भारत में शरई अदालतों से जितने भी फैसले आए हैं वे देश के कानून को ध्यान में रखकर दिए गए हैं। एक तरह से दारुल कजा और दारुल इफ्ता भारत की अदालतों के बोझ को ही कम करती है और एक तरह से दो पक्षों के बीच समझौता कराने का काम करती है। इस पर उंगली उठाए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए। -मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नौमानी बनारसी दारुल उलूम दारुल इफ्ता दो पक्षों में शरीयत की रोशनी में फैसला कराती है। वह किसी भी पक्ष को फैसला मानने के लिए बाध्य नहीं करती है और न ही किसी के साथ जोर जबरदस्ती करती है। फतवा कोई हुक्म या आदेश नहीं है। यह केवल सलाह है। जिसे मानना या न मानना संबंधित पक्ष पर निर्भर करता है -अशरफ उस्मानी जनसंपर्क अधिकारी,दारुल उलूम
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भारत में शरई अदालतों से जितने भी फैसले आए हैं वे देश के कानून को ध्यान में रखकर दिए गए हैं। एक तरह से दारुल कजा और दारुल इफ्ता भारत की अदालतों के बोझ को ही कम करती है और एक तरह से दो पक्षों के बीच समझौता कराने का काम करती है। इस पर उंगली उठाए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए। -मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नौमानी बनारसी दारुल उलूम दारुल इफ्ता दो पक्षों में शरीयत की रोशनी में फैसला कराती है। वह किसी भी पक्ष को फैसला मानने के लिए बाध्य नहीं करती है और न ही किसी के साथ जोर जबरदस्ती करती है। फतवा कोई हुक्म या आदेश नहीं है। यह केवल सलाह है। जिसे मानना या न मानना संबंधित पक्ष पर निर्भर करता है -अशरफ उस्मानी जनसंपर्क अधिकारी,दारुल उलूम

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Jul 12, 2014, 12:00 am IST
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शरई अदालतों की कानूनी मान्यता नहीं : सर्वोच्च न्यायालय

दिंनाक: 12 Jul 2014 16:15:19

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस्लामी कानून के तहत कुरान और हदीस की रोशनी में फैसले सुनाने वाली शरई अदालतें और उनके आदेशों व फतवों की कोई कानूनी हैसियत या मान्यता नहीं है। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में इन अदालतों और फतवों का कोई स्थान नहीं है। उनके आदेश और फतवे किसी पर बाध्यकारी नहीं हैं और इन्हें जबरदस्ती लागू कराना गैरकानूनी है। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने काजी और मुफ्ती को किसी अजनबी के कहने पर किसी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करने वाला फतवा न जारी करने की सलाह दी है। हालांकि न्यायालय ने शरई अदालतों को समाप्त करने और फतवों पर रोक लगाने की मांग खारिज कर दी है। दारुल उलूम ने शरई अदालतों को खत्म न करने और फतवों पर रोक न लगाने का स्वागत किया है।
न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद व न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष की पीठ ने वकील विश्व लोचन मदान की याचिका का निपटारा करते हुए सोमवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मदान ने याचिका में शरई अदालतों पर समानांतर न्याय प्रणाली चलाने का आरोप लगाते हुए उन्हें समाप्त करने और फतवों पर रोक लगाने की मांग की थी।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, कानून के जरिए स्थापित संस्था का आदेश बाध्यकारी होता है और उसका पालन न करने पर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। शरई अदालत (दारुल कजा या काजी कोर्ट) ऐसी संस्थाएं नहीं हैं। दारुल कजा का न तो कानून के जरिये गठन हुआ है और न ही उन्हें सक्षम विधायिका से कानूनी मान्यता प्राप्त है। स्वतंत्र भारत की संवैधानिक व्यवस्था में इनकी कोई जगह नहीं है।

कांठ में बाजार खुला पर स्थिति तनावपूर्ण

जिलाधिकारी चंद्रकांत की एक आंख की रोशनी गई, अस्पताल में भर्ती
ल्ल नए जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल ने संभाली कमान, ग्रामीणों से की बातचीत
मंदिर से लाउडस्पीकर उतारने के बाद कांठ में हुए बवाल के बाद 10 जुलाई को वहां पर बाजार खुलने शुरू हो गए, लेकिन तनाव की स्थिति अभी तक बनी हुई है। अखिल भारतीय साधु समाज व कई हिंदू संगठनों द्वारा शिवरात्रि के मौके पर नया गांव स्थित मंदिर में जलाभिषेक करने की घोषणा के बाद यहां पर और भी तनाव बढ़ गया है। इस संबंध में एलआईयू (लोकल इंटेलीजेंस यूनिट) ने शासन को अपनी रपट भी भेज दी हैं।
वहीं बवाल में घायल हुए मुरादाबाद के जिलाधिकारी चंद्रकांत की आंख में पत्थर लगने के बाद उनकी एक आंख की रोशनी चली गई है। उन्हें ईलाज के लिए दिल्ली लाया गया है। उनकी जगह पर दीपक अग्रवाल को मुरादाबाद का नया जिलाधिकारी बनाया गया है। पुलिस और प्रशासन के आलाधिकारी लगातार कांठ का दौरा कर रहे हैं। गत आठ जुलाई को कमिश्नर शिवशंकर सिंह ने वहां का दौरा किया था। नवनियुक्त जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल ने 09 जुलाई को कांठ का दौरा किया और ग्रामीणों से बातचीत कर पूरी स्थिति का जायजा लिया। कांठ में हुए बवाल के बाद पुलिस द्वारा विभिन्न हिंदू संगठनों के तकरीबन 83 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गत आठ जुलाई को उनकी तरफ से न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर की गई थी, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। सूत्रों के मुताबिक जिलाधिकारी के चोटिल होने के बाद पुलिस बर्बर तरीके से लोगों से पेश आ रही है।

पुलिस फायरिंग में तीन हिंदू युवकों की मौत

बिहार के रोहताश जिले में मुसलमान युवक द्वारा अपने हिंदू दोस्त के मोबाइल पर हिंदू देवी देवताओं के बारे में आपत्तिजनक मैसेज भेजने के बाद जब हिंदू युवक ने भी जवाब में वैसा ही मैसेज पलटकर किया तो मुसलमानों ने उसके घर पर धावा बोल दिया। मुसलमानों ने उसे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। इसके विरोध में आठ जुलाई को जब हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन किया तो पुलिस ने फायरिंग कर दी। जिसमें तीन युवकों की मौत हो गई। गत सात जुलाई को एक मुसलमान युवक ने हिन्दू युवक के मोबाइल पर हिंदू देवी-देवताओं और भगवान को गाली देते हुए मैसेज किया। इसके जवाब में हिंदू युवक ने भी पलटकर ऐसा ही कुछ मैसेज उस मुसलमान युवक के मोबाइल पर भेज दिया। इस बात पर मुसलमानों ने इकट्ठा होकर हिंदू युवक के घर पर धावा बोल दिया। उन्होंने हिंदू युवक को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। पुलिस ने हिंदू युवक के खिलाफ मामला दर्ज कर हवालात में बंद कर दिया। इसके बावजूद भी मुसलमान नहीं माने और रोड पर जाम लगाकर लाखों रुपए की सरकारी संपत्ति का नुकसान किया। इसके बाद जब हिंदुओं ने प्रदर्शन किया तो इलाके के मुस्लिम थाना प्रभारी ने मौके पर पहुंचकर हिंदुओं पर गोलियां चलवा दीं। इसके चलते घटनास्थल पर तीन युवकों की मौत हो गई। भीड़ के हमले में सीआरपीएफ के जवान चेतन सिंह और केके सिंह समेत 13 पुलिसकर्मी और 4 मजिस्ट्रेट घायल हुए। उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ीं। विहिप ने मारे गए लोगों को 50-50 लाख तथा घायलों को 20-20 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की है।  संजीव कुमार

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