गांधी जी युद्ध के समर्थक-सहयोगी कैसे बने?
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

गांधी जी युद्ध के समर्थक-सहयोगी कैसे बने?

by
Jul 19, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 19 Jul 2014 13:53:03

इस बात को समझने के लिए तत्कालीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नजर डालना आवश्यक है। ब्रिटिश सरकार के कठोर कानूनों के चलते प्रशासनिक सुधार कराने का संकल्प लेकर एक अंग्रेज ए़ ओ़ ह्यूम ने अपने कुछ साथियों के साथ, जिनमें अधिकांश विदेशी थे, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। सत्तावनी क्रांति में जनरोष देख चुके तथा यातनाएं झेल चुकी ब्रिटिश सरकार ने आक्रोशित भारतीय जनता को राहत पहुंचाने के इस प्रयास को अपने सेफ्टीबाल्व के रूप में प्रोत्साहित किया। पहले उन्होंने इस पहल का स्वागत किया, प्रथम तीन अधिवेशनों तक उच्च ब्रिटिश अधिकारी स्वागताध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे। किंतु कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की प्रारंभिक संख्या 72 से बढ़कर जब हजारों के ऊपर पहुंच गई, तथा देश के विचारवान लोग जुड़ने लगे तब वे चौकन्ना हुए।
1888 के इलाहाबाद अधिवेष न में उन्होंने अनेक प्रतिबंध लगा दिए। साथ ही 'फूट डालो, राज करो' के विशेषज्ञ इन अधिकारियों ने एक उत्साही युवक सर सैयद अहमद खां को प्रोत्साहित करके 1888 में मुसलमानों को संगठित करने की प्रेरणा दी। एंग्लो मुस्लिम डिफेंस एसोसिएशन की स्थापना कराई, जिसने अलीगढ़ में एंग्लो मुस्लिम कालेज की स्थापना की, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया। साथ ही, मुस्लिम लीग अस्तित्व में आ गई। लीग ने उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत के मुसलमानों को कांग्रेस से अलग रहने को बाध्य किया। घोषित सुधारों के साथ, मुस्लिमों को प्रोत्साहित किया कि वे प्रांतीय परिषदों में अपने प्रतिनिधित्व की मांग कांग्रेस मंच से करें।
जो अंग्रेजी सरकार पहले कांग्रेस को प्रोत्साहित कर रही थी उसने कुछ ही वषोर्ें बाद यह कहना प्रारंभ कर दिया कि यह तो छिपे वेश में ऐसी राजद्रोही संस्था है, जिसे न तो जनता का प्रतिनिधित्व प्राप्त है और न ही जिसका कोई मूल्य है। कांग्रेस तो ऐसे अल्पमत का प्रतिनिधित्व करती है जिसको एक शानदार और विभिन्न रूपों वाले साम्राज्य की बागडोर हरगिज नहीं दी जा सकती है। उन्होंने 1892 में नगण्य प्रशासनिक सुधार की घोषणा के बाद 1905 में बंगाल के विभाजन को स्वीकृति दे दी। बंग-भंग के आदेश से देशभर में आंदोलन शुरू हो गये। हार्डिज ने मौके की नजाकत समझते हुए, सम्राट जार्ज पंचम को भारत बुलाकर बंग-भंग को वापस लेने की घोशणा करा दी। साथ ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर भारत में उत्तरदायी शासन सौंपने की सिफारिश कर दी। मुस्लिमों ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रांतीय परिषदों में प्रतिनिधित्व की मांग की, जबकि वे इसके पात्र नहीं थे। इसका प्रमाण तब मिला, जब 1935 में लीग को केवल 4़8 प्रतिशत मत मिले। अब तक कांग्रेस याचना, ज्ञापन जैसे नरमपंथी रुख बनाए थी। आयरिश महिला एनी बेसेंट के भारत आने के बाद उन्होंने होमरूल का महत्व बताया। अनेक भारतीय होमरूल लीग में शामिल हो गये। 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्घ अधिकार है' का नारा देकर तिलक ने कांग्रेस को गरम दल की ओर मोड़ दिया। होमरूल की मांग दृढ होती गई।
इस बीच 1914 में विश्वयुद्घ छिड़ गया। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अहिंसा, असहयोग और सत्य के प्रयोग से नया राजनीतिक चिंतन दिया। बम्बई आते ही गवर्नर लार्ड विलिंगहन ने उन्हें विश्वास में ले लिया। गांधी जी चेम्सफोर्ड को अपना मित्र मानते ही थे। गांधी जी से युद्घ में सहयोग मांगा गया। गांधी जी के मन में अहिंसा अथवा युद्घ का अंतर्द्वंद्व चलने लगा। उन्होंने आत्मकथा में लिखा- मुझे राज्य के द्वारा अपनी स्थिति अर्थात राष्ट्र की स्थिति सुधारनी थी। मैंने माना कि मेरे पास युद्घ में सम्मिलित होने का ही मार्ग बचा है।
उन्होंने इंग्लैंड में ही युद्घ समर्थन घोषित करके रंगरूटों की भर्ती शुरू कर दी थी। उन्होंने वाइसराय को पत्र भी लिखकर कहा कि हम लोग इस प्रत्याशा में समर्थन कर रहे हैं कि भारत को स्वराज मिलेगा। वे लिखते हैं कि उन्होंने रंगरूट भर्ती को अपनी जिम्मेदारी माना। गांधी जी ने बल्लभभाई पटेल तथा जिन्ना आदि सहयोगियों से सलाह मांगी। उनमें से कुछ के गले बात तुरंत उतरी नहीं। जिनके गले उतरी उन्होंने कार्य के प्रति शंका प्रकट की। इंग्लैंड में उन्होंने अपने सत्याग्रही मित्र बैरिस्टर सोराबजी अड़ाजणिया से परामर्श किया।
उन्होंने चेताया, 'आप भोले हैं। लोग मीठी मीठी बातें करके आपको ठगेंगे और फिर जब आपकी आंख खुलेगी तब आप कहेंगे, चलो सत्याग्रह करें, फिर आप हमें मुसीबत में डालेंगे।' किंतु गांधी जी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने स्वयं गुजरात से सौ रंगरूटों की भर्ती की तथा कांग्रेस के मंच से स्थानीय नेताओं से आग्रह किया कि वे हर जिले में रिक्रूटमेन्ट आफिसर (डिक्टेटर) नियुक्त करके रंगरूटों की भर्ती करायें और उनसे कहें कि उनके युद्घ में जाने से देश में होमरूल आ जायेगा।
ब्रिटेन ने भी युद्घ के उद्देश्यों के बारे में बताया कि यह लड़ाई जर्मनी की तानाशाही के खिलाफ लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली के लिए लड़ी जा रही है। उसने अपने औपनिवेशिक देशों में से अनेक में होमरूल लेकर दिया। इससे गांधी जी सहित भारतीय नेताओं ने भी उसके आश्वासन पर विश्वास कर लिया।
कुछ लोगों का तर्क है कि गरीबी और बेरोजगारी की वजह से गरीब किसान तथा मजदूर रंगरूट बने। उनमें सुविधाभोगी बनने की ललक ज्यादा थी, राष्ट्रीय भावना की समझ तथा ललक कम। लेकिन वे लोग यह भूल जाते हैं कि शांति के दिनोंे में तो लोग सुविधाओं के कारण सेना में जाते हैं किंतु युद्घ काल में जब तोपें आग उगलती हैं तब भावनाओं के ज्वार में ही लोग सेना में जाते हैं। इससे अनेक इतिहासकारों का मत है कि ये लाखों लोग आजादी की आशा में सेना में भर्ती हुए। यहीं से आजादी की लड़ाई का रास्ता प्रारंभ होता है। 

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हाईकोर्ट ने दिया ‘स्पेशल स्क्रीनिंग’ का आदेश

उत्तराखंड में बुजुर्गों को मिलेगा न्याय और सम्मान, सीएम धामी ने सभी DM को कहा- ‘तुरंत करें समस्याओं का समाधान’

दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना और इसका भारत पर प्रभाव

उत्तराखंड : सील पड़े स्लाटर हाउस को खोलने के लिए प्रशासन पर दबाव

पंजाब में ISI-रिंदा की आतंकी साजिश नाकाम, बॉर्डर से दो AK-47 राइफलें व ग्रेनेड बरामद

बस्तर में पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने घर वापसी की है।

जानिए क्यों है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गुरु ‘भगवा ध्वज’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, हाईकोर्ट ने दिया ‘स्पेशल स्क्रीनिंग’ का आदेश

उत्तराखंड में बुजुर्गों को मिलेगा न्याय और सम्मान, सीएम धामी ने सभी DM को कहा- ‘तुरंत करें समस्याओं का समाधान’

दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना और इसका भारत पर प्रभाव

उत्तराखंड : सील पड़े स्लाटर हाउस को खोलने के लिए प्रशासन पर दबाव

पंजाब में ISI-रिंदा की आतंकी साजिश नाकाम, बॉर्डर से दो AK-47 राइफलें व ग्रेनेड बरामद

बस्तर में पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने घर वापसी की है।

जानिए क्यों है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गुरु ‘भगवा ध्वज’

बच्चों में अस्थमा बढ़ा सकते हैं ऊनी कंबल, अध्ययन में खुलासा

हमले में मारी गई एक युवती के शव को लगभग नग्न करके गाड़ी में पीछे डालकर गाजा में जिस प्रकार प्रदर्शित किया जा रहा था और जिस प्रकार वहां के इस्लामवादी उस शव पर थूक रहे थे, उसने दुनिया को जिहादियों की पाशविकता की एक झलक मात्र दिखाई थी  (File Photo)

‘7 अक्तूबर को इस्राएली महिलाओं के शवों तक से बलात्कार किया इस्लामी हमासियों ने’, ‘द टाइम्स’ की हैरान करने वाली रिपोर्ट

राजस्थान में भारतीय वायुसेना का Jaguar फाइटर प्लेन क्रैश

डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

किशनगंज में घुसपैठियों की बड़ी संख्या- डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies