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पाञ्चजन्य के पन्ने पर ईशांत शर्मा का जिक्र हम सिर्फ इसलिए नहीं कर रहे हैं कि उसने क्रिकेट के 'मक्का' कहे जाने वाले लार्ड्स के मैदान पर इंग्लैंड के 7 विकेट चटकाकर टेस्ट क्रिकेट में अपने अनिश्चित भविष्य को सुरक्षित कर लिया। वह जी जान से खेला और देश के लिए खेला। यह जुनून कुछ और ही है कि 80 ओवर पुरानी गेंद से भी आप बाउंसर फेंक सकें। आपके प्रदर्शन से देश को दो दशक के बाद फिर से गौरव हासिल करने का मौका मिले और आप सहजता से अपनी उपलब्धियों को अपने साथियों में बांट दें। जाहिर है कि ईशांत का बर्ताव और जीवन, आस्था और समर्पण से मिली शक्ति का हवाला देता है।
दुनिया के ज्यादातर तेज गेंदबाज केवल खेल के मैदान ही नहीं, बल्कि मैदान के बाहर भी अपने आक्रामक व्यवहार के कारण खासे चर्चित रहते हैं। उधर ईशांत की आलोचना भी कितनी शांतिपूर्ण होती है- 'मुझ पर हमेशा मेरी टीम के साथियों ने भरोसा किया है और इतना मेरे लिए काफी है। टीम के साथियों को छोड़कर और कोई मेरी सराहना नहीं करता, लेकिन अब मुझे इसकी आदत सी हो गई है।'
बताते हैं कि ईशांत 25 घंटे के भीतर डाक कांवड़ हरिद्वार से दिल्ली लाने के लिए दौड़ लगाते थे तो उनके हाथ में गंगाजल होता था। और जो युवापन में कदम रखते ही 'बोल बम' और 'हर हर महादेव' के घोष के बीच गंगाजल हाथ में लेकर दौड़ा हो, शिव उस पर प्रसन्न क्यों नहीं होंगे। दिल्ली से हरिद्वार की दूरी 200 किलोमीटर से कुछ अधिक है। डाक कांवड़ में वाहन के साथ कोई आधा दर्जन युवा दौड़ लगाते हैं। इनके प्राय: दो या तीन दल होते हैं। इसे एक प्रकार से 'रिले रेस' समझ सकते हैं। एक दल विश्राम करता है तो दूसरा दल दौड़ता है। पूरे रास्ते कहीं रुकना नहीं है। वाहन की रफ्तार लगभग एक समान रहती है।
यह भले संयोग हो, लेकिन भक्ति और समर्पण के प्रति उत्साह को कितना बढ़ाने वाला है कि इसी साल फरवरी में ईशांत ने टेस्ट क्रिकेट में 150 विकेट पूरे किए। उस माह भी महाशिवरात्रि थी। और जब टेस्ट क्रिकेट से ईशांत शर्मा को बाहर किए जाने की अटकलें जोरों पर थीं तो कुछ दिन पहले लार्ड्स में उन्होंने हैरतअंगेज प्रदर्शन कर न केवल आलोचकों को करारा जवाब दिया, बल्कि देश को मान बढ़ाने वाली जीत दिलाने में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। यह वही सावन का महीना है जिसकी शिव भक्त पूरे साल प्रतीक्षा करते हैं और पूरा भारत शिवमय हो जाता है।
अच्छे-बुरे दौर सबके जीवन में आते हैं। लेकिन आस्था है, समर्पण है तो आप उसमें फंसते नहीं हैं, निकल जाते हैं। जैसे ग्रहण तो सूर्य और चांद पर भी लगता है, यह प्रकृति का खेल है, लेकिन वह सूर्य और चांद की तेजस्विता और आभा को मलिन नहीं करता। जीवन में थोड़ी सी भक्ति सध जाए तो आप आनंद से खेल सकते हैं। न अभाव, न प्रभाव। ईशांत शर्मा जहां 150 टेस्ट विकेट लेने वाले भारत के 12वें गेंदबाज हैं, वहीं भारत के दूसरे सबसे तेज गेंद फेंकने वाले खिलाड़ी भी हैं। उन्होंने 152.6 किलोमीटर यानी 94.8 मील प्रति घंटा की रफ्तार से फरवरी, 2008 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड में गेंद फेंकी थी। जवागल श्रीनाथ भारत के सबसे तेज गेंद फेंकने वाले गेंदबाज हैं। उन्होंने 1999 में हुए विश्व कप में 154.5 किलोमीटर प्रति घंटा की गति वाली गेंद डाली थी।
हम देखते हैं कि ईशांत ने कभी मैच के दौरान या बाहर किसी खिलाड़ी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी नहीं की। बुरे दौर में भी शांत और संयत रहते हुए अभ्यास जारी रखा और फिर से अपनी चमक बिखेरी। अपनी उपलब्धियों का श्रेय कभी भी खुद नहीं लिया। लय (फार्म) को लेकर भले जूझते रहे हों, लेकिन शारीरिक दक्षता को लेकर खास समस्या नहीं रही। अवांछित चोटों से बचे। सबसे बड़ी बात यह कि प्रदर्शन ऐसे समय पर किया जब वह देश के काम आया, न कि केवल व्यक्तिगत छवि को बढ़ाने वाला साबित हुआ। यह लगन, परिश्रम का नतीजा तो है ही, साथ ही कुछ आशीर्वाद है जो उनके साथ बना हुआ है। जो शिव एक पत्ते से भी खुश हो जाते हों, वे क्या गंगाजल हाथ में लेकर दौड़ चुके अपने भक्त के लिए कुछ भी न करेंगे।
ईशांत को पारिवारिक संस्कार भी काफी अच्छे मिले हैं। उनके माता-पिता धार्मिक विचारों के हैं। उनके पिता श्री विजय शर्मा बताते हैं, 'हमने कभी उस पर अपनी कोई बात लादने की कोशिश नहीं की, चाहे पढ़ाई रही हो या फिर खेल। उसका जो मन आया उसने किया, लेकिन अपनी जिम्मेदारी वह शुरू से ही समझता रहा। खेल की वजह से पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ने दिया। हमें किसी बात के लिए उसे कभी टोकने की जरूरत ही नहीं पड़ी, अब इससे ज्यादा और क्या कहूं।'
कुल मिलाकर ईशांत शर्मा के खेल में 'दुनिया का खेल' चलाने वाले का भी हाथ हम देख सकते हैं। – अजय विद्युत
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