पाञ्चजन्य के पन्नों से
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वर्ष: 8 अंक: 36 25 अप्रैल ,1955
जनसंघ विदेशी बस्तियों को स्वतन्त्र कराये बिना चैन न लेगा
दक्षिणांचल सम्मेलन में जनसंघ के अध्यक्ष डोगरा जी का भाषणह्यहमें गोवा की समस्या के संबंध में निश्चय करना है। हमारे उस वैभव और सम्मान का उपयोग जिसके होते हुए भी हमारे 5 लाख भाई, रक्त मांस के अंग दासता की श्रृंखलाओं में जकड़े रहें? वे हमारी ओर आशाभरी दृष्टि से निहार रहे हैं, किन्तु हमारे प्रधानमंत्री उनकी किंचित भी सहायता करने में स्वयं को असमर्थ अनुभव कर रहे हैं। यदि सरकार में साहस नहीं है तो वह जनता को आगे बढ़ने दे और इस समस्या को सुलझाने दे। हमें यह भय है कि जैसे-जैसे विलंब होता जाएगा, यह समस्या गंभीर रूप धारण करती जाएगी और हो सकता है कि विश्व युद्ध के आधार के रूप में भी परिणत हो जाए। अत: जिस रूप में सरदार पटेल ने हैदराबाद की समस्या सुलझाई थी, उसी रूप में गोवा की समस्या भी सुलझाई जाए। कुछ भी हो भारतीय जनसंघ तब तक चैन से नहीं बैठ सकता, जब तक भारत की ईंच-ईंच भूमि विदेशी शासन से पूर्णत: मुक्त नहीं हो जाती है।ह्णकाश्मीर समस्या पर प्रकाश डालते हुए श्री प्रेमनाथ जी ने कहा ह्ययह अब कोई समस्या ही नहीं रही। जब संविधान सभा ने काश्मीर को भारत में पूर्णत: विलीन करने की घोषणा कर दी तो इस विषय पर वाद-विवाद की क्या आवश्यकता है? आवश्यकता केवल इस बात की है कि काश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों की भांति एक राज्य माना जाय।'
पं. नेहरू का नया राजनीतिक स्टंट
आज से 400 वर्ष पूर्व अपने पूर्वजों द्वारा की गई प्रतिज्ञा कि जब तक चित्तौड़ पूर्णत: स्वतंत्र नहीं हो जाता तब तक उसमें पग नहीं धरेंगे,स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू के नेतृत्व में चित्तौड़ के चार हजार गाडि़या लोहारों ने समारोह पूर्ण किया।… हम इसे एक दिखावा और स्टंट इसलिए कह रहे हैं,क्योंकि अन्यथा क्या कारण था कि भोले भाले गाडि़या लोहारों के सामने पं. नेहरू ने भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा की? क्या भारत आज ही स्वतंत्र हुआ है?… इसलिए प्रश्न उठता है कि आज ही हमारी सरकार को महाराणा प्रताप और उनके सहस्रों अनुयायियों द्वारा आज से 400 वर्ष पूर्व की गई प्रतिज्ञा की याद एकाएक कैसे हो आयी और आई भी, तो क्या कारण था कि 1947 से आज तक इन लोहारों की भीष्म प्रतिज्ञा का स्मरण सरकार को नहीं हुआ?…चित्तौड़ को जिस दासता से मुक्त करने के लिए उसके स्वतंत्र होने तक उसकी भूमि में पग न धरने, खटिया पर न सोने और खानाबदोश जीवन बिताने की घोर प्रतिज्ञा की गई थी,उस दासता से क्या चित्तौड़ वस्तुत:मुक्त हो गया है?
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