बाल चौपाल : वीरांगता दुर्गावती
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बाल चौपाल : वीरांगता दुर्गावती

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May 29, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 29 May 2014 15:03:05

भारतवर्ष अनेक वीरांगनाओं की यशोगाथा के लिए प्रसिद्ध है। ऐसी ही एक वीरांगना थी रानी दुर्गावती जिन्होंने कभी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की। वह कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। महोबा के राठ गांव में 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि सब तरफ फैल गई। उनका विवाह राजा दलपत शाह से हुआ था। दुर्भाग्य से विवाह के चार वर्ष बाद ही दलपत शाह का निधन हो गया। उस समय उनकी गोद में उनका तीन वर्षीय पुत्र नारायण ही था। अत: रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। रानी दुर्गावती को अकेला जानकर कई शासकों ने उनके राज्य पर आक्रमण किया, लेकिन हर बार सभी को मुंह की खानी पड़ी। रानी दुर्गावती ने 16 वर्ष शासन किया। उनके शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थी। मंडला में दुर्गावती के हाथीखाने में उन दिनों 1400 हाथी थे। मालवांचल के सूबेदार बाजबहादुर ने महारानी दुर्गावती के राज्य को हड़पने के लिए उन पर आक्रमण कर दिया, लेकिन पहले ही युद्ध में दुर्गावती ने उसके छक्के छुड़ा दिए, उसका चाचा फतेह खां युद्ध में मारा गया। बाजबहादुर ने दोबारा आक्रमण किया। इस बार रानी ने कटंगी-घाटी के युद्ध में उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया ।

 

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कडा मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने अकबर को रानी के खिलाफ युद्ध के लिए उकसाया। अकबर ने युद्ध शुरू करने के लिए रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना के साथ हमला किया।

दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास 'नरई नाले' के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में तीन हजार से ज्यादा मुगल सैनिक मारे गए, लेकिन रानी के भी बहुत से सैनिकों की मृत्यु हुई। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। रानी का पक्ष कमजोर हो चला था। उन्होंने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। अंत समय निकट जानकर रानी ने अपने मंत्री आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। वह किसी सूरत में जीवित दुश्मन के हाथों में नहीं पड़ना चाहती थीं। इसलिए रानी ने स्वयं अपने सीने में कटार भोंक ली। साहस और स्वाभिमान की धनी रानी दुर्गावती को उनकी वीरता के लिए सदैव याद किया जाता है।

-बाल चौपाल डेस्क

 

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