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हमारे देशभक्तों ने हमें स्वतंत्रता इसलिए दिलायी थी कि हम स्वतंत्र होकर अपनी धूल धूसरित संस्कृति का विकास कर सकें, किंतु स्वतंत्र होकर हम भोगों में इतने मग्न हो गये कि स्वतंत्रता के पावन लक्ष्य को ही भूल गये भारत माता के प्रति श्रद्धा भक्ति छूमंतर हो गयी और इनके स्थान पर ऐसी दानवता उमड़ी कि वे अपने ही देश को लूटने लगे। लूट का जो सिलसिला चला, वह अब भी जारी है-तोप,चीनी,चावल, तेल, खाद, चारा आदि घोटाले लूट के ज्वलंत प्रमाण हैं। इतना ही नहीं अपनी मां-बहिनों का चीर हरण करने में भी उन्हें लाज तक नहीं आती। यथा राजा तथा प्रजा की कहावत के अनुसार जनता भी वैसा ही आचरण करने लगी।
आज देश में सर्वत्र रिश्वत-तस्करी, दलाली का बाजार गर्म है, बेईमानी और धोखाधड़ी फल-फूल रही है, लूट-डकैती, चोरी, अपहरण, अत्याचार, दुराचार, व्यभिचार जैसी आपराधिक घटनाएं हो रही हैं, अन्याय, शोषण चरम पर हैं, घोटालों ने देश का दिवाला निकाल दिया है और हिंसा का तांडव हो रहा है। सत्य, न्याय, सच्चरित्रता पैसों से बिक रही हैं। उत्तरोत्तर बढ़ती विष रस भरी कनक घट जैसी टीवी संस्कृति विनाशाग्नि को भड़काने में घी की भूमिका निभा रही है। चरित्रधनी भारतीयों को चरित्रहीन बनाने में टीवी संस्कृति का बहुत बड़ा हाथ है। दुष्चरित्रता पराकाष्ठा को भी पार कर चुकी है। हमारी अध्यात्म चेतना को जगाने वाले संत क्या से क्या कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नोएडा क्षेत्र से प्रकाशित श्रीरामचरितमानस सत्संग समिति की स्मारिका विशेष उल्लेखनीय और सराहनीय है, क्योंकि इसमें संत तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में वर्णित अखिल ब्रह्मांड नायक, जगन्नियंता, जगदीश्वर, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन मधुर लीलाओं के आधार पर लेख हैं, जिनमें मानव-जीवन के उच्चतम आदर्श , सच्चरित्र, सद्व्यवहार, आदर्श गृहस्थ धर्म, पतिव्रता धर्म, पारिवारिक जीवन, कर्म भक्ति ज्ञान, सदाचार और लोकव्यवहार की शिक्षा से ओत प्रोत है।
दूसरे शब्दों में कहें तो यह श्रीरामचरितमानस से संबंधित प्रेरणादायक लेखों का संकलन है, जिनके पढ़ने से वर्तमान समाज का नैतिक उत्थान और मानव कल्याण हो सकता है, इसलिए वर्तमान समय में ऐसे संकलन की परम आवश्यकता है। श्रीरामचरितमानस सत्संग समिति का उद्देश्य श्रीराम के पावन चरित्र का प्रचार प्रसार कर धर्म एवं समाज की सेवा करना है।
श्रीरामचरितमानस से हमें यह शिक्षा मिलती है कि राम के समान व्यवहार करना चाहिए, रावण के समान नहीं, इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का पावन चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय है। इसमें प्रकाशित सभी लेख प्रेरणादायक हैं, जो समाज के हर वर्ग के लिए उपयोगी हैं।
डा.भगवानदास पटैरया की श्रीरामजन्म महोत्सव एवं संगीतमय श्रीरामकथा की झलकियां नाम स्तंभ प्रशंसनीय है। इसमें कथावाचक मानस मर्मज्ञ आचार्य श्री बैजनाथ शुक्ला के द्वारा व्यक्त गंभीर भाव सहज ही समझ में आते हैं। आचार्य श्याम बाबू शास्त्री तरंग की कविता तुलसी का पौधा और ग्रंथ पठनीय है। श्री देवेन्द्र शर्मा द्वारा लिखित मज्जन फल पेखिय तत्काला लेख में सत्संग की महिमा बतलायी गयी है। पं. रामगोपाल तिवारी मानसरत्न द्वारा लिखित लेख बंदउॅं गुरु पद कंज में गुरु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विद्वान लेखक ने गुरु को सगुण साकार ब्रह्म बतलाया है। श्री ए.पी.मिश्र ने अपने लेख में बतलाया है कि दान करने से द्रव्य दोष दूर होता है।
देहु एक बर भरतहिं टीका नामक लेख में पं. दिनेशचन्द्र शर्मा ने रामवनवास के लिए माता कैकेयी पर लगे लांछन को धोकर भगवान राम के अवतार के प्रयोजन में सहयोगी बताकर यह सिद्ध किया है कि राम वनवास में माता कैकेयी निर्दोष थीं, क्योंकि उन्होंने भगवान श्रीराम के अवतार के प्रयोजन (रावण वध) हेतु ही राम वनवास दिलाया था और वह श्रीराम की प्रेरणा थी इसलिए कैकेयी तो भगवान राम की अनन्य भक्त थीं। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला लेख में श्रीमती रीता कश्यप का कथन है कि आस्था की उंगली थामकर व्यक्ति तमाम झंझटों और उलझनों को दूरकर उस पार पहुंच जाता है। श्री रामवीर सिंह द्वारा लिखित अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ लेख में यह दर्शाया गया है कि अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के मंत्री सुमंत्र जी ने राम वनवास में अपने को दोषी माना है, इसलिए उन्होंने 14 वर्ष तक किसी को अपना मुंह नहीं दिखाया। श्रीराम के अयोध्या आने पर ही वे समाज के सामने आते हैं।
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी लेख में लेखक श्री सोमदत्त गुप्ता ने इस चौपाई की बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से व्याख्या कर एक विशेष जाति वर्ग में फैली भ्रांतियों को ऐसे छिन्न भिन्न किया है, जैसे वायु के वेग से घटाएं छिन्न भिन्न हो जाती हैं। भ्रांतिग्रस्त लोगों के लिए यह लेख पठनीय है। रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि नामक लेख में श्रीरामभक्त अनुमान के चरित्र पर उठने वाली कई शंकाओं का सप्रमाण समाधान कर लेखक ने सराहनीय कार्य किया है। पं. रामनरेश तिवारी पिण्डीवासा द्वारा लिखित प्रातकाल उठि कै रघुनाथा लेख में राम की दिनचर्या, शील, स्वभाव और त्याग को दर्शाया है। डा.भगवान दास पटैरया अपने लेख भजत कृपा करहिं रघुराई में लोगों को रामकथा सुनने के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं कि रामकथा सुनने का विशेष महत्व है, क्योंकि मन लगाकर कथा सुनने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। श्रीमती राजवती शर्मा द्वारा लिखित करम प्रधान बिस्व करि राखा नामक लेख में कर्म का बड़ा गंभीर और विशद विवेचन किया है। श्रीमती कुसुम पटैरया द्वारा लेख हरिजन इव परि हरि सब आसा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम सांसारिक प्राणी हैं और संसार भव सागर है तो फिर हमारे जीवन में दुख तो रहेंगे ही। पं.बृजगोपाल पाठक द्वारा लिखित छठे श्रवन यह परत कहानी लेख से कई शिक्षाएं मिलती हैं- लोभ नहीं करना चाहिए, संत से असत्य भाषण नहीं करना चाहिए। ब्राह्मणों का शाप कभी निष्फल नहीं जाता, इनके अतिरिक्त डा.राजाराम त्रिपाठी, वैद्य अच्युत कुमार त्रिपाठी इस प्रकार श्रीराम चरित्र मानस सत्संग समिति द्वारा प्रकाशित यह स्मारिका उपयोगी एवं संग्रहणीय है। आदि के लेख भी पठनीय और सराहनीय हैं।
सरल शास्त्री
पुस्तक का नाम – श्रीरामचरितमानस सत्संग समिति
(स्मारिका)
लेखक – पं. दिनेश चन्द्र शर्मा
– ए-447, सेक्टर-47,
नोएडा-201303
मुद्रक – एक्सप्रेस प्रिंट हाउस, गाजियाबाद
मूल्य – नि:शुक्ल वितरण डाकखर्च देय
पृष्ठ – 214
सम्पर्क – 9811056467
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