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खेल
125 करोड़ की जनसंख्या वाला यह देश खेलों में इतना पिछड़ा हुआ है कि ओलम्पिक जैसी स्पर्धाओं में हम कोई भी पदक नहीं जीत पाते हैं और यही गुणगान करते रहते हैं कि अमुक ओलम्पिक में अमुक खिलाड़ी सेकेण्ड के दसवें भाग से चौथे स्थान पर फिसल गया और कांस्य पदक मिलते-मिलते रह गया। खेलों पर हावी होती राजनीति का आलम यह है कि राज्य स्तर से ही खिलाडि़यों की चयन प्रक्रिया में प्रभावशाली लोगों का दखल शुरू होने लगता है।
खेलों में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है,यह रुकना चाहिए। हम सभी खिलाडि़यों को नए प्रधानमंत्री से काफी उम्मीदें हैं। वे पारंपरिक खेलों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन दें। विदेशी कोचों की बजाय अपने ही देश के अच्छे कोच आगे लाए जाने चाहिए।
-सतपाल, अतिरिक्त शिक्षा निदेशक
(खेल एवं शारीरिक शिक्षा), दिल्ली सरकार
क्या हो दृष्टिकोण
खेलों में राजनेताओं को मुखिया बनाना पहली भूल है। आज ओलंपिक खेलों में भी भारत को गिने-चुने मैडल मिलते हैं। कभी भारत की कुश्ती, टेनिस, क्रिकेट, हॉकी व घरेलू खेलों में धाक थी, जो कि कम होती जा रही है। खिलाडि़यों को खेलों के जरिये मिलने वाली इनाम राशि से ज्यादा विज्ञापन व निजी कंपनियों से अनुबंध करने पर लाभ मिलने लगा। खेल में पैसा नहीं, खेल भावना अहम होनी चाहिए।
फौरन करना होगा
ल्ल खेलों से भ्रष्टाचार मिटाना
ल्ल विदेशी कोचों की बजाय स्वदेशी कोच आगे लाए जाएं।
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल अधिकारियों के आपसी मतभेदों से खेलों को बचाना होगा।
ल्ल क्रिकेट के साथ दूसरे खेलों पर ध्यान
देना होगा।
यह है वादा
ल्ल खेलों -पारम्परिक एवं आधुनिक खेलों का संवर्धन
ल्ल स्कूल स्तर पर खेलकूद की संस्कृति पनपाने के लिए कदम उठेंगे, खेल कूद को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाएगा, समुचित प्रशिक्षण दिया जाएगा।
ल्ल खेलकूद अकादमियां स्थापित की जाएंगी।
ल्ल प्रतिभावान खिलाडि़यों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।
ल्ल खेलकूद के लिए ज्यादा धन आवंटित किया जाएगा तथा राज्य सरकारों को प्रोत्साहित भी करेंगे।सख्त कदम उठाने से भी नहीं हिचकिचाएंगे।
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