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जिस तरह से इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल पर आतंकी संगठन 'इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत' (आईएसआईएल) ने कब्जा किया है उससे पूरी दुनिया हतप्रभ है। आतंकियों के मोसुल पर कब्जा कर लेने के बाद इराक के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। कई जानकारों ने इसे सद्दाम की फौज के विखंडन जैसा बताया है और निष्कर्ष निकाला है कि इराकी सेना लड़ने में अक्षम है। इस बात में कोई संदेह नहीं है की इराकी सेना के पास बेहतर हथियार बहुत हैं, लेकिन वे लड़ाई के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षत हैं, इस बात पर संदेह है। इस तरह का मामला पश्चिमी लोगों द्वारा प्रशिक्षित ज्यादातर एशियाई सेनाओं के साथ है। इराकी सेना का लड़ाई में बेहद खराब प्रदर्शन केवल उसके सही प्रशिक्षण कमी की वजह से ही नहीं है उससे भी बड़ी चीज उसका गिरता मनोबल और नस्लीय धु्रवीकरण है। खबर है कि सुन्नी फौजी और जनरल आईएसआईएल से लड़ना ही नहीं चाहते। इसका परिणाम यह है कि आईएसआईएल के कुल 1300 लड़ाकों ने ईराक के दूसरे सबसे बड़े शहर पर कब्जा कर लिया है। जबकि उससे चार गुणा ज्यादा इराकी सैनिक उस शहर की रखवाली कर रहे थे। माना जाता है कि करीब 90 हजार इराकी फौजी आईएसआईएल के हमलों के चलते अपनी तैनाती से भाग खड़े हुए हैं।
उन स्थानों पर, जहां इराकी सेना को स्थानीय लोगों का समर्थन है, वहां पर उन्होंने खुद को अच्छे से संभाला हुआ था। इससे भी बढ़कर कुर्दिश ऑटोनोमस रीजन का सशस्त्र बल, पेशमरगा आईएसआईएल से किर्कुक कब्जाने में कामयाब हो गया। इससे पता चलता है कि आईएसआईएल जुनून लेकर लड़ रहे बलों के सामने कुछ खास नहीं कर पाता, खासकर उन जगहों पर जहां उसे स्थानीय समर्थन हासिल न हो रहा हो। मोसुल से आने वाली हाल की रपटों ने यह भी दिखाया है कि बाथ पार्टी के पूर्व सदस्यों ने बड़ी तादाद में आईएसआईएल में विलय करके शहर को कब्जाया है। हालांकि आईएसआईएल की जीत का व्याप किसी तरह कम नहीं आंका जा सकता। मोसुल कब्जाने के बाद, इसने तिकरित, तल अफार को भी कब्जे में कर लिया है और बगदाद से 60 मील दूर तक आ पहुंचा है। अब इसका लेबनान से कई गुणा बड़े इलाके पर नियंत्रण है। इस जंग में इसके पास मोसुल के कई बैंकों से लूटा सोना है और करीब 429 मिलियन नकद हैं। इस संपदा के चलते यह गुट दुनिया के कई देशों से ज्यादा अमीर हो चला है। इसने भारी तादाद में सेना के अत्याधुनिक उपकरण कब्जाए हैं। जीत के बाद आईएसआईएल द्वारा हजारों बंधक सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों को मारा जाना दिखाता है कि यह दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठनों में से एक है। इस गुट की बर्बरता से इराक के लोग हैरान हैं। वे इस बात से ज्यादा हैरान हैं कि इसने अपने लड़ाकों द्वारा जीते हुए इलाके को शियाओं को सौंपने से बिल्कुल इंकार कर दिया है। बगदाद और नजफ तथा कर्बला के शिया मजहबी स्थानों पर चढ़ बैठने के इसके घोषित मकसद ने दुनिया भर के शियाओं को परेशान कर रखा है।
इस गुट ने बगदाद से 130 मील उत्तर में बैजी में स्थित सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी पर भी हमला किया। बताते हैं, रिफाइनरी अभी उनके कब्जे में है। हालांकि इराकी सैनिक जमकर टक्कर ले रहे हैं पर ये कभी भी आईएसआईएल के हाथों में जा सकती है। भारतीय तेल आयात का एक बड़ा हिस्सा इराक से आता है और वहां इस तरह की भारी उथल-पुथल कच्चे तेल के दामों को आसमान पर चढ़ा देगी। इराक में दस हजार से ज्यादा भारतीय काम कर रहे हैं, जो वहां से पैसा कमाकर घर भेजते हैं। आईएसआईएल ने 40 भारतीयों को बंधक बनाया हुआ है जबकि अनेक इस लड़ाई के बीच फंस गए हैं। अगर लड़ाई फैलती है तो पूरा खाड़ी क्षेत्र इसकी लपटों में घिर जाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को उसकी तपिश झेलनी पड़ सकती है।
शिया मजहबी स्थलों पर हमलों की आशंका से भारत के शिया चिंता में हैं और भारत में कुछ शिया संगठनों ने इराक में लड़ने के इच्छुक शियाओं का पंजीकरण भी शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के तहरीके तालिबान के लड़ाके पहले ही आईएसआईएल के साथ मिलकर लड़ रहे हैं, उन दोनों के बीच वैचारिक स्तर पर काफी जुड़ाव है। दो कट्टर सुन्नी उग्रवादी गुटों, पश्चिम में आईएसआईएल और अलकायदा के बीच फंसा ईरान घटनाओं को लेकर चिंतित है और उसने इराक में अपने सैनिक भेज दिए हैं। इसी तरह अमरीका भी चिंतित है कि इराक में आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य कायम करने के उसके प्रयास आईएसआईएल के हमले से खटाई में पड़ सकते हैं। इरान में अपने बहुत ज्यादा हितों के होने से भारत को इस मौके पर ईरान और इराक के साथ नजदीकी संबंध बनाने चाहिए। ऐसे मौके पर जब शिया खुद को दुनियाभर में हाशिए पर पा रहे हैं, भारत को उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए, जिससे भारत के शियाओंे को यह भरोसा हो कि भारत शिया मजहबी स्थलों को बचाने में इराक सरकार की मदद करेगा। दोनों देशों के साथ संबंध मधुर बनाने की कोई भी पहल गंवाई नहीं जानी चाहिए। शियाओं को मजबूती देने के साथ-साथ हाल की घटनाओं ने एक स्वतंत्र कुर्दिश राज्य की बुनियाद भी डाली है। यह इलाका भी तेल से भरपूर है और कुर्द अपने व्यवहार में सेक्युलर ही दिखे हैं। भारत सरकार को उनके साथ बातचीत के रास्ते खोलने चाहिए। भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भी सूचित करना होगा कि इराक में जो हो रहा है वैसा पाकिस्तान में भी हो सकता है। पहले भी ऐसी घटनाएं देखने में आई हैं जहां पाकिस्तान में 200 हथियारबंद सैनिकों ने 20 सैनिकों के सामने घुटने टेक दिए थे।
पाकिस्तान सशस्त्र बलों का एक बड़ा हिस्सा जिहादी पट्टी पढ़ा हुआ है, जिससे पाकिस्तान के शहरों की हिफाजत को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। कराची में हमने हाल की घटनाएं देखीं हैं। वहां सैन्य ठिकाने और परमाणु जखीरा भी खतरे में पड़ सकता है। कुनमिंग में इस्लामी आतंक देख चुका चीन भी चिंतित है और उसे भी यह साफ बता देना होगा कि पाकिस्तान में और ज्यादा न्यूक्लियर प्लांट का मतलब ज्यादा असरकारक यूरेनियम का उत्पादन ही होगा, जिस पर तालिबान और अलकायदा का शिकंजा कसने का खतरा बना रहेगा। इसलिए यह जरूरी है कि चीन यह समझे कि चश्मा-3 या 4 पर आगे न बढ़ना उसके खुद हित में होगा। -आलोक बंसल-
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