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हटा यवनिका बुद्घि पटल से़..कर शुद्घ विचार
राष्ट्र चेतना अभिव्यंजित़.राष्ट्रभाषा ही सार
अवगुंठित प्रेरणा समायोजऩ.शब्द हैं विशाल
गर्वानुभूति अधिष्ठ मेरी हिन्दी़.मेरा भाल
परा भी तू, मध्यमा भी तू,पश्यन्ता भी तू
तू ही बैखरी, अभिधा, लक्षणा, अभिव्यंजना
शब्द शब्द से वाणी बनती मुखरित व्यापक तू
लिपिबद्घ करूं कैसे़ ज़ननी संस्कृत रंजना
वन्दे निज भाषा़. वन्दे भारत प्रतिष्ठा गान
वन्दे निज संसृति वन्दे साहित्य़.वन्दे ज्ञान
मातृभाषा राष्ट्रभाषा गर्व़.तुझपर अभिमान
उन्नत भारत देश़.है उन्नत हिन्दी की शान
हे वागेश्वरी
अक्षर अक्षर का मिलन विन्दु सुन्दर शब्द विन्यास
अक्षर नही क्षर और न क्षर है सृष्टिज इतिहास
शब्द शब्द की महिमा अति देती बुद्घि ज्ञान प्रकाश
शब्द प्रथम उपजे फिर उपजा समस्त जग विकास
प्रथम शब्द नाद प्रणव त्रिलोक, त्रिदेव का प्रतीत
प्रथम शब्द से ही पाया सप्त सुरों का ज्ञान रचित
तीन वेदों को फिर रचा गया था मिला शब्द उचित
नमन प्रथम मेरा विद्या ज्ञान शब्द को यथोचित
भक्ति लषित भाव निष्पादित परा वाणी संयमित
बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ता,से परा तक हो नियमित
नाभि के ब्रह्म नाद से उद्दित भावांजलि है रचित
हे वागेश्वरी ! वागर्थ हेतु सदा आर्जव स्रवित।
-सुरेश चौधरी
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