आवरण कथा- पागलपन की पाठशाला
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आवरण कथा- पागलपन की पाठशाला

by
Aug 2, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Aug 2014 16:35:06

मार्च 2014 में लंदन के क्वीन मेरी विश्वविद्यालय ने ब्रिटेन के 18-45 आयु वर्ग के मुसलमानों के बीच एक सर्वे किया। सर्वे मुसलमानोंं में इस्लामी कट्टरवाद के प्रभाव को जानने के लिए किया गया। निष्कर्ष अनेक लोगों के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं। परिणामों के अनुसार युवा, धनी और शिक्षित मुसलमानों में कट्टरता के प्रति अधिक झुकाव देखने में आया। जिहादी गुटों में शामिल होने जा रहे यूरोपीय मुसलमान युवकों में जर्मनी का गायक, ग्लासगो (स्कॉटलैण्ड) का चिकित्सा छात्र, कनाडा का कैमिकल इंजीनियरिंग का छात्र शामिल था। ग्लासगो हवाईअड्डे को बम से उड़ाने का प्रयास करने वाला मुस्लिम युवक डॉक्टर था, तो डेट्रायट (अमरीका) के आसमान में हवाई जहाज मंे विस्फोट की योजना एक धनी राजनयिक के पुत्र ने बनाई थी। 5 जुलाई 2007 को ब्रिटिश समाचार पत्र द टेलीग्राफ में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें 45 युवा मुस्लिम चिकित्सकों के खिलाफ चल रहे मुकदमे का ब्यौरा दिया गया था, जो अमरीका के महत्वपूर्ण ठिकानों पर कार बम और रॉकेट-ग्रेनेड से हमले की योजना बना रहे थे। ये योजना इंटरनेट के माध्यम से एक जिहादी 'चैटरूम' में बनाई जा रही थी।
हाल ही में जुलाई माह में इराक के किर्कुक शहर में आईएसआईएस ने आत्मघाती हमले में 30 जिंदगियां लील लीं। इस हमले में जान देने वाला युवा आत्मघाती हमलावर फैसल बिन शामान अल आंज़ी पेशे से डॉक्टर था। अल कायदा का वर्तमान मुखिया अयमन अल जवाहिरी मेधावी छात्र रहा है और शल्य चिकित्सक (सर्जन) है। ओसामा बिन लादेन धनाढ्य सिविल इंजीनियर था। इराक में खून की होली खेल रहे आईएसआईएस के मुखिया और तथाकथित खलीफा अबू बकर अल बगदादी ने बगदाद के प्रतिष्ठित इस्लामी विज्ञान विश्वविद्यालय से पीएचडी की है।

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अब भारत की बात करें। सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के नाम से सामने आए जिहादी आतंकियों पर दृष्टि डालें। भारत का बिन लादेन कहा जाने वाला अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स का डिप्लोमाधारी है। उसने सॉफ्टवेयर मेंटेनेंस का विशेष प्रशिक्षण भी लिया है। 7/11 मुंबई धमाकों का योजनाकार रियाज भटकल इंजीनियर है। साजिद मंसूरी मनोविज्ञान का स्नातक है। उज्जैन के प्रतिष्ठित सुन्नी मुस्लिम परिवार में जन्मे सफदर नागौरी के पिता वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे।
इराक में आईएसआईएस के लड़ाकों का साथ देने के लिए घर से भागे मुंबई के 4 युवकों में से एक युवा इंजीनियरिंग छात्र आरिफ फयाज मजीद के पिता एजाज मजीद ने मीडिया में आकर सुरक्षा एजेंसियों से गुहार लगाई कि 'आप (सुरक्षा एजेंसियां) दूसरे अभिभावकों को आगाह कीजिए कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें।'
व्याधि की जड़
भारत समेत सारी दुनिया में उच्च शिक्षा प्राप्त, साधन-संपन्न मुस्लिम युवकों का बड़ी संख्या में जिहादी अतिवादिता की ओर आकर्षित होना समस्या की वास्तविक जड़ों की ओर इशारा कर रहा है। हजारों मदरसे इस्लामी जिहादियों की फसल उगाने के लिए उपजाऊ जमीन बने हुए हैं, परंतु ऊपर जिन आतंकियों के नाम आए उनमें से कोई भी मदरसे में शिक्षित नहीं हुआ था। गरीबी या मानसिक व्याधि से ग्रस्त नहीं था। ये सभी आतंकी सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि से आते हैं,अर्थात् इनके मन मस्तिष्क में व्याप्त व्याधि की जड़ें कहीं गहरी हैं। प्राय: सभ्य समाज इसे पहचानने और स्वीकार करने में हिचकता है। ये बीमारी है मजहबी कट्टरता। अपनी पूजा पद्घति, अपनी मजहबी किताब को एकमात्र सत्य और शेष को गलत मानने की शिक्षा। इसे पहचानने में सभ्य समाज जितनी देर करेगा, विभीषिका उतनी गहरी होती जाएगी।

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समाज को उन तत्वों, विचारों और संस्थाओं की भी पहचान करनी होगी जिनके आंगन में जिहाद की फैक्टरियां फलती-फूलती हैं। हमें समझना होगा कि इस कट्टरता को पोषित करने के लिए जिम्मेदार वे लोग हैं, जो दुनिया भर के मुसलमानों को अपने देश की राष्ट्रीय धारा से एकरस नहीं होने देते, जो अपनी सोच के दायरे से बाहर के लोगों के प्रति घृणा और हिंसा का पाठ पढ़ाते हैं।
पिछली शताब्दी में वैश्विक मुस्लिम जगत को प्रभावित करने वाली अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। उनमें से दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाएं चुननी हों, तो पहले क्रमांक है पर अरब की रेतीली धरती में तेल के स्रोतों की खोज और वहाबी शासकों के हाथ में अकूत संपत्ति और प्रभाव का आना। दूसरी महत्वपूर्ण घटना होगी अफगान जिहाद और उसके बाद सारे विश्व में वहाबी कट्टरता की हवा बहनी शुरू होना, जिसके बाद वहाबी विचारधारा आतंक का वैचारिक आधार बनती चली गई। आज सारे विश्व में जिहादी आतंक की जड़ों को फैलाने के लिए वहाबी विचार और वहाबी उपदेशक यंत्र का काम कर रहे हैं। सऊदी अरब व अरब प्रायद्वीप के अन्य वहाबी देश विश्व भर के मुसलमानों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इस विचार को धरती पर फैलाने में लगे हुए हैं और इसके लिए अपनी अथाह तेल संपदा का उपयोग कर रहे हैं। इसी वहाबी जल से आतंक की फसल को सींच कर पाकिस्तान की आईएसआई उसे भारत समेत सारी दुनिया में निर्यात कर रही है। इस्लामी कट्टरता की इस नयी हवा का ही परिणाम है कि यूरोप का रहवासी मुस्लिम अपने देश के कानून को रद्द कर मध्ययुगीन शरिया कानून लागू करने की मांग करता है। पाकिस्तान में पैगंबर की निंदा के आरोप में दो बच्चों और एक शिशु को उनके घर समेत जला दिया जाता है। अफ्रीका के दूरदराज इलाकों में संगकशी (पत्थर मार-मार कर मौत की सजा) की घटनाएं सामने आती हैं। और भारत के अंदर दर्जनों जिहादी आतंकी संगठन खड़े हो जाते हैं।
विचारवान मुस्लिम मानस में हलचल
इन घटनाओं से विश्व के अनेक बुद्घिमान मुस्लिम विचारक व्यथित और आंदोलित हुए हैं। वे अनुभव कर रहे हैं कि इन रुझानों का रुख यदि मोड़ा नही गया तो एक दिन सब कुछ भस्म हो जाएगा। लेखन और चर्चाओं का दौर शुरू हुआ है। शुरुआत छोटी है, पर उपायों की खोज प्रारंभ हुई है। तुर्की ने इस्लाम की आधुनिक संदर्भ में व्याख्या का प्रयास किया है। तुर्की सरकार ने हदीसों के अध्ययन और काल बाह्य हदीसों को अमान्य करने का काम हाथ में लिया है। इस्लामी साहित्य को आधुनिकता की छलनी से छाना जा रहा है। मिस्र की सेना के तरीके पर अलग से चर्चा की जा सकती है, पर देश की कमान हाथ में लेकर वे कट्टरवादी तत्वों से कठोरता से निपट रहे हैं। बंगलादेश में बंगाली परंपरा और मुक्तिबाहिनी के शौर्य पर गर्व करने वाला वर्ग और वहाबी, जमात व पाकिस्तान परस्त कट्टरवादी तत्व सड़कों पर आमने-सामने हैं। गत वर्ष स्वयं को सेकुलर कहने वाले ब्लॉगर की जमात-ए-इस्लामी के लोगों द्वारा की गई हत्या के विरोध में बंगलादेश में उठे जनज्वार ने देश को गृहयुद्घ के मुहाने तक पहुंचा दिया था। दुख की बात है, कि बंगलादेश के 1971 के युद्घ अपराधियों, हत्यारों और बलात्कारियों के समर्थन में कोलकाता में मुसलमानों की विशाल रैली निकली थी।
भारत के पास दवा है
विगत जून के अंतिम सप्ताह मंे इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट आई कि सिर्फ वर्ष 2013 में ही 25 हजार वहाबी उपदेशक भारत 'भ्रमण' करने आए। मस्जिदों, मदरसों और इस्लामी संस्थाओं को ये वहाबी तत्व अपने कब्जे में लेते जा रहे हैं। भारत के मुसलमानों में मतांधता को उकसा कर हमारी शांति और सार्वभौमिकता को स्थायी क्षति पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। विडंबना ये है कि मुस्लिम समाज के ये मतांध तबके तो मुखर और ताकतवर दिखाई पड़ते हैं, जबकि विचारवान और उदार स्वर असंगठित नजर आते हैं। हमें ये भी समझना होगा कि भारत के पास भारत की प्राचीन संस्कृति की औषधि है, जिसमें उपासना पद्घति द्वंद्व का विषय नहीं रही है। इस पर पूरी शक्ति के साथ एकजुट होने की आवश्यकता है। भारत का सनातन वाक्य 'सत्य एक है, विद्वान उसे अलग-अलग ढंग से कहते हैं', हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अनिवार्य तत्व होना चाहिए। इस वाक्य और इसके भाव को भारतीय समाज के हर तबके और प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। इस पर समाज या शासन को कोई समझौता नहीं करना चाहिए। दुनिया के जिन देशों में भी स्थानीय संस्कृति को नकारकर मजहबी कट्टरता को प्रश्रय दिया गया है, वहां अलगाववाद और विखंडन हुआ है।
मुसलमान बंधु इस बात का ध्यान रखें कि उनके बच्चे किसके साथ उठ-बैठ रहे हैं। वे अपने बच्चों को उदर पोषण का ज्ञान व तकनीकी शिक्षा अवश्य दंे, परंतु उन्हें दाराशिकोह, गालिब, राबिया, बाबा फरीद, बुल्लेशाह और मुगलानी ताज के बारे मंे भी बताएं। अन्यथा तौकीर और रियाज भटकल पैदा होते रहेंगे और अपने परिवार और समाज को तबाह करते रहेंगे।

पढ़े-लिखों का खूनी खेल
-भारत का बिन लादेन कहा जाने वाला अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स का डिप्लोमाधारी है। उसने सॉफ्टवेयर मेंटेनेंस का विशेष प्रशिक्षण भी लिया है।

-इराक के किर्कुक शहर में आईएसआईएस ने आत्मघाती हमले में 30 जिंदगियां लील लीं। इस हमले में जान देने वाला युवा आत्मघाती हमलावर फैसल बिन शामान अल आंज़ी पेशे से डॉक्टर था।

-प्रशांत बाजपेई

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