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दिल्ली में पक्षी अभियान में आपकी विशेष भूमिका थी, वर्तमान बदली हुई महानगरीय जीवनशैली में पक्षियों के पुनर्वास का यह प्रयत्न आपको कैसा लगता है?
गौरैया जैसी घरेलू चिडि़या को दिल्ली का राज्यपक्षी घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम था, इससे न केवल घरेलू पक्षियों का संरक्षण होता बल्कि यह हमारे शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित करता। इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि समाज हमेशा के लिए इन घरेलू पक्षियों की देखरेख के साथ प्रकृति के महत्व को समझे। इससे सकारात्मक रूप में अवश्य सफलता मिलती। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में गौरैया को एक सांकेतिक महत्व दिया गया है कि यह पक्षी जगत का सामान्य प्राणी है। देश के ज्यादातर राज्यों में दुर्लभ और आकर्षक पक्षियों को राज्यपक्षी घोषित किया गया है लेकिन यह पहली बार हुआ है जब एक सामान्य पक्षी को यह दर्जा दिया गया है।
आप वर्तमान परिस्थिति में कैसा महसूस करते हैं ऐसे में जबकि दिल्ली से कुछ ही किमी. की दूरी पर स्थित ओखला पक्षी अभ्यारण्य में पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र (ईको सेंसिटिव जोन) को 10 किमी. से 2 किमी. कम करना प्रस्तावित है?
ओखला पक्षी विहार नि:संदेह एक तीव्र संवेदनशील प्रकरण है, इस परियोजना पर कोई निर्णय लेने से पूर्व इसके अलग-अलग पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए।
ओखला प्रकरण को कानून परिवर्तन के उदाहरण या कहीं और के लिए मानक के रूप में नहीं देखना चाहिए। पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र को घटाने के भी दीर्घकालिक प्रभाव होंगे, क्योंकि जब भी विकास होता है तो वह अपने पीछे निशान भी छोड़ जाता है।
ओखला पक्षी विहार का प्रकरण सारी दुनिया के लिए एक खुला उदाहरण है। अनजान और छोटे अभ्यारण्यों को ऐसे में बड़ा नुकसान होता है जहां आकर्षण नहीं है या चीता, दरियाई घोड़ा अथवा हाथी जैसे प्रभावी जीव नहीं हैं।
गोवा सरकार ने सलीम अली पक्षी अभ्यारण्य के लिए पहले ही जीरो बफर जोन की मांग की है। इसके साथ ही तटीय राज्यों में स्थित शेष छह वन्यजीव अभ्यारण्यों को भी कम करते हुए बफर एरिया की मांग की जाती रही है।
आप गौरेया, कबूतर और गाय जैसे जीवों की कमी के पीछे शहरीकरण को एक बड़ा गुनहगार मानते हैं? ओखला पक्षी अभ्यारण्य के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से शहरीकरण इन जीवों के जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है?
शहरीकरण को ही हम अपराधी या गुनहगार मानें यह तो सही नहीं है और वैसे भी मैं कोई आन्दोलनकारी कार्यकर्ता नहीं बल्कि वैज्ञानिक हूं और किसी भी तरह टिकाऊ एवं दीर्घकालिक समाधान ढूंढने के विषय में ही सोचूंगा। एक बात समझने की जरूरत है कि विश्व की भावी जनसंख्या शहरी भूक्षेत्र में ही निवास करने वाली है। इसलिए हमें ऐसे शहर बसाने की जरूरत है जहां फ्लाईओवर, हवाई अड्डे, आवासीय और औद्योगिक परिसर ही न हों बल्कि कुछ राशि हरित क्षेत्र के संवर्धन के लिए भी सुनिश्चित हो।
भारत के शहरी भूक्षेत्र से घरेलू चिडि़या गौरैया का गायब होना हमारे लिए एक खतरे की घंटी है, हालांकि हम हमेशा इसी मुद्रा में रहने का ढोंग करते हैं कि सब कुछ ठीक है। कौवे के विषय में आप पाएंगे कि मुम्बई में अपवादस्वरूप इनकी संख्या बढ़ रही है। इस कारण कि यहां खुली हवा के भोजन भंडार, मछली बाजार और बूचड़खाने ज्यादा हैं। शहरों में जो पौधे दिखाई पड़ते हैं उनमें अधिकांश अनिवासी मूल अथवा विदेशी प्रजाति के हैं।
ये हमारे कीमती संसाधनों जैसे पानी, बिजली, खाद और ईंधन आदि का भरपूर व्यय करते हैं। नई सरकार को इस पहलू की ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए, अनिवासी पौधे विशेषकर जो भारत द्वारा न्यूजीलैण्ड से मंगाए जाते हैं उन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। प्रोसोपिस प्यूलिफ्लोरा, लैंटेना कैमेरा, पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस आदि प्रजातियों द्वारा पारिस्थितिकीय एवं आर्थिक क्षय किया जा रहा है। घरेलू गौरैया के लुप्त होने का संबंध शहरी भवन निर्माण, भारतीयों की जीवनशैली में हो रहे बदलाव, अनिवासी पौधों की सुनामी और साथ ही साथ बढ़ते हुए रासायनिक कचरे और उर्वरकों से है। आपके प्रतिष्ठित समाचार पाञ्चजन्य के माध्यम से मैं यही संदेश देना चाहता हूं कि समाज हमेशा प्रकृति का ध्यान रखे, सरकार ऐसा ड्राफ्ट बनाए जो पूरे एक दशक तक शहरी संबर्द्धन और प्रकृति संरक्षण के मुद्दों पर प्रभावी कार्य करे।
आपने सरकारी ढांचे के साथ भी कार्य किया है। आप उनकी संवेदना को किस प्रकार देखते हैं विशेषकर मनुष्य के दीर्घकालिक निर्णयों के सन्दर्भ में?
मैं लोकतांत्रिक संस्था के नीति निर्माण में विश्वास करने वाला व्यक्ति हूं लंबी अवधि में यदि महत्वपूर्ण उपलब्धि की अपेक्षा करनी है तो यह तभी संभव है जब सरकारी एजेंसियां दीर्घजीवी नीतियां बनाएं।
हमें ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो दीर्घकालिक लाभकारी हों क्योंकि पारिस्थितिकी और पर्यावरण को ध्यान में रखकर जो नीतियां बनाई जाती हैं। 50 वर्ष पूर्व यूरोप ने औद्यागिक क्रांति के दौर में बहुत कुछ खोया लेकिन उन्होंने दुबारा ये गलतियां नहीं दोहराईं। जबकि हम यूरोपीय लोगों द्वारा पहली बार की गई उन्हीं गलतियों को बार-बार दोहरा रहे हैं। आज हम विकास के ऐसे मॉडल को लेकर चल रहे हैं जो पर्यावरण के विनाश को बढ़ा रहा है
आगे चलने के लिए एक ही मार्ग है और वह विकास का सर्वग्राही तरीका है। वर्तमान सरकार से मैं आशान्वित हूं। नियंताओं के साथ कार्य करते हुए समस्याओं के समाधान की ठोस कोशिश होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण, पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण के साथ-साथ मानव नजरिए से सोचना होगा। ये सब होने पर ही हम आर्थिक विकास के लिए एक ठोस पर्यावरण नीति बना सकेंगे, मैं एक्टिविज्म में विश्वास नहीं करता। मैं घेाषित निर्णय का पक्षधर हूं जो ठोस वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर निर्मित हो।
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