पाठकों के पत्र- किसी की बपौती नहीं जम्मू-कश्मीर
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पाठकों के पत्र- किसी की बपौती नहीं जम्मू-कश्मीर

by
Jun 14, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Jun 2014 16:04:47

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नासमझी ही कहेंगे कि उन्होंने अनुच्छेद-370 के विषय को अनावश्यक तूल दे दिया और इसे वोटों के लिए एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की। विषय तो था कि आजादी के 65 वर्ष बाद अब इस बात पर विचार होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद-370 से कितना लाभ और हानि हुई? अब्दुल्ला ने राज्य के लोगों का ध्यान भटकानेे के लिए इसे राज्य के लोगों की अस्मिता से जोड़ दिया और केन्द्र सरकार को गीधड़ भभकियां देनी शुरू कर दीं। अगर उमर ध्यान से भारत के संविधान को पढ़ें, तो पाएंगे कि अनुच्छेद-370 एक आस्थाई धारा है न कि सदा-सर्वदा के लिए। अनुच्छेद -370 का नाम लेने भर से ही उमर अब्दुल्ला ऐसे आग बबूला हो जाते हैं कि उन्हें यह भी पता नहीं रहता कि वे क्या बोल रहे हैं? क्या अनुच्छेद -370 का नाम लेना अपराध है? यह एक राष्ट्रीय विषय है और इस पर पूरे राष्ट्र में निष्कर्षपूर्ण बहस होनी चाहिए और आवश्यकता महसूस होने पर इसमें परिवर्तन होना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर अब्दुल्ला परिवार का कोई व्यक्तिगत मामला नहीं है, जिसका नाम लेने पर वे आग बबूला हो जाते हैं। उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि भारत के साथ पूरे जम्मू-कश्मीर का विलय वहां के शासक महाराजा हरि सिंह की इच्छा से हुआ था। संधि पत्र के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। बाद में शेख अब्दुल्ला ने लम्बे समय तक राजनैतिक लाभ के लिए नेहरू से मिलीभगत करके संविधान में अस्थाई तौर पर अनुच्छेद-370 को जुड़वा दिया और आज तक उसी फसल को काट रहे हैं। लेकिन उमर को पता होना वाहिए कि अन्य धाराओं की तरह इसमें भी परिवर्तन किया जा सकता है या इसे हटाया जा सकता है। उमर का संविधान के प्रति अधूरा ज्ञान ही है, जो वह यह समझते हैं कि अनुच्छेद-370 हटने से जम्मू-कश्मीर भारत से अलग हो जायेगा। उन्हें पता होना चाहिए कि इस देश के लोगों के हृदय में जम्मू-कश्मीर बसता है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह बात उमर को सदैव ध्यान में रखनी चाहिए। उमर अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री हैं और यह एक जिम्मेदार पद होता है। उन्हें चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने और समझने की कोशिश करनी चाहिए। खासकर इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर गलत ढंग से व्याख्या करके कश्मीर सहित पूरे देश के लोगों का ख्ूान नहीं खौलाना चाहिए। उन्हें एक बात और दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है,किसी व्यक्ति विशेष की बपौती नहीं है।
-अरुण मिश्र,
324, राम नगर(दिल्ली)

पाठ्यक्रम में हो जीवन-चरित्र
एक लंबे समय से देश के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पढ़ाया जा रहा है। इसके पीछे देश विरोधी ताकतों का षड्यंत्र है कि देश की संस्कृति और उसके गौरवशाली इतिहास को नष्ट कर दो, तो आने वाली पीढ़ी स्वत: ही नष्ट होने के कगार पर आ जायेगी, क्योंकि, जो व्यक्ति देश के इतिहास और संस्कृति को नहीं जानता वह राष्ट्र के गौरव को कैसे ऊंचा रख सकता है। सेकुलर दलों और देश विरोधी ताकतों का षड्यंत्र काफी हद तक सफल भी रहा क्योंकि उन्होंने बच्चों के पाठ्यक्रम में देश भक्तों और क्रान्तिकारियों को न पढ़ाकर 'महान अकबर' के काल्पनिक चरित्र को पढ़ाने का काम किया, जिसने हिन्दू और हिन्दुस्थान पर अत्याचार किया। नई सरकार से आशा है कि वह पाठ्यक्रमों से लूटने वालों और देशद्रोहियों के जीवन चरित्रों को हटाकर देशभक्तों की जीवनी को इसका हिस्सा बनाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी को उन्नति का मार्ग व श्रेष्ठ नागरिक बनने की प्रेरणा प्राप्त हो सके।
-छगनलाल बोहरा
उदयपुर (राज.)

शर्म करो अखिलेश!
उ.प्र. में बलात्कारियों का खुलेआम आतंक है। सरेआम मां,बहनांे के साथ बलात्कार, हत्या व छेड़खानी हो रही है,लेकिन उ.प्र. सरकार ऐसे मौन है, जैसे सब कुछ सामान्य हो। कार्रवाई के नाम पर उल्टे शासन की ओर से उनको संरक्षण दिया जा रहा है। राज्य में कानून व्यवस्था का हाल है कि यहां कानून का डंडा जाति पूछ कर चल रहा है। खुद मुलायम सिंह कहते हैं 'कि बलात्कार करने वाले लड़कों से गलती हो जाती है' तो किस पर भरोसा किया जाए। जिन पर जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वह स्वयं ही भक्षक बन कर सामने आ रहे हैं। लूट, हत्या, बलात्कार का राज्य में रिकार्ड बन रहा है। सुरक्षा, सम्मान को तरसती महिलाएं एवं शान्ति पूर्ण जीवन को तरसते लोग राज्य के अनियंत्रित गुण्डा राज से परेशान हो चुके हैं।
-अजय मित्तल
खंदक, मेरठ (उ.प्र.)

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