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-राहुल शर्मा-
लोकसभा चुनाव में नक्सलियों की तमाम धमकियों के बावजदू सीआरपीएफ और राज्य पुलिस ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, झारखड़, बिहार और पूर्वोत्तर राज्यों में चुनाव संपन्न कराकर अपना लोहा तो मनवा दिया, लेकिन इस दौरान सीआरपीएफ के 26 जवान भी शहीद हो गए, जबकि 148 जवान बुरी तरह से घायल हो गए। हैरानी की बात यह है कि भीड़ को काबू करने के लिए गठित सीआरपीएफ एवं अर्द्धसैनिक बल के जवानों को सरकार की गलत नीतियों के तहत नक्सलियों का सामना करने के लिए- 'मानो भूखे भेडि़यों के सामने भेज दिया गया हो।'
जम्मू-कश्मीर की बात करें तो वहां तो जवानों को अपने बचाव में गोली चलाने से लेकर लाठीचार्ज करने तक का अधिकार नहीं है। अकेले जम्मू-कश्मीर में चुनाव के दौरान 111 जवानों को बुरी तरह से घायल कर दिया गया और वे देश की कमजोर सरकार के आदेश का पालन कर दंगाइयों के हाथों पिटते रहे। यह चेहरा है देश की यूपीए सरकार का जिसने नक्सलवाद को मिटाने के नाम पर अर्द्धसैनिक बलों को मौत के मुंह में धकेला हुआ है। देश में बढ़ते नक्सलवाद के बाद से बेशक जवानों को आधुनिक हथियारों से तो लैस कर दिया गया है, लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बारूदी सुरंग और भौगोलिक स्थिति से भलीभांति परिचित न होने से जवान बेवजह नक्सलियों के हाथों आए दिन मारे जा रहे हैं। यदि गौर किया जाए तो कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में इन जवानों को नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन सरकार और नक्सलियों के बीच छिड़ी जंग में बलि जवानों को देनी पड़ रही है। यही नहीं गुप्तचर विभाग का सूचना तंत्र भी सटीक जानकारी उपलब्ध कराने में असफल रहता है और हर हादसे के बाद दावा करता है कि पहले ही से नक्सली हमले की सूचना दी गई थी। गौरतलब है कि दंतेवाड़ा में 6 अप्रैल, 2010 को हुए नक्सली हमले में अकेले सीआरपीएफ के 75 जवान शहीद हुए थे।
नक्सलियों ने दी थी चुनाव बहिष्कार की धमकी
लोकसभा चुनाव शुरू होने से पूर्व ही नक्सलियों ने बिहार में चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर दिया था। इसके चलते नक्सलियों ने न केवल धमकी दी, बल्कि मोबाइल फोन के जरिए एसएमएस प्रक्रिया को भी अपनाया। इस बार बिहार में ह्यबल्क मैसेजह्ण भेजकर नक्सलियों ने जनता को मतदान नहीं करने की चेतावनी दी। इसी क्रम में गत 5 अप्रैल को गुमला में चुनाव बहिष्कार के पोस्टर बांटे गए। यही नहीं नक्सली हमले के बाद भाजपा को अपने चुनाव कार्यालय तक बंद करने पड़े। 7 अप्रैल को औरंगाबाद में नक्सलियों ने चुनाव का विरोध करते हुए हमला कर दिया जिसमें सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट इंद्रजीत और जवान पवन शहीद हो गए। इस दौरान आठ अन्य जवान भी बुरी तरह से घायल हुए। नक्सलियों द्वारा जगदलपुर में मतदान से पूर्व स्कूल का भवन क्षतिग्रस्त कर दिया गया जिसके चलते खेतों में जवानों ने अपनी जान को जोखिम में डालकर भी चुनाव संपन्न करवा दिया। रायपुर में तो नक्सलियों के आतंक के चलते चुनाव के दो दिन बाद मतपेटियां केन्द्र पर पहंुचाई जा सकीं। गढ़चिरौली में 11 अप्रैल को एक कमांडर शहीद हो गया, जबकि पांच जवान बुरी तरह से घायल हो गए। इसी दिन नक्सलियों ने बीजापुर में मतदाताओं को लेकर जा रही बस पर हमला कर 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिसमें पांच जवान घायल हो गए। 14 अप्रैल को नक्सली हमले में टेक्नीशियन श्रवण कुमार की मौत हो गई, यह चुनाव के दौरान अभी तक की सबसे दुखद घटना रही। श्रवण की 15 अप्रैल को ही शादी होने वाली थी और परिवार वाले बेसब्री से उसका घर आने का इंतजार कर रहे थे कि उससे पहले वह शहीद हो गया। इसके बाद 28 अपै्रल को गढ़चिरौली में नक्सलियों के हमले में एक जवान शहीद हो गया। 11 मई को फिर से गढ़चिरौली में ही हमला कर 7 जवानों को मौत के घाट उतार दिया गया।
छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक जवान हुए शहीद
चुनाव के दौरान देशभर में सबसे ज्यादा नुकसान सीआरपीएफ को छत्तीसगढ़ में उठाना पड़ा, यहां 21 जवान नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए, जबकि पांच जवान बिहार में शहीद हुए। इसके अलावा सबसे अधिक सैनिक जम्मू-कश्मीर में घायल हुए। यहां सरकार की कमजोर नीति के कारण 111 जवान दंगाइयों के हाथों बुरी तरह घायल हो गए, जो कि अपने बचाव में हथियार उठाना तो दूर लाठी तक नहीं चला सके। यदि वे ऐसा करते तो आला अधिकारियों और केन्द्र सरकार की नीति का उल्लंघन माना जाता।
कारगिल युद्ध से शहीद हो रहे हैं जवान
आंकड़ों के मुताबिक कारगिल युद्ध से 2013 तक देश की सीमा पर 4572, जबकि 2005 से लेकर 2013 तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 414 जवान शहीद हुए हैं।
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