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‘परदे में रहने दो, परदा न हटाओ़.परदा जो हट गया तो भेद खुल जाएगा़.' पुरानी हिंदी फिल्म का ये गीत आज पूरी तरह से दिग्विजय सिंह पर प्रासंगिक है। आज दिग्विजय सिंह के जीवन से भी एक पर्दा हटा और एक भेद खुल गया। अपने विवादित बयानों के कारण अक्सर चर्चा में बने रहने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इस चुनावी मौसम में पत्रकार अमृता राय के साथ अपने संबंधों को लेकर एकबार फिर चर्चा व सवालों के घेरे में आ गए हैं। दरअसल, ये पूरा मामला कुछ इस प्रकार है कि सोशल मीडिया पर दिग्विजय और अमृता राय की कुछ अंतरंग तस्वीरें आ गईं, जिस कारण उनके संबंधों को लेकर तमाम सवाल उठने लगे। इन सवालों पर स्पष्टीकरण देते हुए अमृता राय ने ट्वीट किया कि वे अपने पति से अलग होने की अर्जी दे चुकी हैं, इसके बाद वे दिग्विजय सिंह से शादी करेंगी। अमृता राय के इस ट्वीट के बाद दिग्विजय सिंह का भी ट्वीट आया, जिसमंे उन्होंने अमृता राय से अपने संबंध होने की बात को बेझिझक स्वीकार किया। दिग्विजय सिंह का ये स्वीकार करना था कि भाजपा ने इस मामले में नैतिकता और वैधता का सवाल उठाते हुए कांग्रेस से संज्ञान लेने व पुख्ता जानकारी देने की मांग की। दिग्विजय सिंह ने भी इस मसले पर भाजपा के सवाल उठाने को लेकर खेद जताते हुए कहा कि ये उनका निजी मामला है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। अब यहां सवाल ये उठता है कि अभी कुछ दिन पहले जब भाजपा के पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने अपने नामांकन पत्र में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पत्नी का जिक्र अनिवार्य करने के बाद पहली बार अपनी पत्नी जशोदाबेन के नाम का जिक्र किया था, तो उन पर सवाल उठाने वालों में सबसे आगे दिग्विजय सिंह ही थे। तो क्या वो नरेंद्र मोदी का निजी मामला नहीं था? क्या उस पर सवाल उठाना उचित था? लेकिन, तब नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाते वक्त दिग्विजय सिंह को मोदी की निजता का जरा भी ख्याल नहीं आया। फिर आज जब स्वयं उनके और अमृता राय के संबंधों को लेकर ये मामला सामने आया है तो इसको निजी कहते हुए दिग्विजय सिंह खुद को सवालों से कैसे बचा सकते हैं? इस मामले को निजी कहकर खुद को बचाने से पहले दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेस को इन सवालों के जवाब जरूर देने चाहिए। अपने को घिरते देख दिग्विजय सिंह शायद ये भूल गए कि उन्होंने कोई खुशी-खुशी अमृता राय से संबंध होने की बात को स्वीकार नहीं किया, बल्कि अमृता द्वारा सबकुछ सार्वजनिक कर दिए जाने के बाद और कोई चारा न होने की स्थिति मे उन्हें इन संबंधों को विवशतावश स्वीकार करना पड़ा। रही बात मोदी-यशोदाबेन प्रकरण की तो मोदी का मामला दिग्विजय-अमृता से कहीं अलग है। जबकि दिग्विजय सिंह और अमृता राय के संबंध अनैतिकता के संदेहास्पद घेरे में हैं? कहना गलत नहीं होगा कि दिग्विजय सिंह का मामला निजी से कहीं अधिक नैतिकता और सदाचार पर भाषणबाजी करने वाले एक नेता के चरित्र का है। आज हमारे उच्चवर्गीय समाज में ये एक तरह का चलन बन गया है कि उनके द्वारा नैतिक आधार व गलत दिखने वाले अपने किसी भी कार्य को निजी मामला कह कर सवालों से किनारा कर लिया जा रहा है। उदाहरणार्थ, एन.डी तिवारी को ले लीजिए, नाजायज संबंधों और बेटे आदि को लेकर तमाम विवाद होने के बावजूद भी इन सब को निजी मामला कह कर आज वे सार्वजनिक जीवन में पूरी प्रतिष्ठा के साथ सक्रिय हैं।
-पीयूष द्विवेदी
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