|
इराक के दूसरे बड़े शहर मोसुल की सड़कों पर कटी-फटी लाशों का बिखरा होना उस बर्बर और निर्मम आतंक को दर्शाता है जो दुनियाभर में अब तक बरपाए गए किसी भी जिहादी आतंक को पीछे छोड़ देता है। आईएसआईएस के सिर्फ 1500 खूनी लड़कों ने दुनियाभर में जिहाद फैला कर खलीफा का राज कायम करने के अपने मकसद के लिए जो निर्मम हमले बरपाए हैं वे इतने घातक हैं कि जिहादियों से दस गुना ज्यादा फौजियों को भी आतंक के चलते अपनी वर्दियां उतार कर करीब पांच लाख मासूम लोगों के साथ भाग निकलना पड़ा। इराकी सेना के भाग खड़े हुए फौजी अमरीका द्वारा उपलब्ध कराए गए हथियारों, गोला-बारुद और बख्तरबंद वाहनों की एक बड़ी खेप पीछे छोड़ गए थे। इसमें छह ब्लैक हॉक हैलीकाप्टर भी शामिल हैं और ये सब बर्बर लड़ाकों के हाथ पड़ गए हैं। करीब पांच मिलियन दीनार की मोटी रकम मोसुल के बैंकों में पड़ी है, वह भी लड़ाकों के हाथों में चली गई।
यह खतरनाक संकट निश्चित रूप से ओबामा प्रशासन का पैदा किया हुआ है। सिर्फ 14 महीने पहले, अप्रैल 2013 में आईएसआईएस सिर्फ इराक तक सीमित था, पर उसके बाद सीमा पार करके सीरिया में जाने को लालायित हो गया, सिर्फ अमरीकी सहायता और हथियार पाने के लिए, जो असद सत्ता के खिलाफ बांटे जा रहे थे। अभी पिछले साल ही आईएसआईएस ने अपना नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एण्ड ग्रेटर सीरिया कर लिया है और उसमें अल शाम शब्द जोड़ दिये हैं, जिसका मतलब है वृहत सीरिया। अगर आईएसआईएस अमरीकी सहायता और हथियारों के लिए सीरिया के पार पैर नहीं फैलाए होते तो उसके लिए इतना सब करना संभव नहीं होता। इसके बाद ही वह सीरिया के तेल के कुओं तक पहुंच पाया। 2010 तक आईएसआईएस महज अलकायदा के एक हिस्से के तौर पर लड़ा करता था। आज यह स्वतंत्र रूप से सीरिया और इराक के कुछ हिस्सों में टैक्स वसूल करता है। हाल ही में जैफरी तुहनेर ने वाशिंगटन टाइम्स में लिखा कि 'ओबामा के कदम भले ही वैधानिक हों, लेकिन वे खतरनाक हैं और आने वाले कई सालों तक अमरीका को सताते रहेंगे।' राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सूसन राइस ने जोर देकर कहा कि अमरीकी हथियार फिर राह पर आ चुके विपक्षी गुटों को जाएंगे। लेकिन इसपर कोई भरोसा नहीं करता, खासकर सीरिया/इराक की खुली सीमा के चलते और अमरीका द्वारा आतंकवादी गुटों को शस्त्र देने से रोकने वाले कानून में पहले दी गई ढील की वजह से। बेशक हथियार जिहादी आतंकवादियों के हाथों तक पहुंच चुके हैं। अब सवाल इतना है कि, वाशिंग्टन द्वारा सीरिया को भेजे गए घातक हथियारों में से कितने इराक के अन्दर तक पहुंच चुके हैं?
अब जबकि अमरीकी हथियारों से लैस आईएसआईएस इराकी जिहादी अबूबकर अल बगदादी की सहायता प्राप्त कर चुका है। यह सीरिया और इराक के कई इलाकों को अपने कब्जे में लेना चाहता है। वहां यह अपनी खुद की पाबंदियां लादना चहता है जैसे, धूम्रपान, संगीत और बिना बुर्का पहने महिलाओं पर रोक। शियाओं, ईसाइयों और अलवितों की बर्बर हत्याएं हसन अबू हानीयेह जैसे इस्लामी विशेषज्ञों द्वारा एक बेहद खतरनाक रणनीति के तौर पर बताई गई हैं।
इस वक्त आईएसआईएस के पास इराक में करीब 6-7 हजार और सीरिया में 4-5 हजार लड़ाके हैं। इस संख्या में चेचन्या, फ्रांस, ब्रिटेन और यूरोप के दूसरे हिस्सों से आए 3 हजार विदेशी शामिल हैं। उनकी संख्या में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी क्योंकि उनके कब्जे में जा रहे शहरों की जेलों से छूटने वाले कैदी उनके हाथों में जाएंगे। अगर इसने अंतत: इराक पर कब्जा कर लिया तो भू राजनीतिक परिदृश्य में बड़ी थर्राहट देखने में आएगी। इस सुन्नी उग्रपंथी गुट ने मोसुल, तिकरित और इराक के कुछ दूसरे इलाकों पर कब्जा कर लिया है और सीरिया के रक्का शहर को भी हथिया लिया है।
वहां काम कर रहे भारतीय परेशान हैं और 40 को बंधक बनाया हुआ है। दुनियाभर में जिस तरह से आतंकवादी गतिविधियां उभर कर आ रही हैं, ऐसे में आतंकवाद को खत्म करने और सत्ता विरोधी ताकतों या आतंकवादी गुटों को समर्थन देने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को कारगर तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। इससे दुनियाभर में शांति बहाल होगी और स्थिरता आएगी। आतंक से घिरे इलाकों में फंसे नागरिकों और अल्पसंख्यक गुटों को पूरा संरक्षण देने की आवश्यकता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र को इस मुद्दे पर आमसभा बुलानी चाहिए।
(लेखक शीर्ष शिक्षाविद् एवं पैसेफिक
विश्वविद्यालय, उदयपुर के अध्यक्ष हैं)
टिप्पणियाँ