|
स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी भारत में सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से भी कम खर्च होता है। यह विश्व में सबसे कम है, इनमें चाड़, इरीमिया और यमन ही वे देश हैं जिनमें सकल घरेलू उत्पाद का इससे कम हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च होता है। देश में प्रति व्यक्ति अपने स्वास्थ्य पर अपनी आय का 70 प्रतिशत से अधिक व्यय करता है, विडम्बना यह है कि इतना खर्च करना सामान्य व्यक्ति की पहुंच से बाहर होता है।
स्वास्थ्य बजट का एक बड़ा हिस्सा यानी 66-70 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य के सुधार में दिया जाना चाहिए। जीवन रक्षक दवाओं और शल्य चिकित्सा को सबके लिए नि:शुल्क किया जाना चाहिए। सभी मेडिकल कॉलेज, चाहे निजी हों या सरकारी, पूर्व योजना के साथ पारित किए जाने चाहिए और सभी क्षेत्रों में बनाएं जाने चाहिए।
– डॉ. आरएस टोंक, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल
क्या हो दृष्टिकोण
सरकारी अस्पतालों का आधुनिकीकरण किया जाएगा। इसके लिए आधारभूत ढांचे और नवीनतम प्रौद्योगिकी को समुन्नत किया जाए।
पैरामेडिकल एवं पैरा-मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई जाए और प्रत्येक राज्य में एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना की जाए जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ प्रदान करें।
फौरन करना होगा
ल्ल प्राथमिक एवं बुनियादी चिकित्सा के लिए स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित किए जाएं।
ल्ल निदान के लिए नवनीनतम तकनीक का प्रयोग हो
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल देश के प्रत्येक क्षेत्र में योग्य और अनुभवी चिकित्सकों की नियुक्ति हो।
ल्ल शल्य चिकित्सा में नये शोध किए जाएं।
यह है वादा
ल्ल देश के गांव-गांव और शहर-शहर तक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए राज्य एवं जिला स्तर पर गुणवत्तायुक्त स्तरीय अस्पतालों एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की जाएगी।
ल्ल प्रत्येक राज्य में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की तर्ज पर एम्स की स्थापना की जाएगी।
टिप्पणियाँ