|
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा काठमांडू के विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मन्दिर को 2501 किलोग्राम चन्दन की लकड़ी भेंट की गई। इसके साथ ही मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए 25 करोड़ रुपए देने घोषणा की गई। भारत सरकार ने यह भी कहा कि पशुपतिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.), पशुपति क्षेत्र विकास समिति और नेपाली पुरातत्व विभाग की देखरेख में होगा। मन्दिर के प्रति मोदी सरकार की यह दरियादिली भारत के सेकुलर नेताओं को बर्दाश्त नहीं हो रही है। ये नेता सीधे तौर पर यह तो नहीं कह सकते थे कि एक मन्दिर को इतनी मदद क्यों दी जा रही है, क्योंकि यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल किसी प्राचीन स्थान के जीर्णोद्धार के लिए कोई भी सरकार पैसा खर्च कर सकती है। इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को उठाने के लिए ईद का बहाना लिया। 5 अगस्त को संसद में तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा कि पशुपतिनाथ मन्दिर को मदद देना तो ठीक है, पर प्रधानमंत्री ने ईद पर मुसलमानों को बधाई क्यों नहीं दी? जबकि ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री ने ईद की बधाई दी थी, लेकिन इन नेताओं का बधाई से मतलब था प्रधानमंत्री ने अपने आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन क्यों नहीं किया? कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आजादी के बाद से ही प्रधानमंत्री द्वारा इफ्तार पार्टी देने की परम्परा रही है, फिर इस बार ऐसा क्यों नहीं हुआ? अधीर का यह बयान सेकुलर नेताओं की मंशा साफ कर देता है। सच बात तो यह है कि सेकुलर नेताओं को प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का किसी मन्दिर में जाना सुहा नहीं रहा है। यही नेता उस समय चुप रहते हैं, जब दिल्ली की जामा मस्जिद या अन्य मुगलकालीन खण्डहरों के जीर्णोद्धार के लिए पानी की तरह सरकारी पैसे बहाए जाते हैं। प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ