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आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल सही मायने में इस समय देश के एनजीओ सरगना हैं। मेधा पाटकर हो या पी. उदयकुमार, सभी एनजीओकर्मी उनकी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं। एनजीओ को राजनीतिक पार्टी में बदलकर सत्ता हासिल करने का खेल खेलने वाले अरविंद केजरीवाल का विदेशी कनेक्शन पूर्व यूपीए सरकार की जांच में सामने आ चुका है, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)' ने घोर सांप्रदायिक 'सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम' का ड्राफ्ट तैयार किया था। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर 'परिवर्तन' नामक एनजीओ से जुड़ गए। वर्ष 2006 में 'परिवर्तन' में काम करने के दौरान ही उन्हें अमरीकी 'फोर्ड फाउंडेशन' व 'रॉकफेलर ब्रदर्स फंड' ने उभरते नेतृत्व के लिए 'रेमन मैगसायसाय' पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके! इसके बाद अरविंद ने उस धन से 19 दिसंबर 2006 को पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन (पीसीआरएफ) नामक संस्था का गठन किया और अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ 'कबीर' से जुड़े। 'कबीर' का गठन इन दोनों ने वर्ष 2005 में किया था।
गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक एनजीओ कबीर का औपचारिक पंजीकरण अगस्त 2005 में हुआ, लेकिन फोर्ड ने उसे जुलाई 2005 में ही फंड उपलब्ध करा दिया, जबकि कानूनन किसी एनजीओ को लंबे समय तक काम करने के उपरांत ही विदेशी चंदा मिल सकता है। यह अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के पूरे एनजीओ गिरोह के अमरीकी कनेक्शन को स्थापित करने के लिए सबसे बड़ा सबूत है। 'फोर्ड फाउंडेशन' के अधिकारी स्टीवन सलनिक ने भी एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में माना कि ''कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमरीकी डॉलर का चंदा दिया गया।'' यही नहीं, 'कबीर' को 'डच दूतावास' से भी मोटी रकम चंदे के रूप में मिली है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक अरविंद केजरीवाल के एनजीओ कबीर को अमरीका से एवं उनके एक अन्य एनजीओ परिवर्तन को नीदरलैंड की एनजीओ 'हिवोस' से जबरदस्त फंडिंग हुई है। हिवोस ने भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग की है। मजे की बात देखिए कि 'हिवोस' को भी अमरीकी फोर्ड फाउंडेशन फंडिंग करती है। डच एनजीओ 'हिवोस' दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को चंदा देती है, जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमरीका व यूरोप के हित में काम करते हैं।
केवल चार साल में विदेशों से आ चुकी है 40 हजार करोड़ की रकम
ग्रीनपीस, मेधा पाटकर, पी़ उदयकुमार, तीस्ता सीतलवाड़, अरविंद केजरीवाल एंड गिरोह तो कुछ नाम भर हैं। पूर्व गृहराज्य मंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन द्वारा राज्यसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2005-2009 के दौरान देश में 77 हजार 850 एनजीओ को विदेशों से 40 हजार करोड़ रुपए मिले हैं। उनके अनुसार, 2005-06 में 18,650 एनजीओ को 7889़12 करोड़ रुपए मिले थे। इसके बाद 2006-07 में 19,462 एनजीओ को 11,111़12 करोड़ रुपए, 2007-08 में 19,247 एनजीओ को 9723़96 करोड़ रुपए और 2008-09 में 20,499 एनजीओ को 10,837़49 करोड़ रुपए के बराबर सहायता राशि या चंदा विदेश से मिला। ल्ल
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