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गत दिनों लखनऊ में भाऊराव देवरस सेवा न्यास के तत्वावधान में 'मातृभाषा माध्यम सफलता का मूलाधार' विषय पर एक व्याख्यान आयोजित हुआ। व्याख्यान को सम्बोधित करते हुए केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री श्री कलराज मिश्र ने कहा कि मातृभाषा ही लोगों के अन्दर आत्मविश्वास भर सकती है, लेकिन दुर्भाग्य से आज भी हम विदेशी भाषा के पीछे भाग रहे हैं। अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद होना दु:खद है। अंग्रेजी से अनूवादित चीज सहजता और स्वाभाविकता का अहसास नहीं करा सकती है। श्री मिश्र ने यह भी कहा कि सभी भाषाओं का मूलाधार संस्कृत है। संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है। यह कम्प्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। मुख्य वक्ता और उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन.के. मेहरोत्रा ने कहा कि भारत 22 भाषाओं का देश है। देश में 60 प्रतिशत से भी अधिक लोग हिन्दी बोलते हैं। हिन्दी के बिना कोई भी जनान्दोलन नहीं किया जा सकता है। बच्चा मां की गोद में ही मातृभाषा सीख लेता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष और लखनऊ के महापौर डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का बढ़ता चलन ठीक नहीं है। विश्व के कई देशों ने अपनी मातृभाषा के बल पर ही सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हम भारतीय भी ऐसा कर सकते हैं।
इस अवसर पर विभिन्न संगठनों के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। -* प्रतिनिधि
पाठ्यक्रम में शामिल हो श्रीमद्भगवद्गीता
7 अगस्त को विश्व हिन्दू परिषद्, दिल्ली के पदाधिकारियों की एक बैठक हुई। इसमें श्रीमद्भगवद्गीता पर चर्चा हुई और भारत सरकार एवं सभी राज्य सरकारों से मांग की गई कि श्रीमद्भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इससे आने वाली पीढ़ी में संस्कार और नैतिकता का भाव जगेगा और देश की समस्याएं कम होंगी। बैठक में यह भी कहा गया कि गीता व महाभारत की शिक्षाएं यदि बच्चों को पहले से ही दी जातीं तो आज चारों तरफ समस्याओं का पहाड़ खड़ा नहीं होता। गीता के ज्ञान को किसी धर्म या सम्प्रदाय से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। आज से लगभग पांच हजार से अधिक वर्ष पूर्व इन महान ग्रंथों की रचना जिस समय की गई, उस समय न मुसलमान थे, न ईसाई और न कोई अन्य वर्तमान मत-पंथ सम्प्रदाय। इन ग्रंथों में कहीं भी जब हिन्दू, मुसलमान या ईसाई शब्द आया ही नहीं तो इसे किसी साम्प्रदायिक चश्मे से देखना ही वास्तव में साम्प्रदायिकता है। बैठक में पारित एक प्रस्ताव के अनुसार गीता व महाभारत व्यक्ति व राष्ट्रनिर्माण की कुंजी हैं जिसके विश्वव्यापी प्रचार मात्र से विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। -प्रतिनिधि
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