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युवाओं और विद्यार्थियों के बीच एस्ट्रो अंकल के नाम से मशहूर पवन सिन्हा अध्यात्म के माध्यम से समाज और राष्ट्र की सेवा को अपना हेतु मानते हैं। श्रीकृष्ण उनके नायक हैं और उनका मानना है कि आज के भारतवर्ष को दुनिया का सरताज बनाना है तो हमें श्रीकृष्ण के योगेश्वर स्वरूप को जानना होगा। कौशल, चातुर्य, बुद्धि, शौर्य और प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना से धर्म व राष्ट्र को दुनिया में अग्रणी बनाने के लिए आज श्रीकृष्ण जैसे नेतृत्व की ही जरूरत है। अजय विद्युत ने उनसे लम्बी बातचीत की, जिसमें श्रीकृष्ण के कई रूप संवरकर सामने आए, तो कई भ्रान्तियां भी टूटीं… प्रस्तुत हैं उस बातचीत के संपादित अंश :
-जन्माष्टमी पर कैसा भाव उमड़ता है?
जन्माष्टमी पर पूरा देश श्रीकृष्णमय हो जाता है। श्रीकृष्ण को हम सबसे ज्यादा मानते हैं। लेकिन हम श्रीकृष्ण को जानते कितना हैं, यह एक बड़ा प्रश्न है। श्रीकृष्ण की आयु 125 वर्ष रही है। हमें जिस श्रीकृष्ण के बारे में सबसे ज्यादा मालूम है वह लगभग आठ वर्ष के थे। श्रीकृष्ण जी के बारे में ज्यादातर कथाएं, ज्यादातर बातचीत, उनका रास, उनका प्रेम, उनकी शरारत, जिसकी बात यह पूरी दुनिया सबसे ज्यादा करती है, वह तो केवल आठ वर्ष की अवस्था दौरान की है। मैं एक विचित्र सी बात कह रहा हूं कि हमने श्रीकृष्ण के साथ न्याय नहीं किया। श्रीकृष्ण जो थे वह हम गाते नहीं, श्रीकृष्ण ने जो किया वह हम समग्रता से बताते नहीं… और श्रीकृष्ण ने जो हमसे चाहा कि हम करें, वह हम करते नहीं। हमारा भला हो, हमारे समाज का भला हो, उसके लिए उन्होंने जितने सिद्धांत दिए, जितना अध्ययन किया, हम वैसा श्रीकृष्ण के लिए कुछ नहीं करते। बस नाच लिए, गा लिए, श्रीकृष्ण के भजन हो गए, लल्ला की पैजनिया बज गई, बस।
– तो फिर क्या है कृष्ण का मूल स्वरूप?
श्रीकृष्ण का जो मूल स्वरूप है वह योगीराज का स्वरूप है। आठ वर्ष का बालक था वह। नाचा भी, गाया भी, शरारतें कीं, लेकिन उसके बाद वैसा कुछ कभी नहीं किया। श्रीकृष्ण के आठ वर्ष से बाद के इतिहास के बारे में अगर हम जनसामान्य से बात करते हैं तो वह सिर्फ यह बता सकते हैं कि वह महाभारत में थे, कुछ कहानियां जुड़ी हुई हैं महाभारत से कि वहां उन्होंने नेतृत्व किया, अर्जुन के सारथि बने और गीता का उपदेश दिया। बस यहीं बात खत्म।
जबकि श्रीकृष्ण बहुत बड़े ज्योतिषी हैं। श्रीकृष्ण को गो-पालन का, कृषि का, आयुर्वेद का बहुत अच्छा ज्ञान था। श्रीकृष्ण ने गणपति जी की, सरस्वती जी की आराधना शुरू करायी। रंगों का, फूलों का उन्हें वृहद ज्ञान था। हमें अपने युग के हिसाब से हमारे देवता की पूजा करनी चाहिए। हमारे देवता की प्रतिमा हमारे युग के हिसाब से होनी चाहिए। जिस संकट के समय से हिन्दुस्थानी गुजर रहे हैं, यह संकट का समय है, संघर्ष बहुत है, और हमारी लड़ाई केवल धन के लिए नहीं है, केवल आराम के लिए नहीं है, हमारी लड़ाई इस वक्त अस्तित्व के लिए भी है। हिन्दुस्थानियों की लड़ाई अपने अस्तित्व के लिए है, भारत के अस्तित्व के लिए है। हमारे लिए हमारे पड़ोसी देश ही हमारे लिए खतरा हैं। पूरे विश्व में कई देश हमारे लिए खतरा बने हुए हैं। इस समय हमें योगीराज श्रीकृष्ण की जरूरत है। इस समय हमें नाचने-गाने वाले श्रीकृष्ण की जरूरत कम है। हालांकि जीवन के लिए यह भी आवश्यक है, लेकिन योगीराज स्वरूप हमें शक्ति देता है, जिंदगी जीने का मार्ग बताता है।
-क्यों इतने अनूठे, खास और अपने से लगते हैं श्रीकृष्ण?
सबसे पहले श्रीकृष्ण ने योग के बारे में कहा- योग: कर्मसु कौशलम्। कर्म की कुशलता को योग कहते हैं। दूसरा उन्होंने शब्द इस्तेमाल किया है- योगक्षेम। योग शब्द का यहां तात्पर्य है अप्राप्य को प्राप्त करने का ज्ञान। यानी हम जो अभी तक प्राप्त नहीं कर पाए हैं, उसे कैसे प्राप्त करेंगे, वह योग है और जो प्राप्त किया उसका कैसे संरक्षण करेंगे, यह क्षेम हुआ।
इसे यूं समझते हैं कि जैसे हमने ईश्वरीय गुण को प्राप्त किया योग के द्वारा, वह योग हो गया। फिर उसका संरक्षण और संवर्धन करते जा रहे हैं, वह क्षेम हो गया। प्रकृति को प्राप्त किया, प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन किया। ये जो दो सिद्धांत हैं, इन्हें आदमी सामने दीवार पर लगाकर मन से पढ़ना और उन पर चलना शुरू कर दे तो उसकी जिंदगी बदलनी शुरू हो जाएगी।
-भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो युवाओं के लिए श्रीकृष्ण की क्या उपयोगिता है?
भारत के युवाओं के लिए तो श्रीकृष्ण का यही संदेश है कि जो काम हाथ में लिया है उसे सर्वश्रेष्ठ करो। यह नहीं कि बस पास होने के लिए पढ़ रहे हैं। मत पढ़ो। जिस काम में जाना चाहते हो, उस काम में चले जाओ। लेकिन पढ़ रहे हो तो खूब अच्छे से पढ़ो। अपनी तरफ से अपना सर्वश्रेष्ठ दो। अपने दिमाग का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल करो और यह भी बता रहे हैं कि कैसे करो। केवल उपदेश नहीं दे रहे हैं वह, क्रिया और विधियां भी बता रहे हैं। ऐसे श्रीकृष्ण की पूजा करने की जरूरत है।
हाल में एक पत्रिका में विप्रो के चेयरमैन का बयान था कि भारत के युवा में 'अंडर एम्प्लॉयमेंट' है। यानी कि वे उस काबिल नहीं हैं जितनी तनख्वाह की वे उम्मीद करते हैं। मैनेजमेंट में या इंजीनियरिंग में उतने प्रवीण होकर वे नहीं आ रहे हैं। श्रीकृष्ण के योग: कर्मसु कौशलम् में यही है कि यदि आपकी दिनचर्या, आपका मन, मस्तिष्क, इन्द्रियां और शरीर एकाग्र नहीं हो पाता तो आप अपना कर्म कुशलता से कर ही नहीं सकते। अब यदि अपना कर्म कुशलता से नहीं करेंगे, फिर भी फल की इच्छा रखेंगे, तो फल मिलेगा नहीं। श्रीकृष्ण ने अपना पूरा जीवन बहुत संघर्ष से काटा और अपने लिए नहीं मेरे-आपके लिए काटा। राष्ट्र सर्वोपरि, धर्म सर्वोपरि- यह श्रीकृष्ण का मूलमंत्र है। राष्ट्र में धर्म की स्थापना हो। और धर्म क्या 'धार्यते इति धर्म:' वाला धर्म। यानी कर्त्तव्यनिष्ठा, ईश्वर कार्य, उनकी स्थापना राष्ट्र में होनी चाहिए। राष्ट्र शक्तिशाली हो, वहां शांति हो, प्रजा खुशहाल हो और राष्ट्र आततायियों के हाथ में कभी नहीं होना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने यज्ञ के बारे में भी बड़ी गूढ़ रहस्य की बात कही है। यज्ञ देवताओं के लिए नहीं है, सृष्टि के लिए है। देवताओं की सृष्टि के संवर्धन के लिए यज्ञ करो। आप बीमार हैं तो यज्ञ कीजिए- अलग अलग बीमारियों के लिए अलग अलग यज्ञ बताए गए हैं।
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