दिशा बोध :कल्पनाओं की अभिव्यक्ति का अनूठा क्षेत्र
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हमारे देश में कला को सदैव सर्वोपरि रखा गया है। इन्हीं कलाओं ने तो देश को एक नई पहचान दी है। आईटी एवं कम्प्यूटर का प्रयोग दिन-प्रतिदिन अनिवार्य होता जा रहा है। इसी के साथ हाथ की कारीगरी भी धीरे-धीरे तकनीकी रूप लेती जा रही है। तकनीकी दखल के बावजूद भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जो अपनी परम्परा एवं पहचान लगातार बनाए हुए हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख क्षेत्र है ह्यफाइन आर्टह्ण। इसे ललित कला भी कहा जाता है। यदि फाइन आर्ट को परिभाषित किया जाए तो उसका सटीक अर्थ होगा कि कला के विभिन्न स्वरूपों को मिलाकर ह्यललित कलाह्ण का जन्म हुआ है।
आमतौर पर लोगों का मानना है कि ललित कला की उपयोगिता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि आज भी यह क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। अच्छी पेंटिंग्स लाखों-करोड़ों में बिक रही है तथा कलाकारों को उसका पूरा फायदा भी मिल रहा है। परन्तु विदेशों की अपेक्षा अभी भी भारत काफी पीछे है। विशेषज्ञों का मानना है कि यहां पर आर्ट एग्जिबिशन एवं गैलरी कम ही देखने को मिलती है जिससे लोगों की जागरूकता तथा इस कोर्स के प्रति जानकारी का सटीक पता नहीं चल पाता है।
बारहवीं के पश्चात ही कदम रखें
फाइन आर्ट से संबंधित कई तरह के पाठ्यक्रम मौजूद हैं। इसके लिए न्यूनतम योग्यता 12 वीं तय की गई है। अधिकांश संस्थान 10वीं के बाद ही कई तरह के डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्स करवाते हैं। परन्तु वह अत्यधिक कारगर नहीं होते हैं। बारहवीं के पश्चात जब छात्र के अंदर कला को समझने का कौशल विकसित हो जाता है तो उसे इस क्षेत्र में कदम रखना चाहिए। बैचलर ऑफ फाइन आर्ट (बीएफए) में एडमिशन 12वीं के पश्चात मिलता है। यह चार वर्ष का पाठ्यक्रम होता है। बीएफए के पश्चात मास्टर डिग्री के रूप में 2 वर्षीय मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) किया जाता है। यदि आपके मास्टर कोर्स में 50 प्रतिशत अंक हैं तो पीएचडी का रास्ता भी खुल जाता है। इसकी अवधि तीन वर्ष होती है।
कोर्स, अवधि और योग्यता
बैचलर ऑफ फाइन आर्ट (बीएफए) 4 वर्ष 10+2
मास्टर ऑफ फाइन आर्ट (एमएफए) 2 वर्ष स्नातक
पीएचडी इन फाइन आर्ट 3 वर्ष परास्नातक
कल्पनाओं को उकेरने का गुण आवश्यक
यह क्षेत्र छात्रों से परिश्रम एवं समय मांगता है। अचानक कोई अच्छा कलाकार कभी नहीं बन सकता है। इसमें यह देखा जाता है कि छात्र अपनी भावनाओं एवं कल्पनाओं को किस हद तक कैनवास पर उकेर पा रहे हैं। इसके लिए खुद को कल्पनाशील तथा अपनी सोच से छात्रों को कुछ नया गढ़ने का गुण होना आवश्यक है। मकबूल फिदा हुसैन रातों रात इतने महंगे एवं बेजोड़ हस्ती ऐसे ही नहीं बन गए थे कि उनकी पेंटिंग्स करोड़ों में बिकती है। इसके लिए उन्होंने धैर्यपूर्वक अपने हाथ को कूंची के साथ साधा।
काफी लंबा चौड़ा क्षेत्र है यह
फाइन आर्ट कोई नया पाठ्यक्रम नहीं है। लंबे समय से भारत में इसकी उपयोगिता देखी जा सकती है। इसका सकारात्मक फायदा इस क्षेत्र में कदम रखने वाले लोगों को मिल रहा है। यही कारण है कि इसमें रोजगार की संभावना सदैव बनी रहती है। पाठ्यक्रम के पश्चात कई तरह के विकल्प जैसे पत्र-पत्रिकाओं एवं विज्ञापन एजेंसियों में विजुअलाइजर, स्कूल-कॉलेज में आर्ट टीचर, बोर्ड निदेशक आदि सामने आते हैं।
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प्रशिक्षण दिलाने वाले संस्थान |
स्वीकार करने लगे हैं। प्रशिक्षण संस्थान छात्रों को ऐसा मंच उपलब्ध करवा रहे हैं जहां से वे अपने कौशल को अधिक बिखेर सकते हैं। म्यूजियम भी अब ऑनलाइन हो चुके हैं तथा वेबसाइट भी इससे संबंधित हर तरह की जानकारियां मौजूद हैं। इसके पाठ्यक्रम और थ्योरी दोनों ही शामिल हैं लेकिन बिना प्रायोगिक ज्ञान के इसमें आगे नहीं बढ़ा जा सकता। इसके अलावा हर जगह प्रतियोगिता की भरमार है। इसमें छात्रों को अपनी कल्पनपाओं की अभिव्यक्ति से एक नया आकार दिलाने संबंधी कार्य शामिल हैं। – प्रो़ मनीष अरोड़ा, सहा़ प्रोफेसर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
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भारत में फाइन आर्ट से संबंधित पाठ्यक्रम चलाने वाले प्रमुख संस्थान निम्न हैं– कॉलेज ऑफ आर्ट (दिल्ली विश्वविद्यालय), नई दिल्ली वेबसाइट www.colart.delhigovt.nic.in जामिया मिलिया इस्लामिया (डिपार्टमंेट ऑफ फाइन आर्ट), नई दिल्ली वेबसाइट – wwwjmi.nic.in बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट), वाराणसी वेबसाइट– wwwbhu.nic.in राजस्थान विश्वविद्यालय (डिपार्टमेंट ऑफ फाइन आर्ट), राजस्थान वेबसाइट – wwwuniraj.ernet.in सर जेज़े़ इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लायड आर्ट्स, मुंबई वेबसाइट – www.sirjjarchitecture.com
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