|
नेपाल की आंतरिक परिस्थितियां जहां एक ओर उत्तर प्रदेश, बिहार समेत उत्तर पूर्वी राज्यों में शांति व्यवस्था को प्रभावित करती हैं और वे भारत की आंतरिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण आयाम हैं, वहीं दूसरी ओर दक्षिण एशिया में चीनी महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर ये विदेश नीति का एक अहम मोर्चा है। नेपाल के माओवादी चीन तथा भारत के नक्सलवादियों से निकटता रखते हैं। नेपाल की माओवादी पार्टियों का भारत विरोधी रुख जगजाहिर रहा है। भारत में घुसपैठ के इच्छुक जिहादी भी नेपाल के माओवादियों से निकटता बढ़ाने में लगे हैं। भारत-नेपाल सीमा के दोनों ओर मदरसों और मस्जिदों का जाल बिछाया जा रहा है, जिन्हें अरब देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है। आईएसआई के लोग सक्रिय हैं, और स्थानीय मुस्लिम माफिया के साथ उनका गठजोड़ है। इन्हीं का उपयोग करके नकली नोट, हथियार व मादक पदाथार्ें को नेपाल सीमा से भारत में धकेला जा रहा है। भारत-नेपाल सीमा पर बड़ी संख्या में कश्मीरी आतंकियों का पकड़ा जाना बताता है कि भारत-नेपाल सीमा उनके लिए प्रवेश द्वार का काम कर रही है। दाउद इब्राहिम का लंबा-चौड़ा नेटवर्क यहां काम कर रहा है। ऐसे में नेपाल में किसी भी प्रकार की अस्थिरता भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है। नेपाल में स्थायी लोकतांत्रिक सरकार भारत के हित में है। जबकि चीन का सारा दाव माओवादियों पर लगा है। पाकिस्तानी सेना के साथ चीन का निकट संबंध बताता है कि चीन गैर लोकतांत्रिक संगठनों के साथ सहजता से निभा लेता है। म्यांमार का अनुभव भी यही इशारा करता है। चीन को यह भी अच्छी तरह पता है कि राजनीतिक रूप से अस्थिर नेपाल दक्षिण एशिया में उसके 'प्रतिद्वंद्वियों' के विरुद्घ ज्यादा उपयोगी हो सकता है। पश्चिम एशिया के कुछ अन्य खिलाड़ी भी मैदान में हैं।
टिप्पणियाँ