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पाञ्चजन्य
के पन्नों से
वर्ष: 8 अंक: 4 2 13 जून ,1955
जनता आजाद कश्मीर का हल चाहती है
शेष कश्मीर का विलय हो चुका
कश्मीर का भारत के साथ विलय हो चुका है,कश्मीर के मुख्यमंत्री,नेशनल कान्फ्रेंस, प्रजा परिषद तथा राष्ट्रपति ने भी इस बात को मान लिया है। घोषणा भी की है। अब प्रश्न केवल आजाद कश्मीर का है। पं. नेहरू को केवल इसी -आजाद कश्मीर पर आगामी चर्चा करनी चाहिए।
पाकिस्तान रेडियो से प्रधानमंत्री श्री अली ने कहा कि जब नेहरू जी से अगली वार्ता होगी तो वह अन्तिम होगी यदि उस वार्ता में प्रश्न हल नहीं हुआ तो पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा समिति में पुन: प्रतिवेदन करेगा तथा समस्या के शान्तिमय निपटारे के लिए अन्य उपायों की खोज करेगा।
… हमने अनेक बार कहा है पाकिस्तान से केवल आजाद कश्मीर के प्रश्न पर वार्ता होनी चाहिए क्योंकि शेष राज्य का निर्णय तो वहां की जनता अंतिम रूप से स्वेच्छापूर्वक कर चुक ी है। चूंकि पाकिस्तान आक्रमण के द्वारा आजाद कश्मीर को अपने अधिकार में किया है एवं वहां की जनता पाकिस्तानी शासन से असन्तुष्ट है अत: आजाद कश्मीर का शीघ्र ही भाग्य निर्णय होना चाहिए। श्री अली के भाषण में स्पष्ट यह झलकता है कि वो धमकियों से काम लेना चाहते हैं।… नेहरू जी को यह स्थिति ध्यान में रखनी चाहिए। भारत की जनता आजाद कश्मीर के प्रश्न पर हल चाहती है एवं कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ से वापस लेना चाहती है।
समाज का स्वाभिमानपूर्ण जीवन ही राष्ट्रीय जीवन है
3 जून को रा.स्व.संघ का अधिकारी शिक्षण समारोह तथा हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव सुप्रसिद्ध गोभक्त सेठ गोपीकिशन जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ उक्त अवसर पर पू. गुरुजी ने भाषण दिया
अपनी इस भूमि में,अपने इस हिन्दू समाज में विदेशियों के आक्रमणों के प्रारम्भ से अभी तक दो वृत्तियां बराबर दिखाई देती हैं। एक वृति तो आक्रमणकारी से समझौता करने की है,उसके सामने आत्मसमर्पण करने की है उसे अपनी बहन बेटियां देकर आत्माभिमान शून्य हो उसके शरण में जाने की है। इस सबके विपरीत दूसरी प्रवृत्ति प्रचंड आपत्तियों को झेलकर अत्यंत शक्तिशाली शत्रु के सामने भी सिर न झुकाकर अपनी भारत माता को स्वतंत्र एवं वैभव सम्पन्न बनाने की है,अपने देश और समाज को गौरवान्वित करने की है।
अपने यहां मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में राजा मानसिंह एवं महाराणा प्रताप के उदाहरण क्रमश: इन्हीं दो वृत्तियों के परिचायक हैं।
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