकृतिक आपदा से जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई होने में वर्षों लग जाएंगे।
जम्मू संभाग- इस तबाही ने जम्मू संभाग में भी काफी तांडव मचाया है, जिसके चलते 151 जानंे चली गई हैं। जम्मू में 100 गांव, डोडा में 20 घर, कठुआ व साम्बा में 200 घर, राजौरी में 200 घर, पुंछ में 200 घर, उधमपुर रियासी में 300 घरों को भारी नुकसान पहुंचा है। इसके साथ ही फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं। कृषि योग्य भूमि पर 6-7 फीट सिलक (घारा) जमा हो जाने से आने वाले कई वषोंर् तक इस जमीन पर खेती नहीं हो पायेगी।
वहीं राज्य का आगामी पर्यटन सीजन लगभग बर्बाद हो चुका है। सितंबर-नवंबर में देसी-विदेशी पर्यटक जम्मू-कश्मीर आते हैं, लेकिन पंद्रह अक्तूबर तक हुई सभी बुकिंग रद्द हो चुकी हैं। देश-विदेश के पर्यटकों में इस बाढ़ से जो खौफ पैदा हुआ है, उसको दूर करने के लिए वषोंर् प्रयास करने पड़ेंगे।
लगातार 13 दिन तक बंद रहे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को यातायात के लिए खोल दिया गया है, जिससे बाढ़ प्रभावित कश्मीर घाटी में राहत के लिए किए जा रहे प्रयासों में तेजी आएगी। इस महत्वपूर्ण कार्य को सीमा सड़क संगठन और सेना के इंजीनियरों ने दिन-रात एक कर किया है। सेना के सतत् प्रयासों के बाद जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को खोला जा सका है। रामबन जिले में 2 और 3 सितंबर की मध्य रात्रि को भूस्खलन की कई घटनाएं हुईं और अचानक बाढ़ आ गई जिससे इस राजमार्ग का 5 किमी. हिस्सा पानी में बह गया और कई जगह पर सड़क जलमग्न हो गइंर्। राजमार्ग को सिर्फ हल्के मोटर वाहनों के लिए ही अभी खोला गया है।
बाढ़ के पानी में डूबी घाटी में सेना सबसे बड़ी मददगार साबित हुई है। आम आदमी तक मदद पहुंचाने वाली सेना खुद भी बाढ़ से अछूती नहीं रही। राहत व बचाव कार्य को संभाल रही सेना की 15 कोर के मुख्यालय, सेना के रिहायशी इलाके व ट्रांजिट कैंप में अभी भी कई फुट पानी भरा है। कई इलाकों में जानवरों की लाशें पानी में तैर रही हैं। सेना ने बचाव व राहत अभियान में अब तक ढाई लाख लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है और अभी भी बचाव अभियान पूरे जोरों से जारी है। चिकित्सा जरूरतों के लिए सेना के अस्पताल आम आदमी का सबसे बड़ा सहारा बने हुए हैं। 600 बिस्तर वाले 92 बेस अस्पताल को नागरिक इस्तेमाल के लिए खोला गया है। मेडिकल कोर की 80 टीमें चिकित्सा सहायता के लिए दिन-रात लगी हुई हैं। सेना द्वारा कई स्थानों पर अस्थायी चिकित्सा शिविरों को चलाने के साथ ही बटालियन स्तर पर भी चिकित्सा सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है।
सामने आए अलगाववादी- सेना के हाथों आपदा में जान बची देखने के बाद अलगाववादियों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। जहां एक तरफ सेना व केन्द्र सरकार की देश ही नहीं बल्कि दुनिया में प्रशंसा हो रही है वहीं इसको झुठलाने के लिए अलगाववादियों ने मोर्चा संभालना शुरू कर दिया है। लोगों को बरगलाने के आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता यासिन मलिक ने सेना व केन्द्र सरकार की मदद न लेने का आह्वान किया है। इसके लिए बाकायदा पोस्टर छपवाया गया है जिस पर लिखा गया है- कि सेना व केन्द्र सरकार की मदद नहीं चाहिए, सेना के हेलीकाप्टर को वापस जाने के लिए कहा गया है। कुछ शरारती तत्वों ने सेना के हेलीकाप्टरों पर पथराव करने के साथ ही कुछ नौकाओं को भी नुकसान पहंुचाया है। वैसे कश्मीर की जनता इन अलगाववादियों के इस हथकंडे में न फंसकर सेना व केन्द्र सरकार की सराहना कर रही है। स्थानीय जनता में राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के प्रति हर जगह रोष देखने को मिल रहा है। लोगों का राज्य सरकार से पूरी तरह विश्वास उठ गया है।
संघ ने राहत कार्यों का संभाला मोर्चा- रा.स्व.संघ जम्मू-कश्मीर ने इस दु:ख की घड़ी में प्रभावितों को सहयोग व राहत देने के लिए मोर्चा संभाल लिया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, सेवा भारती, भारतीय शिक्षा समिति, संस्कार भारती, राष्ट्र सेविका समिति, महिला समन्वय, सहकार भारती, मजदूर संघ सहित अनेक अनुषांगिक संगठनों ने प्रभावितों के बीच सेवा व राहत कार्य शुरू किया हुआ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने साम्बा जिले के 50 परिवारों में राहत साम्रगी बांटी है और अन्य परिवारों तक पहुंचाने का क्रम जारी है। जम्मू जिले में राहत सामग्री बांटने के साथ ही मेडिकल शिविर लगाए गए हैं। उधमपुर के पंचौरी क्षेत्र में सदल गांव को संघ ने गोद लिया है जिसमें राहत के तौर पर राशन, कंबल, तिरपाल व दवाइयां बांटी गई। उधमपुर व रियासी में लगभग 100 घरों तक राहत सामग्री पहुंचाई गई है और यह क्रम लगातार जारी है। राजौरी व पुंछ में भी संघ के कार्यकर्ताओं ने बचाव कार्य में सहयोग करते हुए राहत सामग्री बांटी। सेवा भारती जम्मू-कश्मीर द्वारा इस दौरान बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर पीडि़तों के लिए लंगर लगाए गए हैं। एकल विद्यालय के कार्यकर्ताओं के माध्यम से कश्मीर घाटी कुछ भागों में राहत व बचाव का कार्य किया गया। डाक्टरों की टीम वहां भेजी गईं व लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाई गई। शिक्षा समिति द्वारा रामबन में उन लोगों के लिए लंगर लगाए गए जो कश्मीर से पैदल चल कर रामबन पहुंच रहे थे या फिर रास्ता बंद होने के कारण मार्ग में फंसे हुए थे। रामबन पहुंचने वालों को स्कूल की गाड़ी से उधमपुर रेलवे स्टेशन पहुंचाया गया। उधमपुर रेलवे स्टेशन पर शिक्षा समिति के स्कूलों के माध्यम से लंगर लगाए गए हैं।
तवी नदी के किनारे बना सुप्रसिद्घ हरकी पौड़़ी मंदिर बाढ़ के दौरान काफी हद तक पानी में डूब गया था। मंदिर के अंदर 7-8 फुट तक मिट्टी व घारा जमा हो गया जिसे स्वयंसेवक कड़ी मेहनत के साथ साफ करने में जुटे हुए हैं। संघ ने जम्मू-कश्मीर सहायता समिति के माध्यम से प्रभावितों को राहत पहुंचाने का निर्णय लिया है और जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश से अपील की है कि जम्मू-कश्मीर सहायता समिति के खाता नम्बर 10167775167 (आईएफएसएन-एसबीआईएन 0002374) में जिसमें 80 जी की सुविधा उपलब्ध है, सहयोग राशि भेजी जाए ताकि प्रभावितों का पूर्ण सहयोग किया जा सके।ल्ल
जम्मू संभाग के कर्मचारी बन रहे बलि का बकरा
घाटी में बाढ़ की त्रासदी में राज्य सरकार का ढांचा किस प्रकार चरमरा गया है यह किसी से छुपा नहीं है। राज्य के सचिवालय व अन्य कार्यालयों के कर्मचारी जैसे- तैसे अपनी जान बचाकर श्रीनगर से निकलकर अपने परिजनों तक पहुंचे हैं। इन कर्मचारियों को सरकार की ओर से लेशमात्र भी सहायता नहीं मिली। अपने-अपने होटलों में चार-पांच दिनों तक बिना भोजन-पानी के रहकर किसी प्रकार पैदल चलकर यह कर्मचारी मौत के मुंह से निकलने में सफल हुए हैं। कई कर्मचारियों को प्राइवेट किश्ती वालों को हजारों रुपए देने पड़े तब जाकर हवाई अड्डे तक पहुंचे। संचार व्यवस्था ठप होने के कारण घर से सम्पर्क न होने से इनके परिजनों पर जो बीता, वह बताने की आवश्यकता नहीं हैं। किन्तु दु:ख का विषय है कि अब राज्य सरकार का अपने कश्मीर संभाग के कर्मचारियों पर कोई बस नहीं है तो वह अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए जम्मू संभाग के कर्मचारियों को वापस बुलाने का निर्देश दे रही है। बड़ी विडंबना यह है कि सरकार पर जब-जब मुसीबत आती है तब जम्मू के लोगों को ही बलि का बकरा बनाया जाता है।
जब आतंकवाद 90 के दशक में अपनी चरम सीमा पर था तो जम्मू नगर के इन्हीं कर्मचारियों ने राष्ट्रहित की खातिर सरकार को चलाए रखा। दरबार मूव में जहां कश्मीर संभाग के लोगों की संख्या 90 प्रतिशत है, वह न तो उस समय सरकार को सहयेाग दे रहे थे और न अब। राज्यपाल के शासन में भी जब-जब चुनाव हुए तो कश्मीर के कर्मचारियों ने बहिष्कार किया। उस समय भी केवल जम्मू के कर्मचारियों को दनदनाती गोलियों के बीच इस जोखिम भरे कार्य पर लगाया गया। जम्मू की जनता विशेषकर सरकारी कर्मचारी कभी भी राष्ट्रीय आपदा से जूझने में पीछे नहीं हटे। परन्तु सरकार को भी इन लोगों की सुरक्षा व सुख सुविधा को सुनिश्चित करना चाहिए। अब जब कि श्रीनगर में इन कर्मचारियों को ठहराने व खाने-पीने का ढांचा नष्ट हो चुका है तो इन हालात में इनको वापस बुलाना मानवता के साथ एक खिलवाड़ नहीं तो और क्या हो सकता है। सरकार आम जनता को तो क्या अपने कर्मचारियों तक को बचाने में असफल रही। सेना की मदद से जान बचाकर जम्मू पहुंचे इन कर्मचारियों को सरकार केवल इसलिए वापस बुला रही है ताकि अपनी मौजूदगी दिखा सके। -बलवान सिंह
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