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12 जून को मैं कुरुक्षेत्र संघ शिक्षा वर्ग में पहुंचा। तभी मोबाइल की घंटी बजी। 'मैं अशोक कुमार बोल रहा हूं़.़.ज़ैसलमेर-जोधपुर के रास्ते में हमारे साथ सड़क हादसा हो गया है, राकेश जी और एक अन्य कार्यकर्ता चले गए हैं़.़.़'। इसके बाद कुछ देर तक मौन संवाद जारी रहा। झण्डेवाला कार्यालय में, फिर सरकार्यवाह जी और सरसंघचालक जी को मैंने हादसे की जानकारी दी। जिसने भी सुना हतप्रभ रह गया। मेरी आंखों के सामने गत 41 वर्ष के साथ की यादें घूमने लगीं। 1973 में अबोहर में लगे संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष में श्री राकेश जी और मेरी पहली मुलाकात शिक्षार्थी के रूप में हुई और आखिरी भेंट 13 जून को उन्हें अंतिम विदाई देते हुए, एकतरफा ही हुई।
आपातकाल के दौरान कांग्रेस ने 'इंदिरा इज इंडिया' का नारा दिया था। इस विचार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने 'कामागाटामारू' में अधिवेशन बुलाया। इस अधिवेशन में इंदिरा गांधी और राष्ट्रविरोधी विचारों का विरोध करने के लिए स्वयंसेवकों ने वहां सत्याग्रह करने की योजना बनाई। इस पूरी योजना का नेतृत्व राकेश जी ने किया। श्रीमती इंदिरा गांधी का भाषण शुरू होते ही सभागार 'भारत माता की जय', 'तानाशाही खत्म करो', 'इमरजेंसी हटाओ' के नारों से गूंज उठा। घुड़सवार पुलिस ने घोड़े दौड़ाए, लाठियां बरसाइंर् और देखते ही देखते सभा खत्म हो गई। इस सत्याग्रह के दौरान स्वयंसेवकों को वहां पहुंचाने, सूचनाओं का आदान-प्रदान करने और पूरे घटनाक्रम की जानकारी एकत्रित करने की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी। सो, मैं इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी रहा। अधिवेशन स्थल पर चारों ओर से पुलिस की लाठियों की आवाज आ रही थी और खून के फव्वारे ही नजर आ रहे थे। पुलिस हतप्रभ थी और सत्याग्रही खून की लालिमा में भी मुस्करा रहे थे। पंजाब में आतंकवाद के काले दिनों के दौरान राकेश जी अमृतसर के विभाग प्रचारक के रूप में जिम्मेदारी निभा रहे थे। बरसती गोलियों एवं बम विस्फोटों की गूंज में वे सतत गतिमान रहकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते रहे और समाज में अलगाव को नकारते हुए समरसता का मंत्र फूंकते रहे। उन दिनों पंजाब में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति तथा अन्य सुरक्षात्मक उपायों का प्रशिक्षण भी उनके जिम्मे था। आतंकवादियों द्वारा कार्यकर्ताओं की हत्या, अपहरण, सामूहिक हत्याकाण्ड, शाखाओं पर हमला, बटाला नगर तथा फतेहगढ़ चूडि़या का उग्रवादियों द्वारा घेराव, इस प्रकार के हर अवसर पर राकेश जी तुरंत पहुंचते थे। उनके आते ही सबको लगता था कि समाधान आ गया। शायद उनकी इन्हीं खूबियों के कारण संगठन ने उन्हें चुनौतीपूर्ण जम्मू-कश्मीर प्रांत का दायित्व सौंपा। हत्याओं और पलायन का दौर चरम पर था, लेकिन राकेश जी विस्थापितों की व्यवस्था एवं सेवा करने तथा समाज का मनोबल बढ़ाने का आह्वान करते रहते थे। उनकी योग्यता और क्षमता के अनुरूप ही वर्तमान में उनके पास अखिल भारतीय सीमा जागरण प्रमुख की जिम्मेदारी थी। 'सरहद को प्रणाम' कार्यक्रम की सफलता के पीछे श्री राकेश जी का ही कौशल था। श्री राकेश जी जीवन में कभी झुके नहीं, रुके नहीं और थके भी नहीं। ऐसे प्रेरणापुंज साथी को मेरा शत-शत नमन। -रामेश्वर दास
क्षेत्रीय प्रचारक,उत्तर क्षेत्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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