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वे मीडिया के महारथी हैं। शुरुआत की थी सरकारी सूचनाएं एवं नाम परिवर्तन, सेल्स टैक्स के फार्म इत्यादि खो जाने की सूचनाएं देने और मुखपृष्ठ पर नगरपालिका और कलेक्ट्रेट के समारोहों में मुख्य अतिथि को माला भेंट करते हुए अपने चित्र छापने से। उनका दैनिक पत्र बदमिजाज मोटरकार की तरह तब-तब छपता था, जब-जब उसका मन करता था अर्थात जब पर्याप्त विज्ञापन इकट्ठा हो जाते थे, जो प्रतिदिन संभव नहीं था। वे इस कथित दैनिक के सम्पादक, प्रकाशक, मुख्य संवाददाता, मुद्रक और हाकर अर्थात पितु-मातु सहायक, स्वामी, सखा सब कुछ थे। पर यह प्रगतिशील युग है। उनकी लेटरप्रेस मशीन का आपरेटर कम टाइपसेटर तरक्की करते-करते पहले नगरपालिका का सदस्य, फिर चेयरमैन और अंत में विधायक बन गया तो उन्हें पसंद करने वाले जिलाधीश ने सचिव बन जाने पर उन्हें प्रदेश की राजधानी में बुलाकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में घुसवा दिया। अपनी योग्यता और परिश्रम के बूते सीढि़यां चढ़कर वे अब एक लोकप्रिय समाचार चैनल के समाचार निदेशक हैं।
अपनों को वे कभी नहीं भूलते। मैं उनके स्कूली दिनों का मित्र हूं, मुझे भी नहीं भूले। राजधानी में मुझे एक अच्छी नौकरी में फिट करा दिया। नियमित रूप से उनके दर्शन करने जाता रहता हूं। कल गया तो मुम्बई जाने की पहली उपलब्ध फ्लाईट पकड़ने की जल्दी में थे, फिर भी सामने बैठाकर, मोबाइल पर अनेकों लोगों से बतियाते हुए , 'कभी ब्रीफ केस में कागज पत्र रखते हुए, कभी निजी सहायक को निर्देश देते हुए, मुझे भी समय दिया।
मैंने पूछा मुम्बई कैसे जाना पड़ गया? प्रधानमंत्री तो वहां से वापस आ गए हैं। वे बोले अरे उससे कहीं ज्यादा सनसनीखेज बातें वानखेड़े स्टेडियम में हो गयीं। टी. वी. चैनल के दर्शकों के खून की रफ्तार तेज करने की जो दवा आईपीएल की चीयरगर्ल्स में थी, उससे कहीं अधिक पोटेंसी की दवा प्रीति जिंटा ने नेस वाडिया के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज करा के मुतैया कराई है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर लगातार हो रहे हमलों, पाश्विक बलात्कार, उत्पीड़न से लेकर हत्या तक के निर्मम समाचारों को लेकर देशवासियों में गम्भीर रोष और आतंक का माहौल है। ऐसे में मेरा चैनल प्रीति नेस मसले को एक बेहद गंभीर मुद्दा मानता है। पत्रकार का कर्तव्य निभाना न होता तो मानसूनी मुम्बई के कीचड़ पानी में क्यूं जाता। ऐसे में कीचड़ में उतरना पत्रकार का परम कर्तव्य है।
मैंने कहा- पर प्रीति ने तो कह दिया है कि बात यौन प्रताड़ना की नहीं, सिर्फ हाथापाई की थी, सो उसकी पुलिस तहकीकात करेगी। आप क्यूं भागे जा रहे हैं? वे बोले- मीडिया की दृष्टि में कोई भी बात 'बस इतनी सी' नहीं होती। 'बात निकली है तो दूर तलक जायेगी'। न जाए तो पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। पता तो लगाना ही पड़ेगा कि जब नेस ने दस साल तक उनकी उंगली पकड़ने के बाद ऐसा करना बंद कर दिया तो अब अचानक वे पहुंचा कैसे पकड़ सकते हैं। सैफी वहां थे, उनसे पूछना पड़ेगा कि जो कुछ हुआ क्या वह भी 'बड़े आराम से' हुआ? सलमान खान अब पुलिस,कोर्ट-कचहरी की बातें तेजी से भागती मोटरकार और उससे भी तेज भागते काले हिरन की गति से समझ लेते हैं। शायद वे कुछ बता पायें। शाहरुख खान भी थे। उनसे पूछूंगा 'असल में क-क- क -क क्या हुआ?' समाचार पत्र के पेज तीन पर बसने वालों के पेज वन पर आने को लेकर पूछने के लिए मेरे पास प्रश्नों का अम्बार है!
मैंने कहा प्रश्न तो आपने सैकड़ों पूछे थे उत्तर प्रदेश के बलात्कार, हत्या, महिला और परिवारवालों को धमकाने, एफआईआर न लिखने आदि को लेकर। आखिर में उत्तर प्रदेश अनुत्तर प्रदेश ही रहा।
वे बोले अरे उत्तर मिल तो गया भाई। सौ बातों की एक बात। 'जबरन तो कोई किसी जानवर को भी नहीं ले जा सकता है। बस एक बार आजम खान की भैंसों को ले गए वे भी दूसरे ही दिन वापस आ गयीं । फिर उत्तर प्रदेश में ये सब होना कौन सा बंद होने जा रहा है।
इस लू धूप में मैंने अपने रिपोर्टर्स तो वहां भेज ही दिए थे। जरा गुलाबी जाड़े में खेतों में भुने चना-मटर के साथ गन्ने का ताजा रस पीने वाले दिन आएं तो मैं भी हो आऊंगा। उत्तर प्रदेश में 'लड़के तो लड़के ही हैं',वे कौन सा दो चार महीने में बड़के हो जायेंगे। अभी जरा मुम्बई की उच्च कोटि की समस्याएं सुलझा आऊं, फिर उत्तर प्रदेश में नए उत्तर खोजने भी जाऊंगा।
अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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