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बदायूं आज सुर्खियों में है। पूरे देश में बदायूं को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। आप में से बहुत सारे लोग जानते नहीं होंगे कि बदायूं उत्तर प्रदेश में कहां स्थित है, बहुत कम लोग शायद ही गए होंगे बदायूं। लेकिन मैं बदायूं रहीं हूं। करीब एक साल.. और बदायूं का बहुत अच्छा सकारात्मक चेहरा देखा है मैंने और इसलिए मुझे वाकई बहुत तकलीफ हो रही है। 1996 में पतिदेव आजमगढ़ से बदायूं जिलाधिकारी के रूप में तैनात हुए, जगह नई थी और बहुत पिछड़ी हुई। बच्चे छोटे थे, जिन्दगी बहुत खूबसूरत थी उन दिनों। महिलाओं के साथ मिलकर मैंने चार गांव अंगीकृत किये, और बहुत काम किया वहां। मूंज की रस्सी बनाने वाली, टोकरियां बनाने वाली महिलाओं के स्वयंसहायता समूह बनाए। वजीरगंज तहसील में रतौडा गांव में विद्यालय खोला,किआन्दोलन चल पड़ा । वहां देखते ही देखते गांव के लोग नशाबंदी और साक्षरता जैसी मुहिम में जुट गए। इनकी शुरू से ही आदत रही अठारह घंटे काम करने की, पूरे समय व्यस्त रहते। कहने की जरूरत नहीं, इन्होंने दिल जीत लिया था बदायूं वासियों का।
बदायूं में न कोई उद्योग है ना व्यापार! राजनैतिक लाभ लेने के लिए वषोंर् से नेताओं ने बदायूं को मात्र एक वोट बैंक समझ कर वहां की स्थिति जस की तस कर रखी है।
अपराध और बेरोजगारी का चोली-दामन का साथ है और जिस जिले की याद नेताओं को सिर्फ चुनाव के समय ही आये, वहां का क्या भविष्य हो? प्रशासन या कानून व्यवस्था को देखने कितनी बार ऐसे उपेक्षित क्षेत्रों में दौरे होते हैं, वो हम सब से बेहतर कौन जानता है। ये स्थिति तब है जब कि दो पूर्व मुख्यमंत्री वहां से चुनाव लड़ के जीत के छोड़ चुके हैं। बदायूं की बेटियां हमारी बेटियां थीं! पूरे उत्तर प्रदेश की बेटियां! अभी तक मुख्यमंत्री का एक बार भी वहां अब तक ना पहुंचना… ये पराकाष्ठा है असंवेदनशीलता की।
– मालिनी अवस्थी , प्रसिद्ध लोक गायिका की फेसबुक वॉल से साभार
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