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15 अगस्त 1947 देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जानी थी। लेकिन जब देश के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू के साथ इस पर विचार विमर्श किया, तो उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि यह ऐसा दिन है जब हर कोई खुशी चाहता है
लाल किले की प्राचीर पर 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराना आज भले ही स्वतंत्रता दिवस का पर्याय है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि आजादी हासिल करने के बाद लाल किले पर पहली बार 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे लालकिले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया था। उस समय नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चलो दिल्ली के नारे और दिल्ली के लालकिले पर आजादी के ध्वज को फहराए जाने के अपने सपने का जिक्र किया था। उनके ध्वजारोहण से पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब ने शहनाई बजाकर पूरे माहौल को खुशगवार बना दिया था। उन्हें उसी सुबह वाराणसी से एयरफोर्स के विमान से दिल्ली लाया गया था। दरअसल नेहरू जी की इच्छा थी कि इस अवसर पर उस्ताद का शहनाई वादन होना चाहिए। राजधानी के मशहूर आईपी कालेज की प्रबंध समिति के प्रमुख लाला नारायण प्रसाद उस तारीखी मौके पर लाल किले पर मौजूद थे अपने मित्रों के साथ। उन्होंने बताया कि कई दिनों की भीषण गर्मी के बाद उस दिन मौसम बहुत सुहावना था। इसलिए दिल्ली के गांवोंके भी हजारों लोग नेहरू जी को सुनने लाल किले पर आए थे। पर लोगों को कहीं न कहीं बापू की अनुपस्थिति खटक रही थी। बापू तब नोखाली में सामप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए गए थे।
दरअसल 15 अगस्त 1947 के दिन वायसरायलॉज (अब राष्ट्रपति भवन ) में जब नई सरकार को शपथ दिलाई जा रही थी, तो लॉज के सेंट्रल होम पर सुबह साढ़े दस बजे आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहली बार फहराया गया था। इससे पूर्व 14-15 अगस्त की रात को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज कौंसिल हाउस के उपर फहराया गया, जिसे आज संसद भवन के रूप में जाना जाता है। इससे पहले 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस के ऊपर से यूनियनजैक को उतार लिया गया था। इस यूनियनजैक को आज इंग्लैंड के हैम्पशायर में नार्मन ऐबी आफरोमसी में देखा जा सकता है।
15 अगस्त 1947 को सुबह छह बजे की बात है। देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दिए जाने का कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में पहले समारोहपूर्वक यूनियनजैक को उतारा जाना था, लेकिन जब देश के अंतिम वायसराय लार्डमाउंट बेटन ने पंडित नेहरू के साथ इस पर विचार विमर्श किया, तो उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि यह ऐसा दिन है जब हर कोई खुशी चाहता है, लेकिन यूनियनजैक को उतारे जाने से ब्रिटेन की भावनाओं के आहत होने के अंदेशे के चलते उन्होंने समारोह से इस कार्यक्रम को हटाने की बात कही।
जिस समय प्रधानमंत्री वहां झंडा फहरा रहे थे उसी समय साफ खुले आसमान में जाने कैसे इंद्रधनुष नजर आया और उसे देखकर वहां जमा भीड़ हतप्रभ रह गयी। इस घटना का जिक्र माउंटबेटन ने 16 अगस्त 1947 को लिखी अपनी 17वीं रिपोर्ट में भी किया है, जिसे उन्होंने ब्रिटिश क्राउन को सौंपा था। उन्होंने रिपोर्ट में इंद्रधनुष के रहस्यमय तरीके से उजागर होने का जिक्र किया।
कहां गया ऐतिहासिक तिरंगा
अफसोस कि जिस तिरंगे को पहली बार पंडित नेहरू ने फहराया था, उसका कहीं अता-पता नहीं है। हमने उसे ढूंढने के लिए सबसे पहले राष्ट्रपति भवन का रुख किया। उधर के मालखाने में ऐतिहासिक धरोहर की कुछ वस्तुएं पड़ी हैं। पर राष्ट्रपति भवन के मीडिया प्रभारी वेणु राजमणि ने साफ कर दिया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि 15अगस्त,1947 को लाल किले पर फहराया गया तिरंगा इधर है। बिना हताश हुए हम राष्ट्रीय लेखागार निकल पड़े। इधर हमें कुछ आशा की किरण दिखाई दी। हमें इधर बताया गया कि यहां पर कुछ ऐतिहासिक अवसरों पर फहराए गए तिरंगे हैं। छानबीन करने पर मालूम चला कि इधर वह तिरंगा पड़ा है,जिसे 1946 की बंबई में हुई ऐतिहासिक नेवलम्युटिनी के दौरान भारतीय जवानों ने फहराया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से जुड़े डा़ अनिरुद्घ देशपांडे कहते हैं कि नेवलम्युटिनी से अंग्रेज सरकार हिल गई थी। माना तो यहां तक जाता है कि उसके बाद ब्रिटिश सरकार को समझ आ गया था कि अब भारत पर और राज करना मुमकिन नहीं होगा। उस सैन्य विद्रोह में शामिल सैनिकों के पास कांग्रेस और मुस्लिम लीग के झंडे थे। जाहिर है, यहां पर कांग्रेस का ही झंडा होगा। हमारी अंतिम उम्मीद राष्ट्ीय संग्रहालय थी, पर अफसोस यहां भी बात नहीं बनी। इधर की सूचना और स्वागत अधिकारी ममता मिश्र ने कहा कि हमारे पास मानव सभ्यता के अवशेष, मौर्यकालीन, गांधार,गुप्त तथा अन्य राजवंशों के दौर के भित्तिचित्र, तामपत्र और दुर्लभ कलाकृतियां तो हैं, पर कोई तिरंगा नहीं है। तो सवाल उठता है कि कहां गया वह ऐतिहासिक तिरंगा? -विवेक शुक्ला
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