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भारत के सामने इसके दो परमाणु सम्पन्न पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकियों से खतरा मंडरा रहा है। मुम्बई जैसा हमला फिर हुआ तो मोदी उसका कड़ा जवाब देंगे, इसकी पूरी उम्मीद है। भारत-अमरीका संबंधों को फिर से पटरी पर लाना होगा।
-ब्रह्म चेलानी, विदेश संबंध विश्लेषक
विदेश नीति
भारत की विदेश नीति शुरुआत से ही पारस्परिक सहयोग की रही है, लेकिन वर्तमान में चीन का पूर्वोत्तर में बढ़ता अतिक्रमण और पाकिस्तान का बार-बार संघर्ष विराम का उल्लंघन करना संकेत देता है कि हमें उदारता को त्यागकर आक्रामक तेवर दिखाने होंगे। सामरिक रिश्तों की बात की जाए तो भारत कभी भी आक्रामक नहीं रहा। गुटनिरपेक्ष आंदोलन से लेकर दक्षेस तक भारत की भूमिका अग्रणी रही है।
क्या हो दृष्टिकोण
आतंकवाद तथा वैश्विक ताप वृद्धि जैसे मुद्दों पर एक समान अंतरराष्ट्रीय राय का पक्ष लेना होगा। पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों को बढ़ावा देंगे। दक्षेस और आसियान जैसे क्षेत्रीय मंचों को शक्तिशाली बनाने की दिशा में कार्य करना होगा। विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीय मूल के निवासी वहां मौजूद पूंजी की तरह हैं। राष्ट्रीय हितों व मामलों को विश्वस्तर पर प्रस्तुत कर भारत ब्रांड को मजबूती देने के लिए इस जन संसाधन का उपयोग किया जाए।
फौरन करना होगा
ल्ल आत्मनिर्भर होना होगा। अंत:क्षेत्रीय, वैश्विक व्यापार को अपनी सम्प्रभुता और व्यापारिक लाभ-हानि के नजरिये से देखना होगा।
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल ऊर्जा सुरक्षा में भी नाभिकीय ऊर्जा जैसे संवेदनशील विषयों को दूरगामी दृष्टि के साथ स्वीकारना होगा। द्विपक्षीय निवेश के लिए भी संबंधित देश की स्थिति और उसकी कूटनीति, गतिविधि को ध्यान में रखकर कदम उठें।
यह है वादा
ल्ल पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर बनाने हैं। संप्रभुता और सुरक्षा के साथ विश्व के देशों में व्यापार विस्तार करना है।
ल्ल बड़ी शक्तियों के हितों द्वारा निर्देशित होने की बजाए हम अपने आस-पड़ोस में तथा इससे परे देशों के साथ विवेक के आधार पर सक्रिय रूप से व्यवहार करेंगे।
ल्ल दक्षेस और आसियान को शक्तिशाली बनाएंगे।
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