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भारत में 2014 के लोकसभा चुनाव सम्पन्न होने के पश्चात राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव महाराष्ट्र एवं हरियाणा में नवम्बर मास में आयोजित होने जा रहे हैं। कांग्रेस के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट के समान है, क्योंकि इसके पश्चात यह तय हो जाएगा कि विधानसभाओं में भी अब कांग्रेस अपना प्रदर्शन ठीक ढंग से कर सकती है या नहीं? हरियाणा की विधानसभा आकार में छोटी है। वहां इससे पहले सम्पन्न चुनावों में कई बार कांग्रेस पराजित हो चुकी है। देवीलाल और बंसीलाल का युग आंखों के सामने घूमता है। इन्दिरा गांधी की विजय से पूर्व जब भजनलाल अपनी पार्टी बनाकर मुख्यमंत्री बने थे उस समय अपने चालीस मंत्रियों सहित सम्पूर्ण सरकार का कांग्रेसीकरण करके लोकतंत्र के इतिहास में एक नया चमत्कार कर दिखाया था। इसलिए हरियाणा की राजनीति किस समय कैसे करवट बदलती है यह तो वहां के अवसरवादी नेताओं पर निर्भर है लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा की स्थिति भिन्न है। 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर अपनी सरकार बनाना एक बड़ी चुनौती होती है। महाराष्ट्र प्रारंभ से कांग्रेस के लिए अनुकूल रहा है। वहां कांग्रेस के एक से एक बढ़कर दिग्गज नेता और चतुर राजनीतिज्ञ पैदा होते रहे हैं, जिन्होंने कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित भी किया और समय आने पर उसे धूल भी चटाई। अपने बुद्धिजीवियों के लिए प्रख्यात और अपने मराठा चरित्र के लिए अडिग रहने वाले महाराष्ट्र का इतिहास अछूता और अनोखा है, इसलिए नवम्बर 2014 में होने वाले विधानसभा चुनाव केन्द्र और राज्य दोनों के लिए चुनौती हैं। आजादी के बाद से अब तक केवल एक बार शिवसेना भाजपा की सरकार के अतिरिक्त वहां हमेशा कांग्रेस का झंडा फहराता रहा है। कांग्रेस का दबदबा आज भी इतना है कि शरद पवार जैसे नेता ने जब अखिल भारतीय कांग्रेस से अपना नाता तोड़ा उस समय भी कांग्रेस के नाम से ही राष्ट्रवादी कांग्रेस को जन्म देकर अपनी राजनीति को जीवित रखा। इस समय तो मात्र शरद पवार और शिव सेना की ही चुनौती नहीं है, बल्कि उस भारतीय जनता पार्टी का भी वर्चस्व है जिसने दो माह पूर्व ही केन्द्र में एनडीए के रूप में अपनी सत्ता कायम करके सभी को हतप्रभ कर दिया है। इसलिए इस समय कांग्रेस के सामने सबसे जटिल प्रश्न यह है कि वह किस प्रकार अपना स्थान बनाए रखे और मोदी के आकर्षण से जनता को निकालकर अपना वर्चस्व कायम कर सके। यदि भाजपा महाराष्ट्र में सफल होती है तो फिर यह मान कर चलिए कि उसका कारवां कोई रोक नहीं सकता। भाजपा को चिंता इस बात की है कि यदि राज्यसभा में अपना वर्चस्व कायम करना है तो विधानसभा चुनाव में बाजी मारनी होगी। लोकसभा जीतने के पश्चात भी किसी बिल को कानून के रूप में परिणत करवाने के लिए राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी का बहुमत अनिवार्य है। यद्यपि हमारे संविधान निर्माताओं ने अनेक मार्ग अपनाकर लोकसभा के वर्चस्व को हर कीमत पर कायम रखा है। महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव पहली चुनौती हैं। विधानसभाओं में भाजपा की सरकारें कायम होती हैं तभी तो कोई सख्त कानून पास किया जा सकता है। एनडीए के माध्यम से भाजपा को अपने राज्यों की विधानसभाओं का सहारा मिल सकता है, लेकिन अपने पांव मजबूत करना राजनीति में परिपक्वता के लिए प्रथम आवश्यकता है। कांग्रेस इसकी आहट महसूस कर रही है इसलिए जी तोड़कर वह विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सभी मांगों का उपयोग बिना हिचकिचाहट के करेगी। इसके लिए उसे चाहे जिससे दोस्ती करनी पड़े और चाहे जिसकी शरण में जाना पड़े क्योंकि कांग्रेस ने पहली बार महसूस किया है कि उसके अस्तित्व को अब खतरा है, इसलिए वह जी जान से चुनाव के दंगल में सारे करतब आजमाएगी।
कांग्रेस ऐसा ही करतब महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा अपनाकर करना चाहती है, यह उसका मरने से पहले का अंतिम हथियार हो सकता है, क्योंकि आज तक जहां भी उसने यह हथियार अपनाना चाहा वह गलत ही साबित हुआ है। पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार ने घोषणा की है कि यदि कांग्रेस सत्ता में लौटी तो वह मराठाओं को 15 प्रतिशत और मुसलमानों को राज्य में पांच प्रतिशत आरक्षण प्रदान करेगी। आरक्षण एक ऐसा रसगुल्ला है जिसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आना स्वाभाविक है, लेकिन यह रसगुल्ला बाजार में उस बुढि़या के बाल जैसी मिठाई की तरह है जो बच्चा खरीदता तो है लेकिन उसका स्वाद चख नहीं सकता। कई राज्यों ने इसकी घोषणा की। संयोग से उक्त पार्टी चुनाव में सफल होकर सरकार बनाने में भी कामयाब हो गई तब भी आरक्षण उन्हें नसीब नहीं हो सका है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि आरक्षण 50 प्रतिशत तक तो हो सकता है लेकिन उससे आगे नहीं। आंध्र में यह 73 प्रतिशत तक पहुंच गया, तब उच्चतम न्यायालय ने उसे ठुकरा दिया और सरकार को आगे बढ़ने से रोक दिया। ऐसा एक बार नहीं अनेक बार हुआ है जब उच्चतम न्यायालय ने इस सीमा के बाहर किसी को नहीं जाने दिया, क्योंकि सभी राज्यों में संविधान के आधार पर अन्य लोगों को भी आरक्षण प्रदान किया गया है। इनमें अनुसूचित जातियां और जनजातियां पहले से शामिल हैं। अब यदि प्रतिशत 50 को पार कर जाता है तो निश्चित ही वह अन्य लोगों के साथ भारी अन्याय होगा। कानून और संविधान तो सभी के लिए है। जब वह बढ़ता है तो देश का सबसे बड़ा न्यायालय यह अन्याय किस प्रकार सहन कर सकता है? आजादी के बाद समय-समय पर अपना वोट बैंक बढ़ाने और मजबूत करने के लिए राज्य सरकारें ऐसा करती रही हैं इसलिए उच्चतम न्यायालय को बार-बार रोक लगाने के लिए सक्रिय होना पड़ा है। महाराष्ट्र में यदि मराठा समाज को 15 और मुस्लिम को 5 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाता है तो फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का संतुलन किस प्रकार कायम रह सकता है? क्योंकि महाराष्ट्र में इस समय पहले से ही आरक्षित लोगों का कोटा 61 प्रतिशत पहुंच चुका है। अब यदि 20 प्रतिशत को शामिल किया जाएगा तो यह 81 प्रतिशत हो जाएगा। ऐसी स्थिति में समाज के अन्य घटकों को कितने अवसर मिलेंगे इस पर भली प्रकार से विचार किया जा सकता है। इसलिए यह सरकार का केवल एक तीर तो नहीं लेकिन तुक्का हो सकता है, क्योंकि जो जनता अनभिज्ञ होगी वह तो उनकी चाल में अवश्य ही आ जाएगी। इसी समय एक बात और सामने आई है। जब इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई तो सरकार ने मुख्यमंत्री से पूछताछ की। मुख्यमंत्री ने जो उत्तर दिया वह जनता के साथ मजाक नहीं बल्कि कितना बड़ा धोखा है यह महसूस किया जा सकता है। मुख्यमंत्री का उत्तर था कि हमने ऐसा कोई प्रस्ताव पास नहीं किया है और न ही कोई अध्यादेश जारी करवाया है, इसलिए अभी इसका उत्तर देने की हमें आवश्यकता नहीं है। यानी जो कुछ मीडिया में छप रहा है वह केवल एक पब्लिक स्टंट है। यदि ऐसा है तो जनता भली प्रकार समझ ले कि महाराष्ट्र सरकार जनता के साथ कितनी बड़ी धोखाधड़ी कर रही है। जनता इसका उत्तर चुनाव में अपने वोट से ही देगी, तब हमारे भ्रष्ट मंत्रियों की समझ में यह बात आ सकेगी कि जनता से खिलवाड़ करना कितना महंगा होता है। महाराष्ट्र जैसी समृद्ध संस्कृति का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है? संविधान निर्माताओं ने आरक्षण और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग दो प्रावधान रखे हैं। लेकिन उक्त सुविधाओं में से किसी को भी केवल एक ही लाभ दिया जा सकता है,दो लाभ कदापि नहीं। अब तो इसका उपयेाग सरकार जिस प्रकार कर रही है उससे आकर्षित होकर दोनों लाभ एक ही वर्ग उठाना चाहता है। इसलिए संविधान के उल्लंघन की इस साजिश को रोका जाना अनिवार्य है। दोनों का लाभ लेने वालों को सर्वोच्च न्यायालय दंडित करे यह आवाज बुलंद होनी चाहिए। बाबा साहब अम्बेडकर महाराष्ट्र के ही थे,पता नहीं आज उनकी आत्मा क्या कह रही होगी….? मुजफ्फर हुसैन
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