शिक्षा- बहुत कुछ करना बाकी है अभी
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शिक्षा- बहुत कुछ करना बाकी है अभी

by
Aug 30, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 30 Aug 2014 15:34:29

देश में 'अखिल भारतीय शिक्षा स्वायत्त आयोग' बने। तभी देश की शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। शिक्षा शिक्षकों के हाथ में आए। शिक्षा को नौकरशाहों के हाथ से निकालकर शिक्षा विशेषज्ञों के
हाथों में दे देनी चाहिए। इसके लिए 'अखिल भारतीय शिक्षा सेवा' बने। जैसे आईएएस अधिकारी होते हैं उसी तरह आईईएस अधिकारी होने चाहिए। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना जीवन खफा दिया है, वही लोग परीक्षा दें और शिक्षा अधिकारी बनें, वही लोग शिक्षा की समितियों में आएं , शिक्षाविद् बनें। जब कोई छात्र एक सीढ़ी आगे बढ़ता है यानी वह अगली कक्षा में जाता है तो उसके बीच में तीन महीने का 'सेवा मिशन' का एक पाठ़्यक्रम होना चाहिए। इसके तहत वह छात्र गांवों और सेवा बस्तियों में जाए। वहां के लोगों को जाने, वहां की कमियों को परखे। इसी आधार पर उसे सेवा में डिप्लोमा का प्रमाणपत्र दिया जाए। विश्वविद्यालयों को कम से कम 10 गांव गोद लेने चाहिए। किसी बड़े विद्यालय को भी एक गांव या सेवा बस्ती गोद लेना चाहिए।
शिक्षा को एक राष्ट्रीय विषय बनाना चाहिए और सारे राजनीतिक दल यह घोषित करें कि शिक्षा से राजनीति का कोई सम्बंध नहीं है। कोई भी बच्चा देश की सम्पत्ति है। उसी के हाथ में देश का भविष्य है। इसलिए हर बच्चे को हर प्रकार से कुशल बनाना हमारा दायित्व है। हर विद्यालय में नौवीं कक्षा से प्रत्येक छात्र के लिए व्यावसायिक और शैक्षणिक दो धाराएं बननी चाहिए। इन दोनों में 60 और 40 का अनुपात होना चाहिए। जो छात्र व्यावसायिक धारा को चुनेगा उसे 40 प्रतिशत शैक्षणिक भी लेना होगा और जो छात्र शैक्षणिक लेगा उसे 40 प्रतिशत व्यावसायिक भी लेना होगा।
जब ये बच्चे 12वीं कर लेंगे तब देश के सामने इस तरह के आंकड़े सामने आ जाएंगे कि किन-किन क्षेत्रों में किस विधा के छात्र कितने हैं। इससे बच्चों को रोजगार पाने में बड़ी मदद मिलेगी। शोध के लिए जो बाधाएं हैं उन्हें भी दूर करने की जरूरत है। इससे शोधार्थियों की छिपी प्रतिभा सामने आएगी। देश को उनसे कुछ ऐसी चीज मिल सकती है जिसकी बड़ी जरूरत हो। 

गुजरात की पुस्तकों का सत्य एवं तथ्य

गत 25 जुलाई को इंडियन एक्सप्रेस में गुजरात पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वाराप्रकाशित पुस्तकों के पर एक समाचार प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात् इन पुस्तकोंपर देश के अधिकांश समाचार चैनलों पर चर्चाएं होने लगीं एवं अंग्रेजी समाचारपत्रों में लेख और समाचार प्रकाशित होने लगे, जो आज तक जारी है। अधिकतरसमाचार माध्यमों के द्वारा इस विषय की चर्चा के साथ श्री दीनानाथ बत्रा एवंराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़कर कहा जा रहा है कि शिक्षा काभगवाकरण किया जा रहा है। सच तो यह है कि इस सम्बंध में तथ्यों एवं प्रमाणोंको तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
उल्लेखनीयहै कि गुजरात राज्य पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वारा 9 पुस्तकें प्रकाशित की गईहैं। इनका लोकार्पण 4 मार्च, 2014 को किया गया था। 4 अप्रैल को इन पुस्तकोंका एक-एक सेट संदर्भ साहित्य के रूप में उपयोग करने हेतु गुजरात के सभीसरकारी विद्यालयों को नि:शुल्क भेजा गया।
इन 9 पुस्तकों में श्रीदीनानाथ बत्रा द्वारा लिखित 7 हिन्दी पुस्तकों का अनुवाद किया गया है। एकपुस्तक वैदिक गणित पर है और एक पुस्तक 'तेजोमय भारत' के नाम से छपी है।इसका प्रथम संस्करण 2008 में प्रकाशित हुआ था और अब यह दूसरा संस्करण है।इन दोनों पुस्तकों के लेखक गुजरात के हंै।
श्री दीनानाथ बत्रा द्वारालिखी गई पुस्तक 'प्रेरणा दीप' के 4 खण्ड हंै। इनमें देश-विदेश केमहापुरुषों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, समाज-सेवकों आदि के प्रेरणादायीउदाहरणों के द्वारा छात्रों में जीवन-मूल्यों का विकास हो सके इस प्रकार कीघटनाओं को चित्रित किया गया है। इसमें जॉर्ज वाशिंग्टन, हैनरी फोर्ड, महात्मा गांधी, अब्राहम लिंकन, सूफी संत बीबी राबिया, कबीर, नोबेल पुरस्कारविजेता साहित्यकार अर्नेस्ट हेगींग्वे, गुरुनानक, अशफाखउल्ला खान आदि हंै।
पांचवींपुस्तक 'शिक्षा मंे त्रिवेणी' है। इसमें ज्ञान, भावना, क्रिया का शिक्षामें समन्वय होना चाहिए आदि विषय हैं। छठी पुस्तक का नाम है 'विद्यालयगतिविधियों का आलय'। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार के कार्यक्रमों, प्रकल्पों, गतिविधियों के द्वारा बालकों के व्यक्तित्व का विकास एवं चरित्रनिर्माण किया जा सकता है। सातवीं पुस्तक है 'शिक्षा का भारतीयकरण'। इसमेंहमारी प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था एवं वर्तमान आधुनिक समाज की आवश्यकताओं कासमन्वय करके भारतीय शिक्षा का एक वैकल्पिक स्वरूप कैसा होना चाहिए, इससम्बन्ध में लिखा गया है।
आठवीं पुस्तक वैदिक गणित पर है । वैदिक गणितको एनसीईआरटी ने भी कुछ मात्रा में वर्तमान गणित में समावेश किया है। इसकेअतिरिक्त मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विद्यालयीन पाठ्यक्रम एवं महाराष्ट्रके बी़ एड. के पाठ्यक्रम आदि स्थानों पर इसका समावेश कुछ मात्रा में कियागया है।
दूसरी पुस्तक 'तेजोमय भारत' नाम से है। इसमें लेखक ने अखण्डभारत की संकल्पना देने का प्रयास किया है, जिसको आज कुछ साहित्य में 'महानभारत' के रूप में वर्णन किया जाता है। अधिकतर समाचार माध्यमों के द्वारापुस्तकों की सामग्री पर आपत्ति दर्ज करते हुए बहस की गई है। इस पुस्तक केलेखक एक गुजराती व्यक्ति हैं। परन्तु इस पुस्तक को श्री दीनानाथ बत्रा केनाम से लिखा जा रहा है। अनेक समाचार माध्यमों ने यह कहा कि उपरोक्तपुस्तकें छात्रों को पढ़ाई जा रही हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि इनपुस्तकों को सभी विद्यालयों को संदर्भ साहित्य हेतु भेजा गया है। दूसरी बातइन सारी पुस्तकों में किसी के विरुद्ध या नीचा दिखाने अथवा विद्वेषनिर्माण करने वाली एक भी बात नहीं दी गई है। परन्तु जैसे आसमान टूटा हो इसप्रकार की चर्चाएं चल रही हंै।
इस बात का आश्चर्य है कि वर्तमान मेंएनसीईआरटी की हिन्दी की पुस्तकों में गैर-संवैधानिक शब्द जैसे भंगी, चमारआदि के प्रयोग एवं भयानक ढंग से अवैज्ञानिक, अतार्किक सामग्री, भाषा कोविकृत करने के प्रयास किए गए हैं। लेकिन इन पर किसी भी सेकुलर पत्रकार काध्यान नहीं जा रहा है। जनवरी 2008 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनसीईआरटीकी कक्षा 6 से 12 की पुस्तकें, जिनमें हमारे क्रांतिकारियों को 'आतंकवादी' बताया गया था एवं सभी पंथ, मजहबों एवं कई जातियों को अपमानित करने वाले 75 अंश हटाने का आदेश दिया था। इस प्रकार के अनेक विषयों पर किसी भी चैनल यासमाचार पत्र ने कोई समाचार प्रकाशित करने की जरूरत नहीं समझी।
उपरोक्तसारी बातोंं से प्रश्न यह उठता है कि क्या इस प्रकार की गलत चर्चा किसी एकनिश्चित योजना या षड्यंत्र के तहत की जा रही है? ––अतुल कोठारी

 

 

इन मुकदमों में मिली जीत

राजस्थान
वाद संख्या :-473/2005 -26 अप्रैल, 2006
न्यायालय सिविल न्यायाधीश, अलवर
प्रो़ गोपेश्वर दयाल माथुर बनाम
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी)
सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकेण्डरी एज्युकेशन(सी़बी़एस़ई)
विषय :- जैन मत के सम्बन्ध में
वाद संख्या – 565/2006 – 13 जुलाई, ़2006
राजस्थान उच्च न्यायालय पीठ, जयपुर
यशवंत सिंह चौधरी
बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया
सेन्ट्रल बोर्ड सिनियर सेकेण्डरी एज्युकेशन (सी़बी़एस़ई)
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी)
विषय : इतिहास की पुस्तकों के सम्बन्ध में

दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय – वाद संख्या 17909/2005
निर्णय 30 जनवरी,2008
दीनानाथ बत्रा बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया
एनसीईआरटी, सीबीएसई
विषय:- कक्षा 6 से 12 वीं तक दिल्ली एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों के सम्बन्ध में
जिला न्यायालय न्यायधीश- साकेत न्यायालय- वाद संख्या – 37/2010- निर्णय –16 सितम्बर, ़2010
दीनानाथ बत्रा और अन्य बनाम
इण्डियन सार्टिफिकेट ऑफ सेकेण्डरी एज्यूकेशन बोर्ड-(आईसीएसईबोर्ड)
श्री डी़ एन. कुन्द्रा (लेखक)
विषय : इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता सेनानियों को 'आतंकवादी' पढ़ाना।

दिल्ली उच्च न्यायालय -वाद संख्या –3307/2011
निर्णय 24 मई, 2011
सोहन कुमार और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया
विषय : संस्कृत भाषा तथा अध्यापकों की पात्रता के सम्बन्ध में
भारत का उच्चतम न्यायालय- वाद संख्या 2902/2008 , निर्णय 19 अक्तूबर, ़2011
दीनानाथ बत्रा बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य
विषय :- बी़ए़(आनर्स) द्वितीय वर्ष की पाठ्य पुस्तक में अध्याय- 'थ्री हण्डे्रड रामायणा' लेखक- ए़ के़ रामानुजम के सम्बन्ध में
वाद संख्या 315/2012 निर्णय – 2014
दीनानाथ बत्रा एवं अन्य बनाम
पेंगुइन पब्लिसर्स भारत, अमरीका तथा वेण्डी डोनिगर
विषय :- वेण्डी डोनिगर की पुस्तक ' द हिन्दूज एण्ड अल्टरनेट्रिव हिस्ट्री'' पुस्तक पर पूरे देशभर में प्रतिबंध

चण्डीगढ़
उच्च न्यायालय पंजाब एवं हरियाणा-
वाद संख्या 1452/2006, निर्णय –31 जनवरी, 2006
श्री राजेन्द्र कुमार सेठी बनाम सी़बी़एस़ई
एनसीईआरटी, एच़आऱडी
विषय : इतिहास की पुस्तकों के सम्बन्ध में
उच्च न्यायालय पंजाब एवं हरियाणा
वाद संख्या 15376/2011-निर्णय-14 अक्तूबर, 2011
यादराम और अन्य
बनाम
यूनियन ऑफ इण्डिया
विषय :- संस्कृत भाषा के सम्बन्ध में

 

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