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गत 4 मई को कोलकाता में नवम् आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला आयोजित हुई। श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आयोजित इस व्याख्यानमाला की विषय-वस्तु 'बनते-बिखरते सम्बंधों के नाटककार मोहन राकेश' पर केन्द्रित थी। इसकी मुख्य वक्ता थीं नाट्य शोध संस्थान 'अनामिका' की निदेशिका डॉ. प्रतिभा अग्रवाल। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कुछ सम्बंध ऐसे होते हैं,जिन्हें व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है। विष्णुकान्त जी के साथ मेरा ऐसा ही सम्बंध था। उनकी आत्मीयता,बड़े भाई जैसा उनका स्नेह,सद्भाव सदैव आश्वस्ति की अनुभूति कराता रहा है। साहित्यिक और सामाजिक क्षेत्रों में उनकी सक्रियता और सान्निध्य हम जैसों के लिए प्रेरक और उत्साहवर्धक रहा है। नाटककार मोहन राकेश की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके नाटकों में स्त्री-पुरुष सम्बंधों की टकराहट तथा परिवार के बनते-बिखरते रिश्तों की संवेदनापूर्ण व्याख्या हुई है। अध्यक्षीय उद्बोधन में 'अनामिका' के अध्यक्ष श्री विमल लाठ ने कहा कि आचार्य शास्त्री ने साहित्य के क्षेत्र में उन्हें अंगुली पकड़कर चलना सिखाया है। कार्यक्रम की शुरुआत श्री सत्यनारायण तिवाड़ी की राम वन्दना से हुई। मंच संचालन डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन श्री जुगलकिशोर जैथलिया ने किया। मंच पर प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र और संगीतज्ञ श्री विजय सारी भी विराजमान थे।ल्ल प्रतिनिधि
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