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उत्तराखण्ड का सीमान्त क्षेत्र सूना हो रहा है पिछली जनगणना में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि राज्य के सीमान्त जिलों की आबादी लगातार कम हो रही है। 2013 के जून में उत्तराखण्ड के केदारनाथ समेत सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की नेपाल व चीन से लगी घाटियों में आई जबरदस्त तबाही ने तो इस पलायन को तीस से चालीस प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। चीन ऐसे वीरान क्षेत्रों की मौजूदगी का लाभ ले सकता है। यह बात प्रदेश सरकार को भी परेशान कर रही है। पिछले दिनों देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह जब देहरादून के दो दिवसीय दौरे पर उत्तराखण्ड पहुंचे थे तो राज्य की भाजपा इकाई समेत कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री ने भी उनसे इस प्रकरण पर अपनी चिंता व्यक्त की थी गृहमंत्री ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान यह स्वीकार किया था कि इन सीमावर्ती क्षेत्रों का विशेष ध्यान रखने के साथ इसके लिए यह उपाय जरूरी है। उपाय क्या होंगे उन्होंने कुछ साफ नहीं किया तथापि इस क्षेत्र की चिंता को वे जायज ठहरा गए। गृहमंत्री के अनुसार चीनी घुसपैठ के अलावा नेपाल सीमा से माओवादियों की हरकतों पर भी उनकी नजर है।
एक तरफ सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक सुविधाओं की कमी ने क्षेत्रवासियों को अपने घरबार छोड़कर शहरों की तरफ आने को विवश किया था तो 2013 की त्रासदी ने तो बचे लोगों को भी यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि इस क्षेत्र में त्रासदी से उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है। लिहाजा इस त्रासदी के बाद यकायक इस क्षेत्र में लोगों का सुरक्षित ठिकानों की खोज में शहरों की तरफ हल्द्वानी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार, देहरादून, गैरसैंण, कर्णप्रयाग आना शुरू हो चुका है।
राज्य सरकार का दावा है कि पिछले वर्ष आई आपदा से निपटने को राज्य सरकार राहत व पुनर्वास कायार्ें पर प्रतिमाह सौ करोड़ रुपए का खर्च कर इन इलाकों के लोगों की जिंदगी को ढर्रे पर लाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसके बावजूद प्राकृतिक आपदाएं प्रदेश का पीछा नहीं छोड़ रहीं। इस वर्ष भी इस मानसूनी प्राकृतिक आपदा ने सौ के आसपास लोगों की लीला समाप्त कर डाली। 16 अगस्त को तो राज्य की राजधानी के भीतर काठबंगला इलाके तक को इस आपदा ने अपनी चपेट में ले लिया। इस आपदा में 6 लोग टूटे मकानों के मलबे में दबकर मारे गए जबकि एक महिला को राहतकर्मियों ने मकानों का लिण्टर तोड़कर जिंदा बाहर निकाला। इसी तरत पौड़ी जिले की यमकेश्वर घाटी सेे लेकर कोटद्वार के आसपास एवं पौड़ी तहसील के कई गांवों में भी जमकर विनाश हुआ। बादल फटने से वहां के कई गांव तहस-नहस हो गए। चौदह लोग मौत के गाल में समा गए जबकि बीस हजार से अधिक की आबादी को यह तबाही बर्बादी की कगार पर पहुंचा गई। अब राज्य भाजपा पूरे यमकेश्वर क्षेत्र को आपदाग्रस्त क्षेत्र घोषित कर इस क्षेत्र में राहत एवं पुनर्वास के विशेष उपाय करने की मांग कर रही है। राज्य में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट के अनुसार 16 अगस्त की तबाही के कारण लुट चुके ग्रामीणों को राहत एवं बचाव की जो कार्यवाही प्रशासन द्वारा अमल में लाई जा रही है वह नाकाफी है।
इसी तरह टिहरी जिले के भी आधा दर्जन गांव इस तबाही की भेंट चढ़े हैं। इससे पूर्व एक पखवाड़े पहले भी टिहरी के घनसाली क्षेत्र में बादल फटने की घटना ने आधा दर्जन गांवों में तबाही बरसाई। इस घटना में टिहरी जिले के जखन्याली गांव में भी 6 व्यक्ति दबकर मारे गए।
अब राज्य सरकार स्वयं 400 गांवों को उत्तराखण्ड में ऐसे बता रही है जहां रहने लायक स्थितियां नहीं हंै। इन गांवों को विस्थापित करने के लिए राज्य सरकार केन्द्र से सहायता की मांग कर रही है। लेकिन केन्द्र सरकार के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इन गांवों के विस्थापन या अन्य समस्याओं के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रस्ताव बनाकर केन्द्र में भेजने की बात कही है। यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि उत्तराखण्ड में दिन प्रतिदिन तबाही के कारण हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। इस वर्ष की आपदा को मिलाकर पांच सौ गांवों की 20 हजार से अधिक आबादी आज राज्य में दरबदर ठोकर खाने को विवश है।
पिछले वर्ष की आपदा ने अकेले केदार क्षेत्र के गांवों के तीन सौ से अधिक बच्चों को अनाथ बनाकर छोड़ दिया। गुप्तकाशी के एक स्वैच्छिक संगठन वात्सल्य ने इनमें से साठ बच्चों को गोद लेकर इनकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था एक विद्यालय में करवाई है। पतंजलि सेवाश्रम ने भी 105 अनाथ बच्चों को एक चौमंजिला भवन किराए पर लेकर इनको पढ़ाई लिखाई और पालन पोषण देने का काम किया है। कई बच्चे अभी भी अंधेरे में जीने को विवश हंै। कई बर्बाद गांव अब भी अपने पुनर्वास की राह देख रहे हैं। ऋषिकेश की धर्मशालाओं एवं सरकारी विद्यालयों के भवनों में शरण लिए इन ग्रामीणों का आगे भविष्य क्या होगा इसका खौफ पैदा कर देता है।
पौड़ी जिला जो कि 16 अगस्त की तबाही से सर्वाधिक तबाह हुआ है वहां 143 पेयजल लाइनें ध्वस्त हो चुकी हैं स्वयं जिले के जिलाधिकारी चन्द्रशेखर भट्ट का मानना है कि यदि दस करोड़ की राशि का आवंटन इन पेयजल लाइनों की सुधार के लिए हुआ तो पेयजल आपूर्ति बहाल करना ही मुश्किल होगा। जबकि अन्य सुविधाओं की तो बात ही अलग है। पूरे राज्य में 80 पुल इस तबाही से बह गए हैं। -दुर्गादत्त जोशी
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