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शिक्षा बचाओ आंदोलन और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के जरिए पाठ्य पुस्तकों के तथ्यहीन बातों को हटवाने वाले श्री दीनानाथ बत्रा आज एक बार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने शिक्षा विरोधियों, सेकुलर इतिहाकारों और बुद्धिजीवियों की बोलती बंद की है। यहां प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के अंश-
-आप लम्बे समय से शिक्षा क्षेत्र में हैं। आज शिक्षा को आप किस रूप में देखते हैं?
शिक्षा अखण्ड मंडलाकार स्वरूप है। इसे खण्ड-खण्ड में देखने से खण्डित चित्र और वृत्ति का सृजन होता है। इस विकृति को देखते हुए ही विद्या भारती का गठन किया गया था। आज शिक्षा क्षेत्र में कार्य करने वाली संसार की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था है विद्या भारती। पूरे देश में विद्या भारती के लगभग 30,000 विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण पर जोर दिया जाता है। जब से मैं विद्या भारती से जुड़ा हूं तब से विद्या भारती का ही हो गया। विद्या भारती के कार्यों के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। मुझे सन्तोष है कि इसमें काफी सफलता मिली है। देश के हर क्षेत्र में, यहां तक कि संवेदनशील और नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में भी विद्या भारती के विद्यालय हैं।
– आपने शिक्षक के रूप में गीता बाल भारती विद्यालय, कुरुक्षेत्र से शुरूआत की थी। अनुशासन और पढ़ाई में उस विद्यालय की एक पहचान रही है। अनुशासन को शिक्षा क्षेत्र में कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?
हम सबका सौभाग्य है कि उस विद्यालय का शिलान्यास पूज्य श्रीगुरुजी ने किया था। श्रीगुरुजी अनुशासन की साक्षात् मूर्ति थे। वहां श्रीगुरुजी के नाम का शिलापट लगा है, जिससे कार्यकर्ता और आने-जाने वाले लोग प्रेरणा प्राप्त करते हैं, उनकी अंतश्चेतना जागृत हो जाती है। इस कारण वहां का एक अलग ही अनुशासन रहता है। अनुशासन के अनेक उदाहरण हैं। एक बहुत ही रोचक उदाहरण है। एक बार खेल-कूद प्रतियोगिता हो रही थी, उसमें कुछ सरकारी विद्यालयों के शिक्षक भी थे। वे लोग सिगरेट पीते थे। हमारे बच्चे उनके सामने जाते थे और हाथ जोड़कर उनकी सिगरेट लेकर फेंक देते थे। एक और बात मैं बताना चाहता हूं। उस समय एक सरकारी योजना आई थी, जिसके तहत अनुसूचित जाति के आठवीं पास 16 बच्चों को चुनकर उनकी आगे की पढ़ाई सुनिश्चित करनी थी। इसके लिए हमारे विद्यालय को चुना गया। हमने 16 बच्चों का चयन किया और बारहवीं तक उन्हें पढ़ाया। इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए विशेष कक्षाएं लगाई गईं। मेरे लिए यह गौरव की बात है कि उन 16 में से 14 छात्रों का दाखिला इंजीनियरिंग में हुआ।
– आपके कथन में राष्ट्रीयता का भाव है, लेकिन आपके आलोचक कहते हैं कि यह शिक्षा का भगवाकरण है?
हमारे आन्दोलन के पीछे तीन बड़े आधार हैं-एक, हमारी प्राचीन ज्ञान परम्परा, दूसरा, जिन लोगों ने इस परम्परा को नष्ट करने का प्रयास किया और तीसरा, न्यायालय ने जिनको फिर से पुन:स्थापित किया। इन्हीं तीनों पर हमारा ताना-बाना बुना हुआ है। जैसे प्राचीन समय में शिक्षा की परिभाषा थी कि विद्या वह है जो हमें मुक्ति दिलाए। यहां मुक्ति का अर्थ जीव मुक्ति नहीं है, बल्कि जो हमें अभावों से मुक्ति दिलाए, जो दु:ख-दर्द से मुक्ति दिलाए, जो गरीबी से मुक्ति दिलाए। यही शिक्षा का उद्देश्य है।
कोठारी आयोग ने कहा है कि देशभक्ति, स्वास्थ्य संरक्षण, सामाजिक चेतना यानी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता हमारी शिक्षा के चार स्तम्भ हैं। अरुणा राय और अन्य के मुकदमे की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बच्चों तक अपने शाश्वत जीवन मूल्यों को पहंुचाना, सदाचरण के लिए प्रेरित करना, वैदिक गणित पढ़ाना और आध्यात्मिकता की जानकारी देना भगवाकरण नहीं है। 13 एशियाई देशों के लिए ड्यूलर आयोग बना था। इसमें भारत से कर्ण सिंह थे। इस आयोग ने चार मुख्य बातें कही हैं-पहली, बच्चे को यह बताया जाए कि सीखना कैसे है, दूसरी, कैसे सीखेंगे, तीसरी,भेदभाव से कैसे दूर रहें और चौथी, हम जैसे हैं वैसे ही कैसे रहें।
हम यह भी चाहते हैं कि शिक्षकों का प्रशिक्षण पांच वर्ष का हो। इस दौरान उन्हें भारतीय मनोविज्ञान, भारतीय दर्शनशास्त्र, पढ़ाने की विद्या (इसका वर्णन उपनिषद् में संवाद शैली के नाम से किया गया है), सीखने की हमारी प्राचीन परम्परा, आचार्य कैसा हो, जिस गांव में विद्यालय हो वहां एक भी अनपढ़ न रहे- इन सारे विषयों की जानकारी प्रशिक्षण के दौरान ही शिक्षकों को दी जानी चाहिए। यदि ऐसा होगा तो निश्चित ही देश में सकारात्मक बदलाव दिखेगा।
फिल्मों से दूर, पुस्तकों के पास
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