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अंक संदर्भ : 17 अगस्त, 2014
आवरण कथा 'बढ़ने की बेचैनी' से प्रतीत होता है कि देश पुन: एक बार आगे बढ़ने के लिए बेचैन है। दस वर्ष में कांग्रेस के शासनकाल में देश की जो दशा हुई वह समस्त देशवासियों को अवगत है। देश ने श्री नरेन्द्र मोदी को विजयी बनाकर संदेश दिया है कि वह अब विकास चाहता है। स्वाधीनता दिवस पर पाञ्चजन्य का विशेषांक अभिनन्दनीय रहा। पाञ्चजन्य ने 67 वर्ष की भारत की स्वाधीन लोकतांत्रिक यात्रा का बड़ी ही अच्छी तरह से विश्लेषण किया है। इसके लिए समस्त पाञ्चजन्य परिवार को धन्यवाद।
—डॉ.राम बाबू गुप्ता, छोटी बाजार,लोहता,वाराणसी(उ.प्र.)
० पाञ्चजन्य के स्वतंत्रता विशेषांक ने समस्त राष्ट्रीय परिदृश्य को समेटते हुए प्रत्येक क्षेत्र पर बिन्दुवार नजर डाली है। नजर डालने पर एक बात स्पष्ट होती है कि भाजपा की सरकार आने के बाद से देश एक नई दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसका उदाहरण पड़ोसी देशों के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का प्रेम है, जो दर्शाता है कि वह अपने सभी पड़ोसी देशों को साथ लेकर एशिया में एक नई शक्ति का गठन कर रहे हैं।
—हरिहर सिंह चौहान, जंबरीबाग-नसिया,(म.प्र.)
० मृणाल पांडे का सिंहावलोकन 'सुनहु तात यह अकथ कहानी' में भारत की समस्याओं का पूर्ण विश्लेषण किया गया है। उत्तर भारत के लोगों के अंग्रेजी प्रेम पर फटकार तीखी और उचित है। कुछ स्थान पर लेख में सेकुलर मानसिकता स्पष्ट रूप से झलकती है।
—ओमप्रकाश अग्रवाल, रोहतक(हरियाणा)
० देश को स्वतंत्र हुए 67 वर्ष बीत गए पर एक बात है, जो दिन-प्रतिदिन कचोटती है वह है-भ्रष्टाचार। आज हम किसी भी क्षेत्र पर नजर डालंे तो वहां भ्रष्टाचार का बोलवाला है। बिना पैसों के लेनदेन किए कोई भी काम नहीं होता। जिसके पास पैसा है, वह तो घूस देकर अपने काम को करा लेता है पर जिसके पास नहीं है उसका काम नहीं होता है। आज देश में भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह फैल चुका है। जरूरत है कि इस पर तत्काल प्रभाव से लगाम लगाई जाए।
—श्रीराम वर्मा, त्रिनगर(दिल्ली)
० महंगाई,हत्या,लूट,अपहरण,बलात्कार से निजात पाने के लिए भारत की जनता ने विकल्प के तौर पर श्री नरेन्द्र मोदी को चुना है। भाजपा की अप्रत्याशित विजय के पीछे वषोंर् से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी शक्ति कार्य कर रही थी जिसने देश की जनता को जागृत करने का कार्य किया। देश को आजाद हुए 67 वर्ष बीत गए पर अभी भी हम कई क्षेत्रों में बहुत ही पीछे हैं। अनेक पार्टियों के शासनकाल में देश को बनाने के बजाए उसे लूटने पर ज्यादा ध्यान दिया गया। इसी कारण हम बढ़ने के बजाए पिछड़ते चले गए। इसके लिए कांग्रेस का दस साल का शासनकाल देश के लिए उदाहरण है। आज जनता ने श्री नरेन्द्र मोदी पर विश्वास इसलिए जताया है कि वह देश के प्रत्येक कमजोर क्षेत्र को समृद्ध बनाएं।
— डॉ अशोक सिंह तोमर, सहरसा(बिहार)
हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं
आज के समय देखने में आया है कि अब न्यायालयों में भी राजनीतिज्ञों ने दबाव बनाना प्रारम्भ कर दिया है। नेता अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए न्यायालयों और न्यायाधीशों पर दबाव बनाते हैं। जबकि जनसामान्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता व निष्पक्षता का पक्षधर है और वह न्याय क्षेत्र में किसी भी तरह का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप नहीं चाहता है। राज्य व केन्द्र सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की कोई भी शिकायत आती है तो तत्काल इस पर संज्ञान लिया जाए क्योंकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता सभी के लिए हितकारी है।
-बी.जे.अग्रवाल, लक्ष्मीनिवास,नागपुर(महा.)
आस्था पर होता कुठाराघत
आज सनातन धर्म के लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने के लिए विरोधी नानाप्रकार के जतन कर रहे हैं। आम जनता को बहलाने के लिए वे सनातन धर्म की व्यवस्था को आड़े हाथ लेते हैं और फिर उसका उपहास उड़ाते हैं। सभी को चाहिए कि वे ऐसे लोगों से सचेत रहें।
— अर्चना दलवी, इन्दौर(म.प्र.)
आस्था का केन्द्र
हमारे शास्त्रों में गंगा,सरस्वती,कृष्णा जैसी नदियों का वर्णन किया गया है। ये सभी नदियां हमारे लिए आस्था का केन्द्र हैं। आज देश में बढ़ते प्रदूषण ने देश की अनेक नदियों को लगभग समाप्त ही कर दिया है। आज कई प्रमुख नदियां नाला बन गईं हैं या फिर लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं। इसमंे सबसे बड़ा दोष मानव का है, जिसने अपने लालच के लिए उनका अथाह दोहन किया और अपने लालच को पूरा करने के लिए उनका काल बनने से भी नहीं चूका। आज जरूरत है कि देश की समस्त जीवनदायिनी नदियों को पुन: उनका स्वरूप दिलाया जाए,इसके लिए राज्य से लेकर केन्द्र तक प्रत्येक स्तर पर प्रयास होने चाहिए। क्योंकि नदियां किसी व्यक्ति विशेष को लाभ नहीं देतीं बल्कि उनके लिए समस्त जन एक जैसे ही हैं।
—सुधीर कुमार, पंसारी बाजार,जगाधरी(हरियाणा)
खेल लुप्त होने की कगार पर
आज क्रिकेट खेल न रहकर फिक्सिंग का अड्डा बन गया है। क्रिकेट के नाम पर अब तक अन्य खेलों के साथ क्या हुआ। आज देश के सामने है। अन्य खेल लुप्त होने की स्थिति में हैं। सवा अरब की जनसंख्या वाला देश ओलम्पिक में औंधे मुंह गिरता है। आखिर क्या कारण है? क्या कभी किसी ने इसके पीछे जाने की कोशिश की ? देश की जनता को जानना चाहिए राज्यों में अनेकों प्रकार के खेल खेले जाते हैें लेकिन सुविधाओं के अभाव में उन प्रतिभाओं के पंख कट जाते हैं और वह उसी क्षेत्र तक सीमित होकर समाप्त हो जाते हैं। राज्य और केन्द्र मिलकर अपने-अपने राज्यों में होने वाले खेलों को प्रोत्साहित करें ताकि देश का गौरव बढ़ सके और प्रतिभाओं को उनका मंच और हक मिले।
-डॉ. प्रणव कुमार बनर्जी, पेंड्रा-बिलासपुर (छ.ग.)
बंद हो कुप्रथा
आज हम 21वीं सदी में आ चुके हैं फिर भी देश के कई राज्यों में सिर पर मैला ढोया जा रहा है। यह हमारे देश और समाज के लिए शर्म की बात है। इस प्रकार के कार्य पर तत्काल विराम लगाया जाना चाहिए।
कृष्ण मोहन गोयल,अमरोहा(उ.प्र.)
कागजों में शिक्षा
सरकारी आंकड़ों में शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर भ्रष्टाचार का दीमक लगने की घटना को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता और इसी कारण शिक्षा के गिरते स्वरूप के लिए हम और हमारी सरकारें जिम्मेदार हैं। प्राथमिक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी की जाती हैं पर धरातल पर क्रियान्वयन नगण्य ही है। 'प्राथमिक विद्यालयों में डगमगाता देश का भविष्य' समाचार प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलता है और बताता है कि जो भी कार्य इस दिशा में किए जाते हैं वे सिर्फ कागजों पर ही होते हैं। असल में स्थिति कुछ और ही है। आज सरकार को इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाना होगा क्योंकि इन प्राथमिक विद्यालयों से ही हमारे देश को चमकाने वाले सितारे निकलते हैं।
—पंकज शुक्ला, 29 दरा,लखनऊ (उ.प्र.)
प्रधानमंत्री की पहल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे तब भी उनका कार्य और विचार समरस समभाव वाला ही था और वे शुरू से इसी रास्ते पर चले हैं। वहीं जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में एक तरीके से लगभग निष्क्रिय पड़े संगठन 'सार्क' के राष्ट्राध्यक्षों को सम्मान सहित बुलाकार अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रता की पहल की। देश के सभी सेकुलर दलों को उस समय मुंह छिपाने की जगह नहीं मिली जब नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की यात्रा करके भारत और नेपाल के पौराणिक संबंधों को फिर से एक प्रकार से जीवित कर दिया। सच यह है कि 17 साल में अब तक कोई भी प्रधानमंत्री अपने पड़ोसी देश नेपाल नहीं गया,सवाल है क्यों? प्रधानमंत्री की अपने पड़ोसी देशों के प्रति जो सद्भावना है। वह मित्रता का भाव है, उससे आने वाले दिनों में अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
— उमेदुलाल, ग्राम पटूड़ी,जिला-टिहरी गढ़वाल(उत्तराखंड)
जागरूक करता पाञ्चजन्य
आज शंखनाद करते हुए पाञ्चजन्य समाज और राष्ट्र को जागरूक व प्रेरित कर रहा है। जहां अनेकों पत्र-पत्रिकाएं समय के थपेड़ों में या तो लुप्त हो गईं या अपने पथ से विमुख हो गईं,ऐसे समय में भी पाञ्चजन्य अनेकों झंझावातों को सहकर,अग्नि में तपकर आज कुन्दन बन गया है।
– विनय कश्यप, गीता कालोनी(दिल्ली)
जनहित का विषय
हाल ही में भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि देश के प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति का बैंक में खाता अवश्य खुलेगा। निर्णय तो अच्छा है,पर बैंकों की हालत खस्ता है इस भार को सहन नहीं कर पाएंगे। बैंकों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह उनके लिए एक नई समस्या होगी। देश की 60 फीसद से ज्यादा जनता बैंक के घुमावदार दावांे से परिचित नहीं है। जिससे उनके लिए यह और समस्या बन जायेगी। सरकार को चाहिए कि इस योजना से पहले बैंकों में कर्मचारियों की अधिक से अधिक भर्ती करें ताकि बैंकों में आसानी से कार्य हो।
-राम पाण्डे, शिवगढ़,रायबरेली(उ.प्र.)
अपनी करनी का फल भुगतते मुसलमान पिछलेकई वर्षों में कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों में खासकर मुसलमानों को खैरातबांटकर अपना वोट बैंक बनाने की पूरी कोशिश की है। सच यह है कि कांगे्रससहित तमाम राजनीतिक पार्टियां सदैव से ही मुसलमानों को अपने राजनीतिक फायदेके लिए प्रयोग करती आई हैं। मुसलमानों का आरोप सदैव यह रहता है कि उन्हेंइस देश में दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा है और आज भी समझा जा रहाहै। तो मेरा उनको जवाब है कि मुसलमान स्वयंं इसके जिम्मेदार हैं क्योंकिजैसे ही उनको कोई राजनीतिक पार्टी थोड़ा सा भी लालच दे देती है तो वह उसकीजय-जयकार करने लगते हैं उन्हें यह पता नहीं रहता कि इस जय-जयकार में उनकाहित है या नहीं,या उनकी इस जय-जयकार में देश का हित है या नहीें? वे बिनासोचे-समझे थोड़े से लालच में अपना जमीर तक बेचने को तैयार हो जाते हैं। अबऐसी परिस्थिति में कैसे उनका भला होगा और वे कैसे देश का भला करेंगे,यहसोचने वाली बात है। सवाल है कि आजादी के बाद से मुसलमानों को उनके विकास केलिए अथाह सहायता दी गई पर इसके बाद भी एक बड़ा तबका अशिक्षित और विकास केअभाव में जीवनयापन कर रहा है,आखिर क्यों? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? आजजरूरत है कि मुसलमान देश की मुख्यधारा से जुड़े और स्वयं शिक्षित होकर देशके विकास और उन्नति में सहायक बनें। साथ ही मुसलमानों को देश के प्रति पहलेआत्मीयता लानी होगी,उन्हें समझना होगा कि देश मेरा है और मैं इसका पुत्रहूं्र,जिस दिन वे देश को यह समझा देंगे,उस दिन स्वत: उनका कायाकल्प होजायेगा। |
सकल प्रशासन दंग मोदी की गति देखकर, सकल प्रशासन दंग -प्रशांत |
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