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…बात 2003 की है। संघ के तृतीय वर्ष में शिक्षक जाने से पहले मुझे बंगलुरू जाना हुआ। वहां राष्ट्रोत्थान परिषद में मै पहली बार योग गुरु बीकेएस आयंगर से परिचित हुआ। वह भी अप्रत्यक्ष रूप से। मैं वहां आयंगर शिष्य और मेरे शिक्षक राघवेंद्र शणें से मिला। उनकी प्रतिभा का कायल हो उठा। हम सबको ऐसा लगा जैसे राघवेंद्र शणें ने खेल-खेल में हम लोगों को योगी बना दिया हो। हफ्ते भर में शरीर पूरी तरह से लोच खाने लगा। ज्यादातर आसनों को शुद्घता से करने का विश्वास जगा। मन ही मन राघवेंद्र शणें को मैंने शिक्षक से ज्यादा मानना शुरू किया। वे दिन भर में भोजन के बाद के तीन घंटे छोड़कर हमें सब सिखाने के लिए तत्पर रहते थे, लेकिन मेरे गुरूजी-मेरे गुरूजी बोलकर वे दिन में कई बार आयंगर जी का स्मरण कर लेते थे। सबसे पहले 12 वर्ष पहले विश्व के इस महान योगी से मेरा परिचय मेरे शिक्षक राघवेंद्र शणें ने करवाया, मैंने गुरूजी से सीधे योग भले न सीखा हो, लेकिन आयंगर ने हठ योग की जिस विधा को अपने शिष्यों के माध्यम से आगे बढ़ाया मैं भी उसी राह का राही बना। हम जहां हैं, जैसे हैं, और जिस हालात में हैं, उसी में योग कर सकते हैं। आयंगर ने हठयोग को अपना आधार बनाया, वे अपने जीवन से भी हठ कर बैठे, बचपन में ही कई बीमारियों का शिकार हुए, लेकिन योग को मजबूत हथियार बनाकर पहले बीमारियों को परास्त किया, फिर पुणे में समाज का विरोध हो, या भुखमरी के हालात, योग ने आयंगर को शक्ति प्रदान की, और इसी शक्ति ने उन्हें विश्वपुरुष बना दिया। लंदन में उन्होंने विक्टोरिया योग सोसायटी की स्थापना की। कभी उन सिद्घांतों से समझौता नहीं किया जो भारतीय योग मनीषा को नुकसान पहुंचाते हों। आयंगर ने योग की एक परंपरा खड़ी कर दी। शिष्यों से लेकर अपने पुत्र पुत्रियों को भी उन्होंने योग में पारंगत किया। उनकी सुपुत्री गीता ने हॉलीवुड योग मॉडल कैमरन के साथ मिलकर चीन में भारत की ओर से सबसे बड़ा योग शिविर लगाया।
आयंगर योग से दीक्षित और वशिंगटन में यूनिटी वुड्स योग सेंटर के महानिदेशक शुमाकर कहते हैं कि 'लोगों के लिए एक्सरसाइज खेल और प्रतिस्पर्द्धा है, ऐसा ही योग के बारे में भी माना जाता है-लेकिन असलियत ये नहीं है। पुरुष नहीं जानते कि योग क्या है। शुमाकर कुछ उन चंद अमरीकी योग शिक्षकों में हैं जिनकी दीक्षा आयंगर के हाथों हुई़ शुमाकर का मानना है कि वे खासियतें, जिनसे कोई शीर्ष एथलीट बनता है, वैसी ही खासियतें योग में उत्कृष्ट बनने के लिए आवश्यक हैं-ये केवल शारीरिक लचक, क्षमता और ताकत नहीं है बल्कि उनमें योग भी शामिल है।
दरअसल आयंगर ने खुद को ऐसे ही ढाल लिया था, बीमार होने से पहले तक वे दिन में 3 घंटे आसन और कम से कम 1 घंटा प्राणायाम के लिए दे रहे थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्घ पुस्तक लाइट ऑन प्राणायाम में सिर्फ प्राणायाम के असर का जिक्र किया है, उस असर को जिसे उन्होंने अनुभव किया था, दरअसल यही अनुभव सच्चा ज्ञान था, साधना थी, जिसे गुरूजी ने हर उस व्यक्ति तक पहुंचाया जो उसे पाना चाहता था। भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी की पुत्री निवेदिता जोशी के लिए आयंगर ही उनका जीवन थे, जब वह छोटी थीं, चलने में असमर्थ थीं, तब आयंगर ने निवेदिता को उनके पैरों पर न केवल खड़ा किया, बल्कि एक सुधी योग शिक्षक के रूप में दिशा भी दी। निवेदिता आज दिल्ली में अपना एक योग केंद्र चलाती हैं। आधुनिक दौर में योग की इस महिमा को कोई माने या न माने लेकिन निवेदिता जोशी तो अवश्य ही आयंगर योग चिकित्सा पद्घति को ईश्वर का वह प्रसाद मानती हैं, जिसने उन्हें एक नया जीवन प्रदान किया। निवेदिता जो 15 वर्ष की उम्र में स्पोंडिलिसिस का शिकार हो गई थीं। करीब 12 वर्ष तक अस्पतालों के चक्कर काटते-काटते बचपन कब बीत गया पता ही नहीं चला। लेकिन आयंगर योग को अपनाने के केवल तीन साल के भीतर ही निवेदिता को अपनी खोयी हुई जिन्दगी मिल गयी। आज माइक्रोबायोलॉजी विषय में स्नातकोत्तर कर चुकीं निवेदिता अपने ही जैसे 100 बीमार लोगों को आयंगर योग का प्रशिक्षण दे रही हैं। हालांकि विदेश में कुछ लोग योग को हिंदू धर्म का अंग मानकर योग का विरोध करते रहे, लेकिन आयंगर के सामने ऐसा बोलने वाले लोग नहीं थे। पश्चिम के चरमपंथियों ने नवोदित योगियों के शिविरों को अपना निशाना जरूर बनाया लेकिन आयंगर पर उंगली उठाना अब इतना आसान नहीं था। उनके योग की महिमा पश्चिम में सत्ता के केंद्रों तक पहुंच चुकी थी, यही वजह रही कि सांप्रदायिक आधार पर भले ही योग का विरोध हुआ हो, लेकिन सरकारी स्तर पर योग के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। आयंगर योग के रूप में हमें जो विरासत सौंपकर गए हैं, उसे संभालना, संवारना और आगे बढ़ाना अब हम सबका पुनीत कर्तव्य है।
़.़.़ और मेरा भी।
-रामवीर श्रेष्ठ, टीवी पत्रकार
'आधुनिक संसार के महान योग प्रवर्तक का अवसान'
योग भारत द्वारा विश्व को दिया गया एक अमूल्य उपहार है। श्रद्घेय योगाचार्य बी के एस आयंगर जी के देह विलय से हमने आधुनिक संसार के एक महान योग प्रवर्तक को खो दिया है। सार्वजनिक जीवन की इस क्षति तथा रिक्तता से हुआ दु:ख अवर्णनीय है।
हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर से दिवंगत आत्मा को चिर-शान्ति प्रदान करने तथा उनके परिवार और विश्व भर में फैले हुए अनुयायियों-हितैषियों को इस अपूरणीय क्षति को सहन करने के लिये शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
-सुरेश (भैयाजी) जोशी
सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
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