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अंक संदर्भ : 20 जुलाई, 2014
आवरण कथा 'छाप भारत की' से प्रतीत होता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार एवं अरुण जेटली के बजट से स्पष्ट होता है कि सरकार प्राय: सभी मुद्दों को छूना चाहती है एवं प्रत्येक कल्याणकारी योजना पर कार्य कर रही है। जिन योजनाओं पर सरकार ने 100-100 करोड़ रुपयों का आवंटन किया है,वह इस बात का द्योतक है कि इन पैसों से एक प्रारंभिक तैयारी जरूर की जा सकती है। कुल मिलाकर यह बजट देश को प्रगति की ओर ले जाता हुआ दिखाई देता है।
सुरेश चौधरी,(कोलकाता)
० छाप भारत की 20 जुलाई का अंक पढ़ने को मिला। इस अंक में बजट की झलक,योजनाओं का ब्योरा,पर्यावरण पर पैनी नजर,आधी आबादी की चिंता, एवं सप्ताह का साक्षात्कार अनुपम मिश्र का लेख'तालाब का सम्मान करना होगा'अत्यधिक रोचक एवं समसामयिक था। साथ ही इस अंक के समस्त लेख भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से ओतप्रोत हैं। इसके लिए पाञ्चजन्य परिवार को साधुवाद।
लाल बिहारी लाल
बदरपुर(नई दिल्ली)
० नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा 2014-15 का आम बजट सराहनीय रहा। केन्द्रीय वित्त मंत्री ने बजट प्रस्तुत करते हुए जो घोषणाएं की हैं वह देश के सभी वर्गों के हित में हैं। चाहे आयकर में बदलाव की बात हो या अन्य योजनाओं में बदलाव करके जो नई योजनाएं चलाई हैं उनसे आमजन को राहत मिलेगी। संप्रग सरकार ने पिछले दस वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था को गर्त में पहंंुचा दिया था। यह बजट वर्तमान अर्थव्यवस्था को संजीवनी प्रदान करेगा। देश में 5 नए एम्स,5 आइआइटी खोलने की घोषणा देशहित में है।
निमित कुमार जयसवाल,
मुरादाबाद(उ.प्र.)
० नये कलेवर में पाञ्चजन्य और भी आकर्षक हो गया है। 20 जुलाई के अंक में जिस प्रकार अलग-अलग क्षेत्रों को लेकर पाठकों को सामग्री उपलब्ध कराई गई वह अत्यधिक अच्छी है। सम्पादकीय में स्पष्ट रूप से पूरे बजट के सार को रखा गया है। इसके लिए पूरे पाञ्चजन्य परिवार को बधाई।
सूरज सिंह,
साहिबपुर(उ.प्र.)
० संप्रग सरकार के कार्यकाल में पूरे देश ने देखा है कि उनकी गलत नीतियों के कारण किस प्रकार पूरे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी ऐसी परिस्थिति में दिया गया बजट सराहनीय है। विषम परिस्थिति में आयकरदाताओं,वरिष्ठ नागरिकों,औद्योगिक घरानों, किसानों,सैन्यबलों तथा अर्द्ध सैन्यबलों के विषय में प्रमुखता से ध्यान देना अपने आप में विशेष है। आम आदमी को धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि संप्रग सरकार ने अर्थव्यवस्था को अत्यधिक लचर हालत में पहुंचा दिया था। ऐसे में उसे संभालने के लिए कुछ समय तो अवश्य ही लगेगा। अल्प समय के लिहाज से यह बजट काफी उम्दा है।
दिनेश गुप्ता,
कृष्णगंज,हापुड़(उ.प्र.)
हिन्दुओं को निशाना बंद हो
० आजकल किसी न किसी बहाने हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है। न जाने क्यों सेकुलर लोगों को हिन्दू से इतनी चिढ़ है? सदियों से और आज भी विदेशों से आये अन्य पंथों के लोग हिन्दुओं के साथ सहज भाव से रहते आए हैं। हिन्दू समाज ने किसी को भी परेशान और प्रताडि़त करने की चेष्टा कभी नहीं की। लेकिन फिर भीआज पूरे देश में कुछ लोगों द्वारा हिन्दुओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है। कोई अप्रिय घटना न घटे इसके लिए केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह देश में हो रही हिन्दुओं को निशाना बनाने की घटना को गंभीरता से ले।
धर्मवीर सिंह भास्कर
इंदिरापुरम,गाजियाबाद(उ.प्र.)
० पाकिस्तान में आए दिन हिन्दुओं के साथ अन्याय की खबरें आती रहती हैं। मजहबी उन्मादी उन पर अनेकों प्रकार से अत्याचार करते रहते हैं। विभाजन के समय पाक में 16 से 20 प्रतिशत हिन्दू थे पर आज यहां पर 1.5प्रतिशत ही रह गए हैं। यह बेहद आश्चर्यजनक और शर्मनाक है। छोटी सी बात का हौवा बनाने वाले मानवाधिकार संगठन इसे लेकर ऐसे चुप हैं जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं। पाकिस्तान में बसे हिन्दू को सम्मानपूर्वक जीवनयापन का अधिकार है। इसे लेकर न केवल भारत सरकार को चिंता करनी चाहिए बल्कि सयुक्त राष्ट्र संघ को इस पर पैनी नजर रखनी चाहिए।
मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग,प.निमाड(म.प्र.)
विश्व में फैलता इस्लामी तांडव
आज देश में ही नहीं बल्कि विश्व में इस्लाम का तांडव जगजाहिर हो चुका है। पूरा विश्व इस मजहब की कारगुजारियों को देख रहा है। विश्व में हो रहे इस्लामी तांडव को देखकर ऐसा लग रहा है कि इस्लाम अपने को श्रेष्ठ व ऊपर रखने के लिए दूसरों को खत्म करने पर अमादा है। आज चाहे इजरायल व फलिस्तीनी संघर्ष हो,इराक में शिया-सुन्नी खूनखराबा और पाकिस्तान और अफगानिस्तान व बंगलादेश में रहने वाले जिहादियों की हालात यह है कि वे मासूमों की जान लेने और बम फोड़ने में शुकून ही मिलता है। आज स्पष्ट हो गया है कि इस मजहब क्या उद्देश्य है।
विनोद कुमार सर्वोदय
नयागंज,गाजियाबाद(उ.प्र.)
कहां हैं राहुल बाबा?
जब से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक हार मिली है तब से राहुल गंाधी का कोई पता नहीं है। पूरे देश की गरीबी मिटाने और जनता का हमदर्द बनने वाले राहुल गंाधी लोकसभा चुनाव के निर्णय के बाद से गायब हैं। आखिर सवाल है कि क्या लोकसभा चुनाव तक ही उन्हें जनता की याद आती है? अब वे कहां ?
विपिन किशोर सिन्हा
मोहनपुरी एक्सटंेशन
वाराणसी(उ.प्र.)
विकृतपन का दोषी कौन?
किसी जमाने में धर्मयुग कादम्बनी,सत्यकथा या मनोहर कहानियां जैसी हिन्दी मासिक पत्रिकाएं आम घरों में पढ़ी जाती थीं। लेकिन जब से मनोरंजन मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रवेश हुआ तब से लगभग इन पत्रिकाओं का पढ़ना अत्यधिक कम हो गया। यह सत्य है कि मनोरंजन मीडिया में जितने भी नाटक आते हैं वे निराशाजनक,भद्दे,ईर्ष्याजनक ही होते हैं जिनको देखकर समाज में केवल नकारात्मक भाव ही उत्पन्न होता है। समाज इसी चक्कर में पड़ा हुआ है और इसे देखकर प्रेरणा लेता है। जब इन नाटकों और कार्यक्रमों से प्रेरणा लेगा तो उसकी मनास्िथिति कैसी होगी इसे समझा जा सकता है। इसमें गलती किसकी है? हमें समझना होगा कि हमें क्या देखना है और क्या नहीं ? क्या पढ़ना है क्या नहीं? पाश्चात्य सभ्यता से ओतप्रोत नाटक हमारे देश में एक प्रकार से विष घोलने का ही काम कर रहे हैं। समाज के सभी लोगों को चाहिए कि वह इन कार्यक्रमों से अपने व अपने परिवार से बचायें क्यांेकि इनसे ही हमारे परिवार में विकृत मानसिकता का भाव जागृत होता है।
रामानंदी अग्रवाल
सिविल लाइन्स,बिजनौर(उ.प्र.)
जनहित केन्द्र की हो स्थापना
देश और समाज के समक्ष चुनौतियां असंख्य हैं। ऐसे में उनके समाधान पर विचार मंथन व आम जनता के सुख-दुख जानने के लिए सरकारों को जनहित में एक केन्द्र खोलना चाहिए। जिससे समाज का व्यक्ति उस स्थान पर अपनी बात को रख सके।
श्रीनिवास जिंदल,
वानप्रस्थ आश्रम
हरिद्वार(उत्तराखंड)
नारी शक्ति देवी का रूप
भारतीय जीवन जीवन शैली को ही नहीं,अपितु मानव जीवन के लिए जड़-चेतन वस्तुओं का सहयोग मिलता है। इसके लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ही नहीं,अपितु अनिर्बन्ध स्नेह,प्रेम व श्रद्धा रखने की अति विशेष परंपरा है। अपने इस गरिमामय संस्कारों में नारी को शक्ति का रूप माना गया है। यह शक्ति शान्त रूप में माता,बहिन के रूप में मानव के प्रेरणा स्रोत बनकर अनेक कठिन मार्गों को सुगम बनाती है। समाज को चाहिए कि नारी को उसका दर्जा मिले इसके लिए सदैव प्रयत्नशील रहना होगा।
सगुुनाबाई,
जांजगीर चांपा(छत्त्ीसगढ़)
मीठा-कड़वा बजट
अंतरिम बजट के बाद आगे के आठ महीनों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित बजट बंधे हुए व्यक्ति के हाथों की बेचैनी जैसा दिखाई देती है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक जगत के सभी पहलुओं को कुछ न कुछ देने का या छूने का प्रयत्न किया है,जिनमें उद्योग,वाणिज्य,स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि विषयों में आने वाले वर्षों में एक निश्चित दृष्टि और कार्य योजना दिखाई देती है।।
आगे की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इन सारी योजनाओं पर और प्रस्तुत किए रोड मैप पर कितनी प्रतिबद्धता से चल पाती है। वर्तमान में राजनीतिक एवं सामाजिक ताने-बाने में किसी भी योजना को अमल में लाने में अनेक बाधाएं आने की संभावनाएं हैं। सरकार ने कठोर कदम उठाने की इच्छा जताई है। देखना यह है कि यह सरकार इन क्षेत्रों पर कितना कर पाती है। प्रभाकर केलकर,
लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालता यह बजट
नरेन्द्र मोदी सरकार का पहला बजट जनता को बहुत सुकून देने वाला बजट कहा जा सकता है। निसंदेह इससे शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी रोकने मे काफी सफलता मिलेगी। रोजगार के अवसर तो इस बजट से निकलेंगे ही साथ ही वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं के हित में राहत देकर सरकार ने उत्कृष्ट कार्य किया है। गलत नीतियों के कारण संप्रग सरकार ने पूरी तरह से अर्थव्यवस्था को घाछे में पहुंचा दिया था। लेकिन मोदी सरकार ने इसके बावजूद भी किसानों को, ग्रामीण बरोेजगारों को, निर्धनों को शिक्षा के अवसर, रोजगार के अवसर प्रदान करना, ग्रामीण स्वास्थ योजना, किसानों की उपज से बिचौलियों को दूर रखना, उनके हित में सबसे बड़ा कदम बढ़ाया। साथ ही किसान बचत पत्रों का फिर से प्रारम्भ करना, किसानों को सात प्रतिशत पर ऋण उपलब्ध कराना, ग्रामीणों के लिए राष्ट्रीय आवास नीति का बनाया जाना क्रांतिकारी कदम कहे जा सकते हैं। उत्तराखंड में हिमालय अध्ययन केन्द्र के निर्माण के लिए सौ करोड़, उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों के आर्थिक विकास के लिए कई करोड़ का पैकेज के साथ उत्तराखंड में रेल सुविधाओं को विकसित करने के लिए एक हजार करोड़ स्वीकृत करना तथा तीर्थ स्थलों के उद्घार के लिए सौ करोड़ रखना इस बजट की विशेषता रही है। पूरी तरीके से यह कहा सकता है कि बिगड़ी अर्थव्यवस्था को नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली ने फिर से जीवित करने करने की कोशिश की है वह भी अल्प समय में। इतने कम समय में सभी क्षेत्रों को समेटना अपने आप में विशेष है। जनता को थोड़ा धैर्य रखना होगा क्योंकि हो सकता समाज के कुछ लोग इस बजट से संतुष्ट न हों। उनके लिए आने वाले बजट अच्छे होंगे। निसंदेह इसे भारतीय इतिहास का सबसे अच्छा बजट कहा जा सकता है।
हेमचन्द्र सकलानी,
विकास नगर(नई दिल्ली)
हुए बहुत बदनाम
गुटबाजी ने कर दिया, सबका काम तमाम
तीनों सीटें हार कर, हुए बहुत बदनाम।
हुए बहुत बदनाम, उत्तराखंड बताता
उपचुनाव में खुला न बीज़े़पी. का खाता।
कह 'प्रशांत' जो पहले थी, वे दो भी हारे
झांक रहे हैं बगलें अब बनकर बेचारे॥
-प्रशांत
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