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कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश से उठीं रोष भरी आवाजें

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May 24, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 May 2014 13:07:48

आवरण कथा  विकास पर विश्वास से प्रतीत होता है कि नरेन्द्र मोदी ने जनता की उस पीड़ा को समझा है, जिस पीड़ा से वह वर्षों से कराहती आई है। संप्रग सरकार के दस साल के काल में मनमोहन सिंह ने शायद ही अपने मन से कभी देशहित के मुद्दे को समझा और बोला हो? महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की पीड़ा को कभी इस सेकुलर सरकार ने समझा ही नहीं,जिसका परिणाम है कि आज पूरे देश से सरकार के प्रति रोष भरी उठती आवाजें बता रही हैं कि वे इस सरकार को देखना तक नहीं चाहते हैं।

-हरिओम त्रिपाठी
जिला-शाहजहांपुर (उ.प्र.)
आजाद देश का गुलाम पी.एम.!
भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में कांग्रेस के पतन का कारण प्रधानम्ंात्री का मौन रहा। यह दुर्भाग्यपूर्ण बात रही कि इस आजाद देश में प्रधानमंत्री एक गुलाम की तरह रहा और देश को बेचने की मौन स्वीकृति देता रहा । जिस पी.एम. ने 85 करोड़ से ज्यादा हिन्दुओं को भुलाकर सिर्फ मुट्ठीभर मुसलमानों के लिए कहा कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है,उस प्रधानमंत्री से क्या अपेक्षा की जा सकती हैं? आज नेताओं को मानना होगा कि इस देश पर सबसे पहला अधिकार हिन्दुओं का ही है।
-राममोहन चंद्रवंशी
टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.)
समान नागरिक संहिता
देश में सभी समान हैं, इस तथ्य को स्वीकार करना होगा। तमाम भेदभावों को भुलाकर सभी को समान समझना होगा। जो जाति-वर्ग कमजोर हैं, उन्हें बढ़ाने के साथ-साथ वे स्वार्थपरता को छोड़कर इन लोगों को वोट बैंक के पिजड़े में बंधक नहीं बनाएंगे, भविष्य इसी निर्णय की ओर देख रहा है।
-शरण सिंह
नोएडा (उ.प्र.)
इतिहास पढि़ए,फिर बोलिए
भारतीय धर्म-संस्कृति से प्रेरणा लेकर ही राष्ट्र एवं राजनीति चलती है। लेकिन कुछ लोग हैं,जो इसे भुलाकर आम जनता को गुमराह करके राजनीति की रोटियां सेंकते हैं। नरेन्द्र मोदी के विवाह को लेकर तमाम राजनीतिक दलों द्वारा जो बबंडर बनाया जा रहा था,उन्हें भारतीय इतिहास को पढ़ना चाहिए। भारतीय इतिहास बताता है कि गौतम बुद्ध, गुरु नानक,वर्द्धमान महावीर जैसे अनेक महापुरुष, जिन्होंने घर,परिवार त्यागकर राष्ट्र के कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। क्या सेकुलर नेताओं को यह इतिहास भी नहीं पता? ऐसे नेताओं को चाहिए कि किसी पर बेबुनियाद आरोप लगाने से पूर्व भारतीय इतिहास को पढ़ें, फिर टिप्पणी करें।
-जी.जगदीश्वर
न्यूनल्ला कुंटा,हैदराबाद
बात डंके की चोट पर
27 अप्रैल के अंक में भ्रष्टाचारियों और देश द्रोहियों के खिलाफ सम्पादकीय में डंके की चोट पर अपनी बात को कहा है। लेकिन दुख इस बात का है कि इन भ्रष्टाचारियों व सत्तालोलुप नेताओं के शब्दकोश में राष्ट्रहित व राष्ट्रवाद जैसे शब्द नहीं हैं। इन नेताओं को तो सिर्फ मुसलमानों के वोट के लिए उनकी चापलूसी करना आता है,सो दस साल इन्होंने यही कार्य किया। दुर्भाग्य है इस देश का जो इतने सालों तक इनके हाथ में सत्ता रही।
-सूर्यप्रताप सिंह ह्यसोनगराह्ण
कांडरवासा, रतलाम(म.प्र.)
राष्ट्रहित में शंखनाद
पाञ्चजन्य जब से पत्रिका स्वरूप में आया है तब से यह और आकर्षक,धारदार एवं जानकारीपूर्ण हो गया है। इसको पढ़ने से जो मन में तमाम दुविधा रहती है उसका समाधान प्राप्त हो जाता है। देश-विदेश की जानकारी के साथ वास्तविक तथ्य का पता चलता है। साथ ही समय-समय पर आने वाले संघ के विचार जो राष्ट्र के लिए प्रेरणा बनते हैं ,यहीं पर पढ़ने को मिलते हैं।
-विवेक श्री वैद्य
तलासरी, जिला-ठाणे (महाराष्ट्र)
० 4 मई का ह्यविकास पर विश्वासह्णमें श्री हितेश शंकर का सारगर्भित सम्पादकीय पढ़ा। देश में बह रही जन-जन में मोदी लहर देश के प्रधानमंत्री को दिखाई ही नहीं दे रही है। सवाल है कि क्या वास्तव में वे इस तथ्य को भी झूठ की भेंट चढ़ाना चाहते हैं? प्रत्येक रैली में अपार जनशैलाब, मोदी का चुम्बकीय व्यक्तित्व एवं भीषण धूप में मोदी को सुनने के लिए जुटने वाले लाखों लोगों को भी वे झुठलाना चाहते हैं? शर्म आनी चाहिए ऐसे नेताओं को जो जनता की आवाज तक को नहीं भांप सकते हैं।?
-हरेन्द्र प्रसाद साहा,
नया टोला,कटिहार(बिहार)
० पाञ्चजन्य में पाठकों के पत्रों को पढ़कर अपार हर्ष हुआ और विश्वास हो गया कि भारत राम का हिन्दुस्थान बन रहा है। प्रत्येक अंक में हिन्दूहित, गोरक्षा,बेटी रक्षा जैसे विषयों पर चिन्ता ही नहीं होती बल्कि देश व सम्पूर्ण हिन्दू समाज को जाग्रत करने का एक सार्थक प्रयास होता है। इसके लिए हिन्दू समाज पाञ्चजन्य का हृदय से आभारी है।
-बी.आर.ठाकुर,
संगम नगर, इंदौर(म.प्र.)
० वैसे तो पाञ्चजन्य अपने पूर्ण स्वरूप में भी पठनीय और संग्रहणीय होता था किन्तु अब नए स्वरूप में यह और भी संग्रहणीय हो गया है। पहले की अपेक्षा और भी रोचक सामग्री इसमें पढ़ने को मिल रही है। यही एक ऐसा पत्र है, जो हिन्दुओं की आवाज को प्रखरता के साथ विश्व पटल पर उठाता है।
-गोपाल चन्द्र गोयल
सवाई माधोपुर (राज.)
राष्ट्रहित पहले
देश के सभी नेताओं चाहें वे किसी भी पार्टी के हों उनके लिए राष्ट्रहित एवं हिन्दूहित का मुद्दा प्रमुख होना चाहिए क्योंकि यही वे दोनों मुद्दे हैं, जो देश को सबल बनाते हैं। वर्षों से सेक्युलरिज्म की चादर ओढ़कर अधर्म की राह पर चलते कई मौलाना नेताओं की लगाम अब कसनी होगी और उन्हें समझना होगा कि यह देश हिन्दुओं का ही है।
-हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इंदौर(म.प्र.)
सच को सच कहना सीखें
देश के नेता सच एवं राष्ट्रहित की बात को कहना सीखें। स्वयंहित को भूलकर नेताओं के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए। देश की जनता अपने नेता पर विश्वास करके ही उसको संसद तक पहुंचाती है ताकि उसके क्षेत्र की बात एवं उसका विकास हो सके। यही सम्पूर्ण देश की मांग है।
-रमेश चन्द्र शर्मा
बैजलपुर,अमदाबाद (गुजरात)
झूठा मुस्लिम प्रेम
सत्ता पाने की आतुरता में सेकुलर राजनैतिक दलों में मुसलमानों के वोट हथियाने की होड़ मची हुई है। इस होड़ में सेकुलर दल तमाम नैतिकताओं एवं राष्ट्रहित को भी दरकिनार कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। वोट पाने के लिए कांग्रेस के नेता आतंकी ओसामा को ह्यओसामा जीह्ण कहते हैं। आजम खां,राशिद अल्वी,अबू आजमी, इमाम बुखारी, इमरान मसूद जैसे राष्ट्र विरोधी नेता जिनका एक मात्र लक्ष्य है कि कैसे भी करके हिन्दू एवं मुसलमान को एक नहीं होने देना है। अगर यह एक होते हैं तो भविष्य में हम राजनैतिक रोटियां नहीं सेंक पाएंगे।
-कमल कुमार जैन
कैलास नगरनई दिल्ली
दामाद की अवैध दौलत
सच्चाई को दबाने में विफल संप्रग सरकार की उसके दामाद राबर्ट वाड्रा के चलते पूरी दुनिया में थू-थू हुई। राबर्ट के पास इतनी अवैध ढंग से कमाई गई अरबों रु की दौलत कहां से आई? साथ इतनी जल्दी वह करोड़ों-अरबों के मालिक कैसे बन गए। ये सवाल हैं जिनका जवाब जनता काफी समय से कांग्रेस से मांग रही थी। लेकिन अपनों को बचानें के लिए कांग्रेस ने कोई भी संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। यह सवाल सभी देशवासियों के जेहन में है।
-परमानन्द रेड्डी, रायपुर (छ.ग.)

हिन्दुओं पर अत्याचार क्यों?

राष्ट्रीय फलक पर मेवात की चिंता जरूरी है। हरियाणा में कांग्रेस की सरकार होने के कारण यह हिन्दुओं के दुख दर्द पर मलहम या उन्हें सरक्षण देने की बजाय मुसलमानों को और उकसाने का कार्य करती है। मेवात के हिन्दुओं के हालातों पर पाञ्चजन्य के लगातार ध्यानाकर्षण के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई सरकार की ओर से नहीं होती दिखाई देती है। शायद कथित सेकुलरवादी नेता मेवात के पाकिस्तान होने का इंतजार कर रहे हैं।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, भिण्ड(म.प्र.)
मेवात के हिन्दुओं की दुर्दशा और मुसलमानों की वहां पर उद्दण्डता पढ़कर कष्ट और आक्रोश दोनों हुआ। मेवात के हिन्दुओं को मुसलमानों द्वारा प्रताडि़त करने की यह पहली घटना नहीं है। आज से 20 वर्ष पहले भी यही हाल इस स्थान का था। मुसलमानों की कू्ररता के कारण सैकड़ों हिन्दू परिवार घर एवं व्यवसाय तक को छोड़कर गुड़गांव या देश के अन्य हिस्सों में बस गए। यहां देखकर ऐसा नहीं लगता कि यह हिन्दुस्थान ही है।
-डॉ.लज्जा देवी मोहन
पानीपत (हरियाणा)

कांग्रेस की बोलती बंद

कांग्रेस की हो गयी, आज बोलती बंद
राहुल से दीदी तलक, सबके चेहरे मंद।
सबके चेहरे मंद, सोनिया सोच रही हैं
गलती को कर याद, बाल को नोच रही हैं।
कह 'प्रशांत' कांग्रेसी सूरज हुआ अस्त है
और उधर मनमोहन जी हो रहे मस्त हैं॥
– प्रशांत

किताबों के आईने से झांकती सच्चाई

इस लोकसभा चुनाव में एक तरफ कांग्रेस जनता के साथ युद्ध लड़ रही थी तो दूसरी ओर उसको बौद्धिक जगत से भी युद्ध का सामना करना पड़ रहा था। कांग्रेस व सेकुलर नेता जब-जब गुजरात मॉडल या नरेन्द्र मोदी को दंगों में घेरने की बात करते, वैसे ही कोई साहित्यकार या पत्रकार एक ऐसी सच्चाई किताबों के माध्यम से जनता को रूबरू करा देते, जिसको पढ़ने के बाद कांग्रेस के नेता बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते। यह बड़ा अजीब है कि एक तरफ बौद्धिक वर्ग द्वारा नरेन्द्र मोदी व गुजरात मॉडल की जमकर प्रशंसा हो रही है वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री काल में उनके कार्यालय में तैनात अधिकारियों द्वारा ही कांग्रेस के नैतिक-अनैतिक कार्यों का पर्दाफाश हो रहा है। प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब बाजार मे आई तो जिन तथ्यों को उन्होंने अपनी किताबों में समाहित किया था उनमें से शायद ही ऐसा कोई तथ्य हो जो देश की जनता नहीं जानती थी। हां ये जरूर हुआ कि इन किताबों से इन सत्य बातों पर एक मुहर लग गई। देश की जनता ने समझा कि कैसे सोनिया गांधी परदे के पीछे सत्ता को रिमोट से चला रही थीं । देश के लोगों ने सवाल उठाया कि कैसे कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय की फाइल निरीक्षण कर सकता है? जनता के मन में जो सवाल उठ रहा था वह सवाल भी जायज था। अपने को ईमानदार कहलाने वाले प्रधानमंत्री ने यह सब कैसे होने दिया? अपने काम का लाभ पार्टी प्रमुख को देना समझ में आता है पर फैसला देना या देश की निजता का जो प्रश्न है उस बात को किसी के साथ साझा करना समझ में नहीं आता। मनमोहन सिंह ने 125 करोड़ देशवासियों के साथ धोखा किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री की मजबूरी और उनकी लाचारी को उजागर किया कि कैसे वे सोनिया गांधी के पाश में फंसे थे। देश में भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार हुआ लेकिन हमारे प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोले, क्यों? प्रधानमंत्री का बहुत सारे मामलों मे अनभिज्ञ होना इसी ओर इशारा करता है कि सत्ता सोनिया गांधी चला रही थीं वह तो मात्र पुतला ही थे। मनमोहन सिंह के संरक्षण में भ्रष्टाचार फला फूला यह सच्चाई आज सबके सामने है। इसी जमीनी सत्य को इन किताबों ने लिखा है।
-आलोक रायभोपाल (म.प्र.)
 

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