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.हरियाणा प्रदेश को कुछ साल पहले तक जहां दूध-दही के लिए जाना जाता था, वहीं अब यह प्रदेश महिला व वंचितों के उत्पीड़न के लिए खासा चर्चा में रहने लगा है। पिछले एक दशक से प्रदेश में वंचित और महिला उत्पीड़न की घटनाओं में तेजी से वृद्घि हुई है। मई महीने में ही हरियाणा राज्य में महिलाओं के साथ बलात्कार की लगातार 18 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें से मात्र दो को छोड़कर 16 वंचित समाज की महिलाएं थीं। हरियाणा में कांग्रेस सरकार के शासनकाल में बलात्कार, महिला उत्पीड़न की घटनाएं आम हो गई हैं। गोहाना, मिर्चपुर, झज्जर की घटनाओं के बाद बीते 25 मार्च को हिसार जिले के भगाणा गांव की चार वंचित समाज की लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना घटी थी। इस दिल दहला देने वाली घटना के दो माह बाद भी पीडि़त न्याय पाने के लिए दर-दर भटक कर गुहार लगा रहे हैं। पीडि़ताओं सहित सैकड़ों लोग 27 अप्रैल से जंतर-मंतर पर सपरिवार बैठकर धरना दे रहे हैं, लेकिन हरियाणा सरकार पर असर नहीं पड़ रहा है।
हरियाणा में दबंग जातियों का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है। वे किसी भी रूप में अपनी पुरानी जमीन को खिसकते हुए नहीं देखना चाहते। वंचितों पर अत्याचार तो हुड्डा सरकार से पहले चौटाला सरकार में भी हुए, लेकिन हुड्डा सरकार के तहत ऐसे मामलों की सूची ज्यादा लंबी हो गई है। जनवरी 2013 से अक्तूबर, 2013 तक हरियाणा के हिसार में 94, करनाल में 92, रेवाड़ी में 89, रोहतक में 87, गुड़गांव में 34, अम्बाला में 31, फरीदाबाद में 28 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे। हिसार के भगाणा गांव की घटना भी जातिगत विद्वेष से जुड़ी हुई है। यह घटना उन वंचित परिवारों के साथ घटी है जिन्होंने इन दबंगों द्वारा सामाजिक बहिष्कार की घोषणा किए जाने के बावजूद अपना गांव नहीं छोड़ा था। वहीं के कई अन्य वंचित परिवार इस बहिष्कार की वजह से पिछले दो साल से गांव के बाहर रहने पर मजबूर हैं। 25 मार्च को इन दबंग तत्वों ने परिवार को सबक सिखाने की मंशा से चार बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया था। इसके बाद सरपंच ने पूरे परिवार को मार डालने की कथित धमकी दी थी और पुलिस में रपट करने से भी मना किया। उसकी धमकी के बाद भी बच्चियों के पिता ने हार नहीं मानी और उन्होंने एफआईआर दर्ज करवा दी। ऐसे कई मामले हैं जिन्हें पंचायतों और दबंगों द्वारा डरा-धमका कर दबा दिया जाता है। हरियाणा को नंबर एक दर्जे का राज्य कहने वाली सरकार की सच्चाई उजागर हो चुकी है कि यह सिर्फ धनी किसानों और मजबूत लोगों को संरक्षण देने में ही पहली पायदान पर है।
ल्ल मुकेश वशिष्ठ
जम्मू-कश्मीर सरकार विधानसभा चुनाव से पूर्व कर रही गलत फैसले
सरकार की आय का स्रोत करीब 12 सौ करोड़।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन का खर्च ही 18सौ करोड़ रुपये।
5 मेडिकल कालेज खोलने की बात, लेकिन 2 को चलाने के लिए पैसा नहीं।
लोकसभा चुनाव में करारी हार के साथ ही सत्ताधारी नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन जम्मू-कश्मीर में जनता के बीच अपना विश्वास खो चुका है। इसके बावजूद यह गठबंधन आगामी विधानसभा चुनाव से पहले बिना औचित्य वाले सरकारी निर्णय लेने पर उतारू है।
इसके तहत जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक निकायों की संख्या में दोगुनी वृद्धि, पांच नए मेडिकल कॉलेज खोलना, सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु दो वर्ष बढ़ाना आदि घोषणाएं शामिल हैं। इसके विपरीत मंत्रिमंडल समिति की रपट के आधार पर इन घोषणाओं को मनमानी बताया जा रहा है। इसके विरोध में कई स्थानों पर आंदोलन शुरू हो गए हैं। इन्हें दबाने के लिए घोषणाओं पर फिर से विचार करने की बात कही जा रही है।
दरअसल जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक इकाइयों की भरमार ही नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। यहां करीब सवा करोड़ आबादी है और सरकारी कर्मचारियांे की संख्या पांच लाख से अधिक पहंुच चुकी है। ऐसे में राज्य में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन का खर्चा ही18 सौ करोड़ से भी अधिक पहंुच रहा है जबकि राज्य की आय मात्र 12 सौ करोड़ है। राज्य कुल बजट के खर्च में 70 फीसदी केन्द्रीय सहायता पर निर्भर है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार साफ कर चुकी है कि 'छोटी से छोटी सरकार और अधिक से अधिक काम।'
जम्मू-कश्मीर में एक तरफ पांच नये मेडिकल कॉलेज खोले जाने की बात कही जा रही है, लेकिन पहले से खुले दो मेडिकल कॉलेजों की स्थिति दयनीय हालत में है और कॉलेजांे में स्टॉफ तक पूरा नहीं है। 50 फीसदी सरकारी चिकित्सा केन्द्र किराये के भवनों में चल रहे हैं, इनका करोड़ों रुपये किराया देना पड़ता है। ऐसे में साफ है कि नई घोषणाएं करने वाली सरकार की योजनाएं पूरी होने की बजाए अधर में ही लटक जाएंगी। ल्ल विशेष प्रतिनिधि
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