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इस संगठन का नाम ही जिहादी संगठन नहीं है, बल्कि उनका जो यथा नाम है वैसा ही उनका काम भी। उन्होंने अपने आपको छिपाया भी नहीं है, इसलिए बड़े गर्व से वे अपनी स्थानीय भाषा में इसे बोको हराम कहते हैं। पहले तो उनका काम और नाम केवल नाइजीरिया तथा पड़ोसी देश कैमरून तक ही सीमित था, लेकिन अब वे इसी नाम से सारी दुनिया में पहचाने जाते हैं। पिछले दिनों वहां एक ऐसी घटना घटी जिसने उन्हें रातों-रात सारी दुनिया में चर्चा का विषय बना दिया है। दु:ख की बात तो यह है कि नाइजीरिया मुस्लिम बहुल देश है। फतवों की रात-दिन बरसात करने वाले मौलवियों में इतना साहस नहीं कि वे उनकी इस अधम करतूत की निंदा कर सकें। उनका जो काम है उसका सभ्य दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है। किसी पंथ से इस कृत्य को जोड़ना तो बहुत दूर उन्हें तो इंसान कहने में भी शर्म आती है। जो अपने संगठन का नाम ही बोको हराम बताते हों वे उन्हें किसी पराए देश में कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? उनका नाम और वृत्ति दोनों ही निंदनीय है। हराम शब्द कानों में सुनाई पड़ते ही सभ्य दुनिया का आदमी चौंक जाता है। लेकिन जब जिहादियों का संगठन ही अस्तित्व में आ जाए तब तो भयभीत होना और भी स्वाभाविक बात है। हम यहां एक ऐसे उन्मादी संगठन की हृदय विदारक कथा सुनाने जा रहे हैं। नाइजीरिया में शिक्षित और तकनीकी लोगों की बड़ी मांग है। विश्व का कोई भी बड़ा अखबार उठाकर देख लीजिए नाइजीरिया में ऊंचे पदों की नौकरियां हमेशा रिक्त रहती हैं। लेकिन वहां जाकर काम करने का अर्थ है अपनी मौत को बुलावा देना। नाइजीरिया और कैमरून मध्य पश्चिम अफ्रीका के दो पिछड़े देश हैं, ये दोनों देश अपने प्राकृतिक संसाधनों के लिए पश्चिमी जगत में जाने-माने हैं। यहां एक के पश्चात एक सैनिक क्रांतियां होती रही हैं। अपने खनिज तेल के लिए नाइजीरिया विश्व का एक जाना-माना देश है, लेकिन यहां की सरकारें अनेक छोटे-बड़े आतंकवादी गुटों में बंटी रहने के कारण स्थिर रही हैं। यह दोनों देश राजनीतिक रूप से तो स्वतंत्र हो गए हैं, लेकिन अपनी अस्थिर सरकारों के कारण पड़ोसी देशों के लिए हमेशा सरदर्द बने रहते हैं। बाहर का कोई भी पढ़ा-लिखा आदमी यहां रहने के लिए तैयार नहीं होता है, क्योंकि उसके परिवार की सुरक्षा की गारंटी सरकार लेने को तैयार नहीं है। नाइजीरिया क्षेत्रफल में कैमरून से बड़ा है, बल्कि खनिज तेल के निर्यात में भी अग्रणी है। स्वतंत्रता के पश्चात अबूबकर तवाफा की सरकार को छोड़कर कोई भी सरकार टिक नहीं सकी हैं, इसलिए सेना यहां ही सर्वेसर्वा है। नाइजीरिया राष्ट्रसंघ का सदस्य होने के बावजूद विश्व के मानचित्र पर उभर नहीं सका है, क्योंकि अनेक छोटे कबीलों में बंटी जातियों से मिलकर बना यह देश आज भी 16वीं शताब्दी के वातावरण से बाहर नहीं आया है। इस्लाम यहां का प्रमुख पंथ है, लेकिन उसने कट्टरता का ऐसा कवच धारण कर लिया है कि कोई भी पड़ोसी देश वहां हस्तक्षेप करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन इस अशिक्षित नाइजीरिया में लूटपाट करने वाले गिरोह आज भी यह मानते हैं कि लड़कियों को शिक्षा देना सबसे बड़ा पाप है, इसलिए अनेक आतंकवादी गुट लड़कियों के स्कूलों के आस-पास घात लगाकर बैठे रहते हैं। अवसर मिलते ही वे उनका अपहरण कर लेते हैं। उसके पश्चात् इन मासूम लड़कियों के साथ जो कुछ किया जाता है उसकी दास्तानें सुनकर लोग चीख उठते हैं।
पिछले दिनों 14 अप्रैल, 2014 को नाइजीरिया की उतरी पूर्वी सरहद पर स्थित बोर्ना क्षेत्र की चिबोक पाठशाला पर बोको हराम के सदस्यों ने हमला किया और 200 विद्यार्थियों का अपहरण कर लिया। वे मोटर साइकिल और ट्रकों पर सवार थे। शाला के परिसर में घुसकर अल्लाहो अकबर का नारा लगाया बाद में इन लड़कियों को उठाकर ट्रक में इस तरह से डालना शुरू किया, मानो वह सड़क पर पड़ी कोई वस्तु अथवा तो आस-पास का कचरा हों, इन किशोरियों की औसत आयु 12 से 16 वर्ष के बीच थी। इन मासूम छात्राओं को ले जाकर उन लोगों को बेच दिया, जो बोको हराम की टोलियों में भर्ती होकर उनके लिए युद्ध करते हैं। बोको हराम वालों ने जब इस शाला पर छापा मारा तो सबसे पहले अपने साथ लाए सैनिकों की टोलियों की एक अदालत लगाई और कहा ये सब इस्लाम के दुश्मन हैं। इस्लाम में आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने की मनाही है। लड़कियों का अपराध यह है कि वे आधुनिक शिक्षा ले रही हैं। वे भी उनके माता-पिता की तरह अपराधी हैं। पाठशाला के शिक्षकों और व्यवस्थापकों को 'हमारा यह फरमान है कि वे ऐसे स्कूल बंद कर दें, यदि नहीं करते हैं तो इसके बाद इन स्कूलों पर हमला किया जाएगा। स्टाफ को हम बंदी बनाएंगे और भूखे जानवरों के सम्मुख छोड़ देंगे। हम आधुनिक कानून को नहीं मानते क्योंकि उनसे इंसाफ मिलने में विलम्ब होता है। इस बार हमने शिक्षा और शाला चलाने वालों को अंतिम रूप से चेतावनी दे दी है इसके बाद भी उन्होंने स्कूल चलाया तो वे वासिले जहन्नुम हो जाएंगे, यानी नरक की आग उनके लिए तैयार है। इन लड़कियों को भेजने वाले माता-पिता भी इतने ही जिम्मेदार हैं इसलिए हम इन्हें अनेक बार चेतावनी दे चुके है लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं, तो फरमाने इलाही को परा करने के लिए हमें यहां आना पड़ा है। इन लड़कियों को हम मारेंगे नहीं बल्कि उनका विवाह उस सरदार की टोली से कर देंगे जो हमें हथियार और साधनों की पूर्ति करते हैं। अब इन लड़कियों का उद्धार तभी हो सकता है' जब उनका विवाह इन लोगों से कर दिया जाए जो इस्लाम की सेवा करते हैं। जब वे पत्नी बनने के बाद पवित्र हो जाएंगी तभी उनका कल्याण हो सकता है। उक्त हमले की 57 मिनट की उन्होंने वीडियों रिकार्डिंग की। इसके पश्चात वे उन अपहृत लड़कियों के साथ ट्रक में कहीं अन्यत्र जाने के लिए रवाना हो गए। वास्तव में तो इस्लाम के नाम पर यह इन लुटेरों और बलात्कारियों का एक सोचा समझा षड्यंत्र है। नैरोबी टाइम्स और केन्या से प्रकाशित समाचार पत्र की खबरों को सच माना जाए तो बोको हराम न तो बुनियादी रूप से मुसलमान हैं और न ही इस्लाम के प्रचारक अथवा किसी जमात के सदस्य, वास्तव में तो वे ऐसे लुटेरे और बलात्कारी हैं, जो इस्लाम का नाम लेकर अपनी हवस को शांत करते हैं। लेकिन कड़वा सच्चाई यह है कि मुसलमान लड़कियों का क्रय-विक्रय करते हैं। लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी यह है कि उक्त गिरोह एक अच्छी धनराशि वसूल करता है।
एक लड़की को बेचकर हजार डॉलर तक कमा लेना कोई कठिन बात नहीं है। सबसे बड़ा आकर्षण तो यह है कि वे इन लड़कियों को बेचने के बदले अपने गिरोह के लिए युवाओं को नए सैनिक के रूप में खरीद लेते हैं। यह उनके लिए भर्ती की सबसे बड़ी एजेंसी है। उनका यह मानना है कि उनके पास इस्लाम को प्रचारित करने के लिए 'मैन पावर' चाहिए, लेकिन वास्तविकता यह है कि नाइजीरिया के अय्याश वर्ग और वैश्यावृत्ति चलाने वाले अधिकांश संगठनों से वे अपनी इन कोमल कन्याओं का सौदा करते हैं। इनमें उनको भरपूर लाभ होता है। नाइजीरिया और कैमरून की सीमाओं पर ऐसे अनेक छोटे-बड़े असामाजिक संगठन सक्रिय हैं। पुलिस और कानून की पकड़ से बाहर रहने के लिए वे इन कन्याओं का किसी न किसी से निकाह पढ़ा देते हैं। जायज पत्नी बन जाने के बाद सरकार और माता-पिता लाचार हो जाते हैं। पिछले दिनों जो बड़ी वारदात हुई उसमें से पचास लड़कियां भाग निकलने में सफल हुई हैं। उन्होंने लौटकर जो गाथा बतलाई वह इंसानियत को लज्जित कर देने वाली हैं। नाइजीरिया ने इस अमानवीय घटना के पश्चात अमरीका से निवेदन किया था कि वे अपनी एक सैनिक टुकड़ी इसके लिए रवाना करें ताकि बोको हराम के जिहादियों का सफाया कर सके। राष्ट्रसंघ के मानव अधिकार आयोग की इस मांग पर अमरीका तैयार हो गया है। इस प्रकार की घटनाओं के लिए विदेशी सेना को बुलाना पड़े यह इतिहास की एक विचित्र घटना है। चीन की सरकार ने इसकी कड़ी निंदा की है। वह नाइजीरिया को इस सम्बंध में सहायता देने के लिए सहमत है। नाइजीरिया की किसी भी अन्तरराष्ट्रीय संस्था ने इनकी निंदा नहीं की है। नाइजीरिया और अन्य अफ्रीका की महाद्वीप में काम करने वाली मुस्लिम संस्थाओं ने इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं की है। इसका कारण यह बतलाया जाता है कि नाइजीरिया की सेना के कुछ असंतुष्ट अधिकारी इनसे मिले हैं, जो इनकी पीठ थपथपाकर अपना आर्थिक स्वार्थ पूरा करते हैं। बोको हराम की गतिविधियां अफ्रीका के अन्य देशों में भी चल रही हैं। पिछले दिनों मानव अधिकार वालों को जब इस बात का पता लगा तबसे इस प्रकार की घटनाएं जनता के सामने आने लगी हैं।
बोको हराम का नाइजीरियाई भाषा में अर्थ है पश्चिमी संस्कृति का विरोध। तालिबान के सदस्य मोहम्मद यूसुफ ने इसकी स्थापना सन 2002 में की थी। इस संगठन का मुख्य ध्येय है पश्चिमी सभ्यता का विरोध। उनका मानना है कि लड़कियों की पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा है इसलिए सख्त पर्दे की आवश्यकता है। लड़कियों को शिक्षित करने का अर्थ होगा पश्चिमी विचारधारा का उत्थान, इसलिए पहली और बड़ी आवश्यकता महिलाओं की स्वतंत्रता को समाप्त करना है। एक जानकारी के अनुसार बोको हराम ने पिछले 12 वर्षों में 10 हजार लोगों की हत्या की है। उनका मुख्य निशाना शालाओं में पढ़ने जाने वाली छोटी बालिकाएं हैं। उनका कहना है कि समाज को मां तैयार करती है, इसलिए उसका शुद्धीकरण पहली आवश्यकता है। लगभग एक वर्ष पूर्व नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने इस संगठन पर अंकुश लगाने के लिए देश में आपातकाल घोषित कर दिया था। सरकारी सूत्र इस इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले दिनों जिन 200 छात्राओं का अपहरण किया गया था उन्हें केवल 811 डॉलर में बाजार में बेच दिया था। आज भी वहां अनेक नगरों में लड़के और सरकार ने इन अपहृत छात्राओं के सम्बंध में सूचना देने वालों को तीन लाख डॉलर के पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की है। किन्तु उनकी खोज करने वाले 300 नाइजीरियाइयों को बोको हराम की गिरोह ने मौत के घाट उतार दिया खबर लिखे जाने तक केवल 50 छात्राएं मिली हैं शेष 150 की तलाश जारी है। अपनी बेटियों की तलाश में नाइजीरिया की जनता हड़ताल और प्रदर्शन पर उतरी हुई है लेकिन इन हरामियों का अब तक कुछ भी पता नहीं चला है।
-मुजफ्फर हुसैन
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