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बापू कभी क्यों नहीं समझ पाए हरिलाल को ?
तो समय-समय पर महात्मा गांधी से जुड़े पत्र और उनके जीवन से जुड़ी दूसरी वस्तुओं की नीलामी को लेकर खबरें आती रहती हैं,पर ताजा मामला बेहद गंभीर है। कहा जा रहा है कि महात्मा गांधी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल को अपनी ही बेटी का बलात्कार करने के संबंध में जानकारी पाने के लिए लिखे थे। ये पत्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जून, 1935 में लिखे थे। अब इन्ही पत्रों की नीलामी होनी है। गांधी जी ने पत्र में हरिलाल को लिखा, तुम्हें यह जानना चाहिए कि मेरे लिए तुम्हारी समस्या हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता से अधिक कठिन हो गई है। उसका कहना है कि तुमने आठ वर्ष पहले उसके साथ दुष्कर्म किया था। मनु गांधी जी की पोती और हरिलाल की बेटी थीं। गांधी हरिलाल के आचरण से इतने नाराज थे कि उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें मुखाग्नि हरिलाल ना दे, इसलिए उन्हें मुखाग्नि उनके तीसरे और चौथे पुत्र रामदास और देवदास ने दी थी। गांधी जी की अंत्येष्टि के वक्त हरिलाल नशे की हालत में राजघाट पहुंचे थे।
मनु का विवाह सुरेंद्र मशरूवाला से हुआ था। अब दोनों पति-पत्नी नहीं हैं। इनका विवाह 22 अप्रैल,1917 को हुआ था। सुरेन्द्र आईआईएम,अहमदाबाद में पढ़ाते थे। इनकी एक ही संतान थी उर्मि। उसका विवाह आईआईएम अहमदाबाद के शिक्षक भूपेश देसाई से हुआ था। इनका पुत्र मृणाल मुंबई में सिनेमाटोग्राफर है। मृणाल की पत्नी आरती है। इनकी एक पुत्री रेणु आर्किटेक्ट है।
हरिलाल के अपने पिता से कई मसलों पर मतभेद रहे। वे उच्च शिक्षा लेने के लिए ब्रिटेन जाना चाहते थे, पर बापू नहीं चाहते थे कि हरिलाल पढ़ने के लिए ब्रिटेन जाए। इन सब वजहों के चलते उनकी बापू से दूरियां बढ़ती गईं। उन्होंने 1911 में घर छोड़ दिया। वे शादीशुदा थे,उनकी पत्नी गुलाब गांधी, दो पुत्रियां रामी और मनु और तीन पुत्र थे कांतिलाल, रसिकलाल और शांति।
नीलम पारेख रामी गांधी पारेख की बेटी हैं। रामी हरिलाल की सबसे बड़ी संतान थीं। 80 वर्षीय नीलम कहती हैं, मुझे इस बात का संतोष है कि मैंने अपने दादा हरिलाल जी की जीवनी लिखकर उनके बारे में फैली बहुत सी गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने हरिलाल गांधी की एक जीवनी गांधी जीस लास्ट ज्वेल लिखी। नीलम ने यह अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों से बातचीत के आधार पर लिखी थी। हरिलाल का 18 जून,1948 को जब निधन हुआ तब नीलम 15 बरस की थीं और मुंबई में रहती थीं।
महात्मा गांधी और हरिलाल के संबंधों पर कुछ साल पहले एक फिल्म ह्यगांधी, माय फादरह्ण भी आई थी। उसमें बापू और उनके विद्रोही बड़े बेटे के कलहपूर्ण रिश्ते को दिखाया गया था। जब गांधी जी 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे, तो उनके साथ 9 साल के हरिलाल और 5 साल के मणिलाल थे। उन्हें कहां पढ़ाना है, उनके सामने यह एक विकट समस्या थी। ईसाई मिशन के स्कूल में बच्चों को भेजने के लिए वे तैयार नहीं थे। गांधी जी का मानना था कि बच्चों को मां बाप से अलग नहीं रहना चाहिए। वे सोचते थे कि जो शिक्षा अच्छे, व्यवस्थित घर में बालक सहज पा जाते हैं, वह छात्रालयों में नहीं मिल सकती, लेकिन उन्हें घर पर पढ़ाने वाला कोई अच्छा गुजराती शिक्षक नहीं मिल सका। वे खुद पढ़ाने की कोशिश करते लेकिन काम की अधिकता से अनियमितता हो जाती।
फिनिक्स आश्रम की पाठशाला में गांधी जी का प्रयास होता कि बच्चों को सच्ची शिक्षा मिले। परीक्षा में गुणांक देने की गांधी जी की अनोखी पद्धति थी। एक ही श्रेणी के सभी विद्यार्थियों से एक ही प्रश्न पूछा जाता, जिनके उत्तर अच्छे हों उनको कम और जिनके सामान्य या कम दर्जे के हों उनको अधिक अंक मिलता। गांधी जी उनको समझाते, एक विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थी से अधिक बुद्घिमान है, ऐसा अंक मैं रखना नहीं चाहता। मुझे तो यह देखना है कि जो व्यक्ति जैसा आज है, इससे कितना आगे बढ़ा? दक्षिण अफ्रीका के शुरू के दिनों की लड़ाई में हरिलाल गांधी जी के श्रेष्ठ साथी जैसे थे। हंसते-हंसते सारी यातनाएं सह लेते। दक्षिण अफ्रीका में जेल की दो सप्ताह की सख्त कैद की सजा, भारत की तीन माह की सजा के बराबर थी। हरिलाल अपनी प्रतिभा, निष्ठा और कर्मठता के कारण लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गए। लोग उन्हें ह्यनाना गांधीह्ण ह्यछोटे गांधीह्ण कहकर बुलाते। अपनी सुरक्षा और सुख-सुविधाओं का ख्याल किए बिना वे बार-बार सत्याग्रह करते और जेल जाते। हरिलाल के स्वभाव में अन्याय सहन करने का गुण नहीं था।
महात्मा गांधी को लोग एक सफल राष्ट्रनेता और आजादी की लड़ाई के शिखर पुरुष के तौर पर भले ही जानते हों, लेकिन एक पिता के तौर पर उनके अपने पुत्र के साथ रिश्तों के बारे में शायद कम ही लोग जानते हैं। महात्मा गांधी की हरिलाल से कभी नहीं पटी। जीवन भर बापू ने अपने दिल में ही इस घाव को छुपाए रखा।
अजीब विडंबना है कि गांधी की इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद उनका खुद का बेटा हरिलाल जीवन भर इधर-उधर भटकता रहा। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पीछे करोड़ों लोग बिना कुछ सोचे समझे चल देते थे, खुद उसका बेटा विद्रोही हो गया और ये विरोध इतना बढ़ा कि उसने गुस्से में आकर अपने पिता को नीचा दिखाने के लिए धर्म परिवर्तन तक कर लिया। हरिलाल के इस्लाम धर्म स्वीकार करने की खबर जब बापू को दी गई तो उन्होंने बिना हैरान हुए कहा, अगर वो इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद बेहतर इंसान बन जाता है तो मुझे संतोष होगा। उसने अपना नाम अब्दुल्ला रख लिया था।
उधर,हरिलाल जीवन भर अपने पिता से इस बात को लेकर नाराज रहे कि उन्होंने देश के लिए सब कुछ किया पर अपने बच्चों और परिवार के लिए कुछ नहीं किया। महात्मा गांधी ने इस सच को स्वीकार भी किया कि अपने जीवनकाल में वे दो लोगों को कभी नहीं समझा पाए- एक जिन्ना और दूसरा उनका बड़ा पुत्र हरिलाल गांधी। सोचिये कि अगर महात्मा गांधी ने भी अपने परिवार के लिए वही सब किया होता जो नेहरू-इंदिरा ने अपने परिवार के लिए किया तो आज इतिहास क्या होता ?
– विवेक शुक्ला
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