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– भारतीय कृषि आज भी वर्षा पर निर्भर है। हमारे खाद्यान्न और तिलहन का 60 प्रतिशत हिस्सा खरीफ के मौसम में उत्पन्न होता है और जबकि मात्र 35 प्रतिशत भूमि सिंचित है।
ल्ल किसानों के पास खेती की नई तकनीकों की जानकारी का अभाव है। जिसका खामियाजा छोटे किसानों को भुगतना पड़ता है ।
– भारत में उर्वरकों के उपयोग में पर्याप्त वृद्धि हुई है, परन्तु विकसित देशों की तुलना में यह आज भी बहुत कम है। वर्ष 2008-2009 में प्रति हेक्टेअर उर्वरक उपभोग चीन में 279 किग्रा, इण्डोनेशिया में 147 किग्रा, मिस्र में 483 किग्रा, इटली में 204 किग्रा, जापान में 337 किग्रा था, जबकि इसी दौरान भारत में प्रति हेक्टेअर उर्वरक का उपयोग 128.6 किग्रा. रहा।
– भारत में 90 प्रतिशत किसानों के पास कुल भूमि का 38 प्रतिशत भाग है। इसका अर्थ यह है कि एक किसान के पास औसत 0.2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है। यह भूतमि भी कई टुकड़ों में बंटी हुई है।
– वर्तमान में कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 14% और हमारे कुल निर्यात में 11% हिस्सा है।
– भारतीय कृषि में पशुओं का अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है लेकिन आज इनकी स्थिति अच्छी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में अब तेजी से गैर पशु आधारित प्रणालियों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। एक हद तक यह ठीक है, लेकिन आज पशुपालन, मुख्यत: डेयरी उत्पादों, पशु मांस व अन्य पशु उत्पादों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण बनता जा रहा है, क्योंकि पशु को भी तेजी से आर्थिक इकाई माना जाने लगा है जो किसानों के लिए ठीक नहीं है
समाधान
– सिंचाई के लिए और ज्यादा बेहतर व्यवस्था करने की जरूरत है।
– किसानों के आर्थिक उत्थान के लिए उन्हें कृषि की नई व उन्नत तकनीकों की जानकारी देने की आवश्यकता है।
– कृषि के विकास के लिए किसानों को अच्छी किस्मों के बीजों का प्रचार सामुदायिक विकास केन्द्रों के माध्यम से किया जाना चाहिए।
हरित क्रांति की शुरुआत के एक दशक के अंदर गेहूं की पारंपरिक उपज (1,200 किलो-प्रति हेक्टेयर) उछलकर दोगुनी हो गई और बाद में यह और भी बढ़कर 3,500-4,000 किलो प्रति हेक्टेयर तक होने लगी।
अनाज का आयात एक करोड़ टन से गिरकर 1977 में लगभग शून्य रह गया। भारत उसके बाद से अनाज का निर्यातक बन गया है।
ग्रामीण बिजली और सड़कों के अलावा पक्के मकानों का निर्माण, छोटे व्यापार में प्रगति, ट्रांसपोर्ट, ट्रैक्टर जैसे दूसरे बदलावों ने हरित क्रांति को और तेज किया।
मैं एक किसान के घर में जन्मा और पला-बढ़ा ग्रामीण हूं। स्वाभाविक रूप से मैंने इस संस्कृति को आत्मसात किया है। मैं इसे प्यार करता हूं। इससे जुड़ी सभी समस्याएं मेरे मस्तिष्क में घूमती रहती हैं। मेरा मानना है कि देश का निर्माण करने में ग्रामीणों को उनका उचित हिस्सा मिलना चाहिए और ग्रामीणों का प्रत्येक क्षेत्र में प्रभाव होना चाहिए।
—मो. हामिद अंसारी, उपराष्ट्रपति -26 दिसम्बर, 2013 को महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में 'भारतीय कृषि में चुनौतियां ' विषय पर अपने व्याख्यान में
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