|
पाञ्चजन्य – के पन्नों से
वर्ष: 8 अंक: 4 1 6 जून ,1955
शेख अब्दुल्ला कश्मीर को अपने हाथों से बेचने वाला था। डॉ. श्यामा प्रसादमुखर्जी की मृत्यु का कारण उसकी सरकार थी। आज भी अपने साथियों द्वारा कम्युनिस्टों के हाथ कश्मीर को सौंपने का वह प्रयत्न कर रहा है,उसकी बेईमानी और देशद्रोहिता किसी से छुपी नहीं है। उस पर पंडित जी यदि विश्वास करते हैं तो समझना कश्मीर का भाग्य जानबूझकर अंधकार में धकेला जा रहा है।
कुछ ही दिन पूर्व पं. नेहरू दिल्ली में बोले थे कि शेख अब्दुल्ला की रिहाई करने में अब कोई हर्ज नहीं है। उसे आवश्यक सजा मिल गई है। अभी-अ्रभी अब्दुल्ला के दोनों लड़के शेख तारिक और फारुख राजधानी में आए थे। श्रीमती अब्दुल्ला भी दिल्ली आने वाली थंी,किन्तु नहीं आई थी। गत कुछ दिनों में अब्दुल्ला ने पं. जी को तार तथा पत्रों से अपनी रिहाई के लिए निवेदन किया था। नेहरू अली चर्चा के बाद तुरन्त नेहरू ने बक्शी गुलाम और सादिक को बुलवाया है। सुना जाता है कि शेख अब्दुल्ला की रिहाई के विषय में चर्चा की जायेगी। साथ ही साथ रूस जाने से पहले पं. नेहरू अब्दुल्ला की रिहाई पर निर्णय देंगे, ताकि आगामी भारत-पाक चर्चा, जो विशेषकर कश्मीर पर होने वाली है,सरल हो सके।
किन्तु ध्यान रहे अभी-अभी सादिक ने जम्मू में कहा था कि-अब्दुल्ला को मुक्त करने ेसे राज्य की शान्ति को खतरा है। साथ ही साथ प्रजा परिषद और जनसंघ नेताओं ने कहा ही है कि शेख अब्दुल्ला पर मुकदमा चलाया जाए। आज कश्मीर चर्चा केवल अब्दुल्ला की मुक्ति से सुलझ सकती है,नेहरू की ये धारणा गलत है। इतना ही नहीं तो अब्दुल्ला को मुक्त करके नेहरू एक वह समस्या खड़ी कर देंगे जो घटेगी तो पं. जी की भावुकता के कारण,किन्तु परिणाम भोगना पड़ेगा देश को। कश्मीर के नेशनल कान्फेंस के नेता,प्रजा परिषद के नेता, जनसंघ के नेता तथा भारत के गैर कांग्रेसी नेताओं के विरुद्ध पं. जी का यह कदम होगा। देश एक बार सावधान होकर नेहरू को इस निर्णय को बदलने के लिए बाध्य करे।
शिवाजी का आदर्श सन्मुख रखें- पू. गुरुजी
प्रतिकूल परिस्थिति में शिवाजी का जन्म हुआ। उसने योजनाबद्ध कार्य कर स्वतंत्रता की स्थापना की। उस शिवाजी का आज स्मरण करो ,आशा और विश्वास उत्पन्न करो। उन दिनों विदेशियों की नौकरी में भारतवासी अपने को सुखी और सुरक्षित समझता था। वृत्ति नीच,विचार मूलक परिस्थितियां विकट और वातावरण विषाक्त फिर भी बाल शिवाजी ने स्वतंत्रता प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प किया। स्वराज्य की नींव डाली। अपनी बुद्धि एवं शक्ति से अनेक परीक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरा- उस महापुरुष का हम स्मरण करें। जय-विजय का आदर्श हमारे सन्मुख सदा रहे। पूर्ण विकसित जीवन,अक्षय आशावाद,हिन्दू समाज की अक्षुण्ण राष्ट्रीयता और निडर अन्त:करण शिवाजी के जीवन में था।
टिप्पणियाँ