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आखिरकार 2 जून 2014 को देश के 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना अस्तित्व में आ ही गया। तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के़ चंद्रशेखर राव प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्हें राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने राजभवन में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। नरसिम्हन तेलंगाना और सीमांध्र दोनों प्रदेशों के राज्यपाल होंगे। इसी के साथ अविभाजित आंध्र प्रदेश में लागू राष्ट्रपति शासन भी आंशिक तौर पर हटा लिया गया। नए राज्य के गठन से जहां एक तरफ जोश का माहौल है वहीं दूसरी ओर कुछ चुनौतियों भी हैं जिन से पार पाना बेहद जरूरी है। तेलंगाना राज्य के गठन के लिए वषोंर् से संघर्ष कर रहे तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के़ चंद्रशेखर राव इस नवीन राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश से अलग एक राज्य बनाने के लिए क्षेत्र में चल रहा दशकों पुराना संघर्ष समाप्त हो गया। हैदराबाद शहर तेलंगाना और सीमांध्र दोनों प्रदेशों की राजधानी होगा। तेलंगाना के गठन के बाद मौजूदा आंध्र प्रदेश के शेष भाग में राष्ट्रपति शासन उस वक्त तक जारी रहेगा जब तक टीडीपी प्रमुख एऩ चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री का पद नहीं संभाल लेते। राव के शपथ लेने के साथ ही टीआरएस और भाजपा में रिश्ते सुधरने के संकेत मिले हैं। पहले नरेंद्र मोदी ने राव को शुभकामनाएं दीं, फिर राव ने कहा कि नरेंद्र मोदी से उनके संबंध तनावपूर्ण नहीं हैं। नए बने तेलंगाना और शेष आंध्र प्रदेश, दोनों राज्यों में लोग तेलुगुभाषी ही हैं। ऐसे में हिंदी के बाद तेलुगु एक मात्र ऐसी भाषा बन गयी है जिसे एक से अधिक राज्यों की भाषा होने का गौरव हासिल होगा।
किसको क्या मिला – हैदराबाद शहर तेलंगाना और सीमांध्र दोनों प्रदेशों की राजधानी। ऐसा अगले 10 साल तक होगा। तेलंगाना में आंध्र के 23 में से 10 जिले है- हैदराबाद, आदिलाबाद, खम्मम, करीम नगर, महबूब नगर, मेंढक, नलगोंडा, निजामाबाद, रंगारेड्डी और वारंगल। – राज्य की दोनों प्रमुख नदियों कृष्णा और गोदावरी का पानी दोनों राज्यों में बंटेगा। – आंध्र में लोकसभा की 42 सीटें थी। अब तेलंगाना में 17 सीटें और शेष सीमांध्र में 25 सीटें रहेंगी। आंध्र में 294 विधानसभा सीटें थी। तेलंगाना में 119 सीटें और शेष सीमांध्र में 175 सीटें होंगी। – बंदरगाह शहर विशाखापट्टनम और तिरुपति मंदिर भी सीमांध्र के खाते में आया है। |
गुलाबी रंग में रंगा हैदराबाद
तेलंगाना गठन के बाद प्रदेश में जश्न का दौर शुरू हो गया है। सत्ताधारी टीआरएस, अन्य राजनीतिक पार्टियों और तेलंगाना समर्थकों ने हैदराबाद सहित कई स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किये। टीआरएस कार्यकर्ता और समर्थकों ने पूरे हैदराबाद को टीआरएस के गुलाबी रंग के झंडों से पाट दिया, शहर में बड़े-बड़े पोस्टर, बैनर लगाए गए हैं जिनमें चंद्रशेखर राव की तारीफ के पुल बांधे गए हैं। टीआरएस ने हाल ही तेलंगाना क्षेत्र में आयोजित विधानसभा चुनाव में 119 सीटों में से 63 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया था! इस 29वें राज्य के गठन के साथ ही एक बहस यह शुरू हो गई है कि क्या यह अपने गठन के औचित्य को सिद्घ करेगा? क्या इससे इस क्षेत्र और यहां के नागरिकों को विकास और आगे बढ़ने के ज्यादा अवसर मिलेंगे? अथवा फिर इससे देश पर एक राज्यपाल, एक मुख्यमंत्री और एक विधानसभा सहित राजनेता और नौकरशाहों की एक लम्बी-चौड़ी फौज का बोझ ही बढे़गा?
तेलंगाना का इतिहास
1953 में राज्यों की सीमाओं के निर्धारण के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया था। आयोग का पैनल नहीं चाहता था कि एक भाषा होने के बावजूद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को मिलाकर एक कर दिया जाए। नेहरू की दखल के बाद राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को 1 नंवबर, 1956 को एक कर दिया गया। 1 नवंबर 1956 को आंध्र प्रदेश राज्य बनाया गया जिसकी राजधानी हैदराबाद प्रांत की तत्कालीन राजधानी हैदराबाद शहर को बनाया गया। तब नेहरू ने कहा था इस शादी में तलाक की संभावनाएं बनी रहने दी जाएं!
यूं शुरू हुआ आंदोलन
29 नवंबर 2009 को चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में टीआरएस ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करते हुए तेलंगाना के गठन की मांग की। केंद्र सरकार पर बढ़ते दबाव के चलते 3 फरवरी 2010 को पांच सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने 30 दिसंबर 2010 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी। आखिरकार तेलंगाना में भारी विरोध और चुनावी दबाव के चलते 3 अक्तूबर 2013 को यूपीए सरकार ने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन को मंजूरी दे दी!
निजाम (1724-1948) ने तेलंगाना शब्द का इस्तेमाल अपने राज्य में मराठी भाषी क्षेत्रों को अलग करने के लिए किया था। 230 ई़ पू़ से 220 ई़ पू़ तक इस इलाके में कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच सातवाहन वंश ने शासन किया। 1083 से 1203 ई़ तक यहां काकतीय वंश के राजाओं ने शासन किया। उनके काल को यहां का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस राजवंश ने वारंगल को अपनी राजधानी के तौर पर स्थापित किया। 1309 ई़ में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल पर हमला बोल दिया जो काकतीय वंश के पतन का कारण बना। 1687 तक इस जगह पर दिल्ली सल्तनत की हुकूमत रही। 1687 में हैदराबाद के करीब स्थित गोलकुंडा पर मुगल आक्रांता औरंगजेब का कब्जा हो गया था। 1769 में निजाम उल मुल्क आसिफ जाह (आसिफ जाह निजाम वंश) ने हैदराबाद को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया। 1946 तक ये क्षेत्र ब्रिटिश और निजाम के अधीन ही रहा। 1947 में भारत के आजाद होने के बाद हैदराबाद के निजाम ने भारतीय संघ में मिलने से इनकार कर दिया। निजाम ने नेहरू और सरदार पटेल के आग्रह को भी ठुकरा दिया। ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने सेना भेजकर हैदराबाद रियासत को 17 सितंबर 1948 को भारतीय संघ में मिला लिया।
छोटे राज्यों ने भी किया है विकास
तेलंगाना का जन्म अटपटे तरीके से हुआ है। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड का जन्म जितनी शांति से हुआ, वैसा यहां नहीं है। तेलंगाना और सीमांध्र के बीच हैदराबाद को लेकर विवाद होना स्वाभाविक है और इसका आसानी से हल नहीं हो सकता। स्वास्थ्य, व्यापार तथा शिक्षा की दृष्टि से यहीं सबसे बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा निजामशाही काल से दख्खिनी मुसलमानों को लगता है कि इस शहर पर उनकी दावेदारी मुल्कियों से ज्यादा मजबूत है। इससे सांप्रदायिक तनाव या सद्भावना के संकट की वजह से हालत उलझते रहते हैं। आर्थिक रूप से सीमांध्र और तेलंगाना में लगातार चले आंदोलनों ने सभी को नुकसान पहुंचाया है।
तालमेल पर निर्भर विकास
तेलंगाना और सीमांध्र के विकास के लिए चंद्रशेखर राव और चंद्रबाबू नायडू के आपसी सम्बन्ध मजबूत होने चाहिए। राव के शपथ ग्रहण समारोह में चंद्रबाबू की अनुपस्तिथि से इस तरह के संकेत मिले हैं कि राव और नायडू के बीच अच्छे सम्बन्ध नहीं हैं। सूत्रों से पता चला है कि राव ने भी नायडू को फोन नहीं किया और न ही व्यक्तीगत रूप से कोई आमंत्रण दिया था। हाल के महीनों में जिस तरह की पलटियां चंद्रशेखर राव ने खाई हैं, उन्हें देखकर यही शक पैदा होता है कि उनकी दिलचस्पी अब अपना वंशवादी, या कहिए करिश्माई, शासन स्थापित करने में है।
प्राकृतिक संसाधनों का झगड़ा
तेलंगाना के शहरों में रहने वाली बड़ी आबादी की भावनाएं सीमांध्र से जुड़ी हैं। भविष्य की राजनीति में यह तत्व महत्वपूर्ण साबित होगा। चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम का प्रभाव तेलंगाना में भी है। पानी के ज्यादातर स्रोत तेलंगाना से होकर गुजरते हैं। कृष्णा और गोदावरी दोनों नदियां तेलंगाना से आती हैं, जबकि ज्यादातर खेती सीमांध्र में है। तेलंगाना के गठन के समय सीमांध्र को विशेष पैकेज देने की बात कही गई थी। यह पैकेज कैसा होगा, इसे लेकर विवाद खड़ा होगा। इधर पोलावरम बांध को लेकर विवाद शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री राव ने इस परियोजना के लिए खम्मम जिले के कुछ गांव सीमांध्र को देने का विरोध किया है, जबकि सरकार ने इन गांवों को लेकर अध्यादेश जारी किया है। दोनों राज्यों की सम्पत्ति, जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का बंटवारा समस्याएं पैदा करेगा। व्यावहारिक रूप से हैदराबाद तेलंगाना में है। तेलंगाना के समर्थक हैदराबाद को अपनी स्वाभाविक राजधानी मानते हैं। शेष आंध्र या सीमांध्र किसी भी जगह पर हैदराबाद से जुड़ा नहीं है। उसकी सीमा हैदराबाद से कम से कम 200 किलोमीटर दूर होगी। अविभाजित आंध्र प्रदेश का तकरीबन आधा राजस्व हैदराबाद से आता है। सीमांध्र के लिए इस किस्म का औद्योगिक आधार बनाना एक समस्या है। यहां के कारोबारियों में ज्यादातर लोग गैर-तेलंगाना हैं।
राव ने शपथ ग्रहण के बाद कहा कि वे तेलंगाना को सभी तरह से एक आदर्श राज्य बनाने का प्रण करते हैं और कल्याण और विकास उनकी सरकार की प्रेरक तत्व होंगे। तेलंगाना सरकार ने न सिर्फ केंद्र के साथ बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाये रखने की बात की है। पारदर्शी सरकार सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक भ्रष्टाचार का उन्मूलन भी उनके एजेंडे में शीर्ष पर है।
– नागराज राव
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