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इसे क्या कहा जाय?सेकुलरवाद या साम्प्रदायिकता!
नई दिल्ली। असाम्प्रदायिकता भारत सरकार एवं कांग्रेस का मूलभूत सिद्धांत है। प्रधानमंत्री पं. नेहरू समय-समय पर उसके पक्ष में अपने विचार व्यक्त किया करते हैं। वे साम्प्रदायिकता के जितने घोर विरोधी हैं उतने ही जातिवाद तथा प्रान्तीयता के।
कांग्रेस के महामंत्री श्रीमन्नारायण भी नेहरू जी से पीछे नहीं हैं। उन्होंने अपने नाम के साथ जुड़ने वाले 'अग्रवाल'को भी अलग कर दिया। साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद के खिलाफ इतने जोरशोर के साथ जिहाद छिड़ा हुआ है।
किन्तु सरदार स्वर्ण सिंह को अपने मंत्रालय के लिए एक सचिव की आवश्यकता थी। उसके लिए एक पंजाबी को ही नियुक्त किया जा सका। इसी प्रकार सूचना मंत्री महाराष्ट्र प्रदेश के हैं। इसीलिए शायद उनके सचिव भी महाराष्ट्र प्रदेशीय हैं।
मौलाना आजाद द्विविभागीय मंत्री हैं। एक ओर वो शिक्षा मंत्री हैं तथा दूसरी ओर प्राकृतिक साधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री भी। उनके साथ कार्य करने वाले दो उपमंत्री हैं-पं. केशव देव मालवीय तथा डा. के.एल.श्रीमाली। इसके अतिरिक्त उनके विभाग में श्री मोहन दास जी भी संसदीय सचिव के रूप में हैं।
यह सर्वज्ञात है कि मौलाना साहब आजकल विदेश यात्रा पर हैं। आश्चर्य यह है कि मौलाना साहब को उपर्युक्त महानुभावों में से किन्हीं पर विश्वास न हो सका और शायद इसीलिए उन्होंने विभाग का उत्तरदायित्व डा. सैयद महमूद को सौंपा। डा.सैयद महमूद बिना विभाग के मंत्री हैं तथा विदेश विभाग से सम्बंधित हैं। वास्तविकता यह है कि प्रधानमंत्री जिन दिनों विदेश में रहे उन दिनों डा.महमूद पर विदेश विभाग का भार पूरी तरह आ पड़ा।…
इस सम्बन्ध में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि डा.महमूद को श्री किदवई के स्थान पर नियुक्त किया गया था। शायद इस विचार को लेकर कि मुसलमान के रिक्त स्थान की पूर्ति मुसलमान ही कर सकता है। असाम्प्रदायिकता राज्य की साम्प्रदायिकता का कितना सुन्दर उदाहरण है!
सत्याग्रह समस्या का हल नहीं
गोआ-मुक्ति-आन्दोलन
नेहरू सरकार जनता के धैर्य की अधिक परीक्षा न ले
सत्याग्रह में भाग लेकर लौटे जनसंघ के नेता श्री कवड़ी का वक्तव्य
सामंतवाड़ी। 'गोआ की समस्या सत्याग्रह से हल नहीं की जा सकती। पुर्तगालियों के समक्ष सत्याग्रह सिर्फ नक्कारखाने में तूती की आवाज या भैंस के सामने बीन बजाने के बराबर है।'पुर्तगाली जेल से हाल ही में मुक्त किये गये जनसंघ के नेता श्री अण्णा साहेब कवड़ी ने यहां ये शब्द कहे।
उन्होंने आगे बताया कि पुर्तगाली आततायी सत्याग्रहियों को बुरी तरह आहत कर उसी दिन भारतीय सीमा में ढकेल देते हैं। अत: निवास,खाद्य पदार्थ,आवास व्यवस्था आदि में उन्हें कुछ व्यय नहीं करना पड़ता है। उन्होंने यह भी बताया कि वे सत्याग्रहियों पर इस प्रकार बर्बर अत्याचार करते हैं कि मुक्ति के पश्चात् उन्हें दो-तीन मास तक खाट पर पड़ा रहना आवश्यक हो जाता है। आपने बताया कि भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारी बन्दी-सत्याग्रहियों से मिलने नहीं आते। बारबार गोआ के अधिकारियों से प्रर्थना करने पर वे सहायक राजदूत श्री भटनागर से मिल सके। आपने बताया कि श्री केशव राव सारोलकर को 18 मील चलने में तीन दिन लगे क्योंकि उन्हें बहुत ही बुरी तरह से पीटा गया था।
श्री सारोलकर ने बताया कि गोआ की जनता भयग्रस्त प्रतीत होती है परंतु समय आने पर वह आगे भी बढे़गी। आपने यह आशा व्यक्त की कि पुलिस तथा अन्य लोग भी आंदोलन में सम्मलित होंगे। लौटे हुए कुछ सत्याग्रहियों ने मेरा ध्यान सत्याग्रहियों के लिए की जाने वाली व्यवस्था की ओर आकर्षित किया। उन्होंने व्यवस्था की कटु आलोचना करते हुए बताया कि गोआ-अभियान के समय उन्हें पकड़ लिया गया था परन्तु पुन: वहां पर लौटने पर अपने भाग्य के सहारे छोड़ दिया गया। वे परिचर्या एवं चिकित्सा के अभाव में कराहते रहे। भोजन भी नसीब नहीं हो सका और टिकट के अभाव में 1-2 दिन रेलवे-कारागृह में ही विश्राम करना पड़ा। यह भी उन्होंने बताया कि उनके पास की समस्त सामग्री गोआ पुलिस द्वारा छीन ली गई है।
दिशाबोध – पॉलिटिकल हिंदू न बनें : श्री गुरुजी
'आज आत्मविस्मृति हमारा सबसे बड़ा दोष है। सच्ची राष्ट्रीयता को हम भूल गए हैं। जो अपने आप को कट्टर हिंदू कहते हैं उनकी भावना का भी यदि हम विश्लेषण करें,तो बड़ी विचित्र स्थिति दिखाई पड़ती है। हिंदू हमारा उपनाम मात्र बन गया है। हिंदू याने पॉलिटिकल हिंदू, मुसलमानों के खिलाफ बोलने वाला हिंदू ,ईसाइयों के विरोध में प्रचार करने वाला हिंदू। हिंदू का यह नकारात्मक रूप ठीक नहीं है। हिंदुत्व की अनुभूति हमें अपनी आत्मा से होनी चाहिए। प्रतिक्रियात्मक हिंदुत्व किसी भी काम का नहीं। पॉलिटिकल हिंदू का ध्यान केवल आर्थिक लाभों तथा अधिकारों की ओर रहता है। हिंदुत्व निपट स्वार्थ पर आधारित नहीं रहना चाहिए। मैं हिंदू हूं, इसका अर्थ है- मेरे अन्दर कुछ असामान्य गुण है। मेरी कुछ अलग परंपरा है। मेरे जीवन का ध्येय हिंदुत्व के अनुरूप हैं। इस प्रकार हमारी धारणा भावात्मक,रचनात्मक एवं क्रियात्मक रहनी चाहिए,प्रतिक्रियात्मक कदापि नहीं।' (पृष्ठ 135,श्री गुरुजी समग्र: खण्ड 3)
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