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अब आपको ठंड लगती है, तब हमें भी ठंड लगती है।' 3 जुलाई को नरेंद्र मोदी ने नेपाल की संविधान सभा को संबोधित करते हुए जब ये शब्द कहे तो वे भारत और नेपाल के पारस्परिक व पारम्परिक संबंधों के महत्व को रेखांकित कर रहे थे। कूटनीतिक हलकों में चर्चा थी कि नेपाल की संविधान सभा में प्रधानमंत्री का भाषण दोनों देशों के संबंंधों की दिशा तय करेगा। इस भाषण ने सभी तार सही जगह पर कंपित किए, और इससे जो सुर निकला, वह आशा जगाने वाला है।
नेपाल में इस दौरे को सकारात्मक ढंग से देखा गया। तीन दशकों बाद भारत मंे एकदलीय पूर्ण बहुमत सरकार बनी है, जिसकी विदेश नीति की प्राथमिकताओं में नेपाल सबसे ऊपर है। भारत की गठबंधन सरकारों ने नेपाल को भी प्रभावित किया है। याद कीजिए 12 मई, 2005 को तत्कालीन मनमोहन सरकार द्वारा 'बाहर' से समर्थन दे रही वामपंथी पार्टियों को दिया गया आश्वासन, कि भारत सरकार नेपाली शासन को सिर्फ ट्रकों की आपूर्ति कर रही है। माओवादी विद्रोहियों से लड़ने के लिए हथियार नहीं दे रही है।़.़ भारत में मजबूत व स्थिर सरकार नेपाल को महत्व दे रही है, और 17 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री का नेपाल जाना हुआ, इसका उत्साह सब ओर देखा जा सकता था। मोदी का जादू नेपालवासियों के सर चढ़कर बोल रहा था। 'घर-घर मोदी' के नारे खूब लगे।
नेपाली टाइम्स की राजनीतिक व सुरक्षा मामलों की स्तंभकार रूबीना महतो ने ट्वीट किया कि 'जिस प्रकार से लोग दीवाने हो रहे हैं, उसे देखकर लगता है, कि यदि मोदी यहां से चुनाव लड़ें तो नेपाल के प्रधानमंत्री बन जाएंगे।' भारत-नेपाल संबंधों में सारी कूटनीतिक वार्ताओं और विदेश नीति के सतही बहाव को छोड़कर गहरे में संस्कृति का प्रवाह ही मुख्य उत्प्रेरक है। प्रधानमंत्री के इस दौरे में सांस्कृतिक संबंधों को जैसा महत्व दिया गया उसने नेपाली जनमानस को प्रभावित किया। सोमनाथ और काशी विश्वनाथ से लेकर पशुपतिनाथ तक की कथा वातावरण में तैरती रही। नेपाल के कान संविधान सभा की ओर लगे थे, तो आंखें पशुपतिनाथ मंदिर पर टिकी थीं। सुरक्षा के लिए जब भक्तों के मंदिर प्रवेश पर कुछ देर के लिए रोक लगाई गई तो लोगों ने उसे सहज प्रसन्नता से स्वीकार किया। जीत बहादुर, जिसे मीडिया ने मोदी का 'धर्मपुत्र' और 'धर्मभाई' कहकर संबोधित किया, उसकी कहानी ने इस यात्रा को मानवता का स्पर्श दिया। मोदी की व्यक्तिगत सौजन्यता ने नेपालवासियों के दिलों में गहरी जगह बनाई है।
प्रधानमंत्री के नेपाल प्रवास से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेपाल दौरे ने बातचीत की अच्छी जमीन तैयार की। सत्तारूढ़ नेपाली कांगे्रस के नेताओं से लेकर विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं के साथ सुषमा स्वराज की भेंट हुई। कहा जाता है, कि इस बैठक में विदेश मंत्री ने कम्युनिस्ट नेताओं को नेपाल के संविधान निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार करने का प्रयास किया। प्रचंड से भी अच्छी बात हुई।
'सीमा बाधा नहीं, सेतु बने'
नरेन्द्र मोदी पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिन्होंने नेपाल की संविधान सभा को संबोधित किया। 45 मिनिट के उद्बोधन में मुस्कुराते हुए सभासद बार-बार मेज थपथपाते रहे। इसे हर प्रकार से ऐतिहासिक उद्बोधन कहा जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने ट्वीट किया, 'प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की संविधान सभा में अपने जादुई उद्बोधन से नेपालियों के दिलों को जीत लिया है।'
पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड, जिन्होंने नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद परंपरा को तोड़ते हुए भारत के स्थान पर पहले चीन की यात्रा की थी, और समय-समय पर भारत की आलोचना करते रहे हैं, का कहना था 'मोदी ने दिल को छूने वाला भाषण दिया।' प्रचंड ने आगे कहा 'भारत-नेपाल संबंधों का नया अध्याय प्रारंभ होने जा रहा है।'
मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत भारत और नेपाल की समान हिन्दू जड़ों से की और कहा कि भारत और नेपाल का रिश्ता गंगा और हिमालय जितना पुराना है। नेपालियों के योगदान को सराहते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दुस्थान द्वारा जीती गई ऐसी कोई लड़ाई नहीं है, जिसमें किसी नेपाली का रक्त न बहा हो। साथ ही फील्ड मार्शल मानेक शॉ को उद्धृत किया कि 'कोई जवान ये कहे कि मैं मृत्यु से डरता नहीं हूं तो वो या तो झूठ बोल रहा है या वो गुरखा है।' 'प्रोटोकॉल' से अलग हवाई अड्डे जाकर मोदी की अगवानी करने वाले प्रधानमंत्री सुशील कोईराला और माओवादी प्रचंड, दोनों के चेहरों पर इन शब्दों का असर देखा जा सकता था। भाषण के अगले दस मिनट नेपाल में शांति, लोकतंत्र, संविधान निर्माण को समर्पित थे। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने नेपाल संविधान सभा के अध्यक्ष को 'भारतीय संविधान का निर्माण' नामक पुस्तक भेंट की। जब उन्हांेने कहा कि 'संविधान कल, आज और कल को जोड़ता है। आप युद्ध छोड़कर शांति की ओर आ रहे हैं। बुलेट छोड़कर बैलेट की ओर आ रहे हैं। मैं आपका अभिनंदन करना चाहता हूं', तो इस बात के गहरे निहितार्थ थे। इन शब्दों के द्वारा जहां एक ओर माओवादियों पर शांति तथा संविधान निर्माण प्रक्रिया में सहयोग के लिए सकारात्मक ढंग से दबाव बनाया गया था, वहीं दूसरी ओर नेपाल में दुष्प्रचारित इस बात का निवारण करने का प्रयास किया कि भारत नेपाल में राजशाही चाहता है और वर्तमान परिवर्तनों को पसंद नहीं करता। युवा नेपालियों के मन में एक और बात डालने का प्रयास किया जाता रहा है कि भारत नेपाल को अपना एक 'राज्य' समझता रहा है। मोदी ने इस भ्रम का निवारण करते हुए कहा, 'हमारा काम आपको दिशा देने का नहीं है, दखल देने का नहीं है। आप जो दिशा चुनें उसमें हम काम आ सकें ऐसी हमारी इच्छा है। नेपाल सार्वभौम राष्ट्र है।' विरोधियों को निरस्त्र करने का ये प्रभावशाली तरीका था।
विकास की कमी और आधारभूत ढांचा नेपाल की दुखती रग रही है। मोदी अपने अंदाज में इस पर खुलकर बोले। उन्होंने कहा कि नेपाल पानी की शक्ति का धनी है और केवल भारत को ही बिजली बेच कर विकसित देशों की कतार में खड़ा हो सकता है। उन्हांेने आगे कहा नेपाल में भारत से ट्रकों द्वारा तेल आता है, यह पाइपलाइन से क्यों न आए? हम इसे पूरा करेंगे। हिमालय की गोद में बसा नेपाल हर्बल जड़ी-बूटियों का निर्यातक क्यों नहीं बन सकता? सवा सौ करोड़ भारतवासी अपने जीवन में कभी न कभी पशुपतिनाथ और लुम्बिनी आना चाहते हैं। नेपाल पर्यटन की ऊंचाइयां छू सकता है। और, एडवेंचर टूरिज़्म के लिए हिमालय से अच्छी जगह कौन सी हो सकती है।
प्रधानमंत्री ने नेपाल के पंचेश्वर प्रोजेक्ट को जल्दी पूरा करने में पूरे सहयोग का आश्वासन दिया। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से नेपाल का बिजली उत्पादन पांच गुना बढ़ जाएगा। उन्होंने भारत और नेपाल के बीच फोन दरों को कम करने की आवश्यक्ता बताई। इस भाषण के बाद नेपाल के पत्रकार अजय भद्र खनाल ने ट्वीट किया – 'इन 40 मिनटों में मोदी ने भारत-नेपाल संबंधों की दिशा बदल दी है और संभवत: नेपाल का भविष्य भी।' स्तंभकार रूबीना महतो के दो अन्य ट्वीट इस प्रकार हैं- एक, 'महाकाली पर सेतु से लेकर सार्क सैटेलाइट तक मोदी ने हर चीज़ का वादा किया।' और दूसरा, 'अब जबकि मोदी ने अनेक बार ये कह दिया है कि बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था, हमारे छद्म राष्ट्रवादी विश्राम ले सकते हैं।'
नई शुरुआत
प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा से भारत-नेपाल संबंध नई राह पर आए हैं। अपने नेपाल प्रवास में उन्होंने भारत और नेपाल की समान संस्कृति पर जोर दिया एवं इसे द्विपक्षीय संबंधों और विकास से भी जोड़ा। पशुपतिनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी मूल भट्ट गणेश भट्ट ने कहा – 'हम उनके हिंदू संस्कृति संरक्षण के प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।'
गठबंधन सरकारों के दौर में नेपाल में ये भावना घर करने लगी थी कि भारत केवल वादे करता है, जबकि चीन अपने वादों को पूरा करता है। पिछले दस वषार्ें में संप्रग सरकार ने नेपाल की पूर्ण उपेक्षा की। इस बीच चीन नेपाल से सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाता रहा। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए चीन ने नेपाल में 1़ 6 बिलियन डॉलर की 750 मेगावॉट क्षमता वाली सेती नदी परियोजना प्रारंभ की। त्रिशूल नदी पर 60 मेगावॉट की एक अन्य परियोजना के लिए वह धन दे रहा है एवं नेपाल के अंदर सड़कें तथा पुल बना रहा है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़) का निर्माण कर रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा 5600 मेगावॉट की पंचेश्वर परियोजना, तेल पाइपलाइन और आधारभूत ढांचे के विकास के लिए लगभग एक बिलियन डॉलर का न्यून ब्याज दर पर कर्ज एक अच्छी शुरुआत है।
मोदी द्वारा दिया गया एच़ आई़ टी. मंत्र (हाईवेज़, इन्फोवेज़ और ट्रांसवेज़) दोनों देशों के लिए तीन बड़ी संभावनाएं हैं। हाईवे भारत के राज्यों और शहरों को नेपाल के तीर्थस्थलों और पर्यटन स्थलों से जोड़ सकते हैं। आई. टी. क्षेत्र नेपाल के युवा को सशक्त करेगा। साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक संबंध एवं भाषा की सहजता नेपाल की आई. टी. पीढ़ी को किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के ही अधिक निकट लाएगी। साथ ही दूरसंचार तंत्र (ट्रांसवेज़) दोनों देशों के बीच दूरसंचार और विद्युत के प्रवाह को आसान बनाएगा। नेपाल में श्रम का कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) एक बड़ी आवश्यकता है। इसके लिए भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पांच भारतीय राज्यों – हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल-से नेपाल का जुड़ना बड़ा आर्थिक बदलाव ला सकता है। नेपाल की सीमाएं समुद्र से बहुत दूर हैं। उसे कोलकाता बंदरगाह की आवश्यकता है। भारत सरकार की नीति में इन सारी बातों के लिए स्थान दिख रहा है।
1950 की भारत-नेपाल शांति-मैत्री संधि नेपाल में असंतोष का विषय बनी हुई है। नेपाली कुलीनों को लगता है कि ये संधि असमानता बढ़ाने वाली है। कुछ राजनीतिक दलों द्वारा इस संधि का जिक्र नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं उकसाने के लिए किया जाता है। मोदी ऐसे सभी राजनीतिक दलों से मिले हैं। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री सुशील कोईराला से मोदी ने इस संधि के विषय में चर्चा की और उनसे इस संधि पर नए दृष्टिकोण से नया ड्राफ्ट तैयार करने का आग्रह किया एवं उसे अपने पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया। दोनांे देशों के संबंधों में नए सिरे से विश्वास बहाल करने की यह कोशिश कारगर पहल हो सकती है। मजबूत होते भारत-नेपाल संबंध अन्य दक्षेस देशों को भारत-दक्षेस संबंधों के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए प्रेरित करेंगे।
अराजकता भरे दो दशक
नेपाल में नवंबर, 1994 के चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था और अगले पांच वषार्ें में पांच अस्थिर गठबंधन सरकारंे आईं। इसी बीच माओवादी विद्रोही सत्ता को हथियाने के लिए हथियार उठा कर मैदान में उतर आए। जून, 2001 में अपने ही वंश के हाथों राज परिवार मिट गया और स्वर्गीय राजा के भाई ज्ञानेंद्र सिंहासन पर आए। इस बीच माओवादी छापामार नेपाल के अंचलों में खून की होली खेलते रहे। फरवरी, 1996 से प्रारंभ हुई हिंसा नेपाल में 75 में से 50 जिलों में फैल गई। पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और नागरिकों के विरुद्घ हत्या, यातना, अपहरण, फिरौती, आतंक और बम विस्फोट को हथियार के रूप में उपयोग किया गया। 13 फरवरी, 1996 से लेकर 21 नवंबर, 2006 तक चले इस गृहयुद्ध में 17,800 लोग मारे गए। लाखों विस्थापित हुए। असफल शांति वार्ताओं के दौर चलते रहे। आपातकाल लगा। फरवरी, 2005 से अगले 15 महीनों तक नेपाल सीधा राजा ज्ञानेंद्र के शासन में रहा।
अप्रैल, 2006 में राजनीतिक पार्टियों के दबाव में राजा ज्ञानेंद्र ने सत्ता के सूत्र छोड़े, और 7 पार्टियों की गठबंधन सरकार में नेपाली कांगे्रस के गिरिजाप्रसाद कोईराला प्रधानमंत्री बने। माओवादियों और सरकार द्वारा युद्धविराम की घोषणा हुई, दोनों के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए। दिसंबर, 2007 को सरकार में शामिल सातों दलों और माओवादी नेताओं ने मिलकर राजशाही के समापन और नेपाल के संघीय लोकतंत्र बनाने की घोषणा की। अप्रैल, 2008 में नेपाल में नया संविधान बनाने के लिए चुनाव हुए और प्रथम संविधान सभा बनी, जिसमें माओवादियों का बहुमत था। सभा ने पुराने माओवादी पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड को प्रधानमंत्री चुना। नेपाल के अंदर आशंकाएं व्याप्त थीं। सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक गतिरोध जारी रहे। वैचारिक अंतर्द्वद्वों से भरी संविधान सभा किसी मतैक्य पर पहुंचने में विफल रही। अंतत: नवंबर, 2013 में दूसरी संविधान सभा के चुनाव हुए, जिनमें नेपाली कांग्रेस को 29 प्रतिशत वोट और 196 सीटें मिलीं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल को 27 प्रतिशत वोट और 175 सीटें मिलीं। प्रचंड की यूसीपीएन (माओवादी) को 17 प्रतिशत वोटों और 80 सीटों पर संतोष करना पड़ा। नेपाली कांग्रेस के सुशील कोईराला प्रधानमंत्री बने।
-प्रशांत बाजपेई
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