|
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी1964 ई. के दिन विश्व हिन्दू परिषद का जन्म सांदीपनी साधनालय, पवई, मुम्बई में हुआ। 2014 में इस पवित्र संगठन के 50 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। परिषद निर्माताओं ने अपने सामने एक अजेय वैश्विक हिन्दू महाशक्ति निर्माण का लक्ष्य रखा, जो शक्ति सनातन धर्म की उदात्त शाश्वत मान्यताओं के आधार पर खड़ी हो और सम्पूर्ण मानव के कल्याणार्थ कार्य करे।
जनवरी, 1966 में परिषद का प्रथम अधिवेशन प्रयाग में संगम तट पर सम्पन्न हुआ। हमारी सनातन परम्पराओं की रक्षार्थ अनेक प्रस्ताव पारित हुए। सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि सम्प्रदायों में बिखरा हिन्दू समाज, सैकड़ों वर्ष बाद, एक मंच पर बैठकर अपने वर्तमान और भविष्य के चिन्तन के लिए अग्रसर हुआ।
पूज्य निरंजनदेव तीर्थ, जगद्गुरु शंकराचार्य गोवर्धनपीठ, जगन्नाथपुरी ने गोरक्षा हेतु दिल्ली में एक विशाल आन्दोलन की घोषणा की। उसका सभी ओर से समर्थन ही नहीं हुआ, अपितु 07 नवम्बर, 1966 को दिल्ली में संसद भवन के सामने प्रदर्शन का निर्णय हुआ। इस प्रदर्शन ने प्रथम बार यह दृश्य उपस्थित किया कि हिन्दू समाज संगठित होकर अपनी हजारों वषार्ें की श्रेष्ठ परम्पराओं की रक्षा के लिए खड़ा हो सकता है। स्वराज्य के लिए बड़े-बड़े आन्दोलन देश में हुए किन्तु हमारी सांस्कृतिक स्वाधीनता का यह पहला महासमर था।
ब्रिटिश राज्यकाल में सनातन धर्म की वे सभी मान्यताएं जो हिन्द ू को एक करती हैं उनका दमन होते हुए हमने देखा था। हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि हिन्दू समाज की भावनाओं का दमन करने के लिए अंग्रेज स्वयं जो कार्य करते थे, वही कार्य वे स्वतंत्र भारत में भारतीयों के द्वारा कराएंगे।
7 नवम्बर, 1966 को दिल्ली ने एक अभूतपूर्व विराट जनसमूह सन्तों के नेतृत्व में इस आन्दोलन में उपस्थित देखा। दमन का जो दौर शुरु हुआ तो सन्तों पर, आम जनता पर गोलियों का प्रहार, यह हमारे भाग्य में बदा था। पूरे देश को यह स्पष्ट सन्देश चला गया कि भविष्य में स्वराज्य से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा करना पड़ेगा, तभी करोड़ों-करोड़ों हिन्दू समाज को बांधने वाली अपनी सनातन धर्म की मान्यताओं की हम रक्षा कर सकेंगे। परिषद के सम्मुख एक अजेय संगठित हिन्दू महाशक्ति निर्माण का लक्ष्य था, यह कोई सरल कार्य नहीं है, यह भी ध्यान में आया।
यह भी सिद्घ हो गया कि जो सरकार हिन्दू सन्तों पर हमला कर सकती है, वह सब प्रकार से हिन्दू समाज का दमन करने के लिए तैयार है। परिषद का कार्य तो शैशव अवस्था में था किन्तु लाखों स्वयंसेवक संघ के आदशार्ें पर इस पवित्र कार्य से जुड़ने को तैयार थे।
श्री मोरोपंत पिंगले ने इस अति कठिन कार्य को कैसे सम्पन्न किया, यह इतिहास का एक उज्ज्वल पृष्ठ है। जैसे गऊ हमें जोड़ती है, वैसे ही गंगा भी हमें जोड़ती है। उन्होंने गंगोत्री से जल लेकर गंगा की तीन यात्राओं का निर्णय किया। 30 दिन की ये यात्राएं वर्ष 1983 में हुईं। हर दिन के लिए एक प्रमुख दिन निश्चित किया गया था। तीनों यात्राओं के 90 कार्यकर्ताओं को इस गंगामाता और भारतमाता की एकात्मता यात्रा का भार सौंपा गया। प्रमुख एवं सहायक यात्राओं में 10 कोटि हिन्दू जुड़े। बड़ी संख्या में संघ के स्वयंसेवक विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े और देखते-देखते एक विशाल संगठन खड़ा हो गया।
हर एक लाख आबादी क्षेत्र की इकाई में समिति बने, उसे प्रखण्ड कहा गया। लक्ष्य रखा गया कि ग्राम/मोहल्ला (उपखण्ड- अर्थात 2000 आबादी क्षेत्र) तक संगठन खड़ा हो। परिषद ने एक शक्तिशाली संगठन का रूप लिया। हिन्दू समाज के सामने सभी समस्याओं के निदान के लिए हर प्रान्त में अलग से आयाम खड़े होने लगे। धर्मान्तरण रोकने के लिए पिछड़े क्षेत्रों में, वनांचलों में सेवा के कार्य हों। विभिन्न सम्प्रदायों के सन्तों को एकत्र करने का कार्य हो। इस प्रकार कार्य बढ़ते चले गए। सुरक्षा के लिए बजरंग दल, दुर्गावाहिनी का कार्य प्रारम्भ हुआ। हिन्दुओं में प्रतिरोधात्मक शक्ति अपनी सुरक्षा के लिए खड़ी होती गई। यहां सभी कायार्ें का विवरण दिया जाना कठिन है।
कहना न होगा कि सभी सम्प्रदायों के सन्तों सहित परिषद की संगठित शक्ति ने श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के माध्यम से शनै:-शनै: हिन्दू सनातन मान्यताओं का दमन करने वाली शक्तियों को निस्तेज करके रख दिया, यह रामभक्तों की रामशक्ति का परिणाम है। इस सात्विक शक्ति का हेतु 'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दु:ख भाग भवेत ्' है। परिषद का लक्ष्य सम्पूर्ण मानवता का कल्याण है, 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के इस वैश्विक लक्ष्य को पूरा करने की विश्व की सबसे बड़ी विधायक शक्ति के रूप में कार्यरत है विश्व हिन्दू परिषद। -अशोक सिंहल
(लेखक विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक हैं)
टिप्पणियाँ