जनादेश की कसौटी पर वामदल
July 16, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

जनादेश की कसौटी पर वामदल

by
May 3, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 03 May 2014 16:08:19

यह गुपचुप क्या पक रहा है वामपंथियों और के जरीवाल के बीच ?

-शिवानन्द द्विवेदी-

वामपंथ की राजनीति एवं उनके दलीय संगठनात्मक ढाँचे का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन करने के पश्चात यही निष्कर्ष निकलता है कि दुनिया के कमोबेश सभी लोकतांत्रिक देशों की जनता ने वामपंथी दलों एवं उनकी विचारधारा को लोकतंत्र के अनुकूल नहीं मानते हुए, सिरे से नकार दिया है। भारतीय लोकतंत्र में भी आज वामपंथी दलों का जनप्रतिनिधित्व और जनादेश में कितनी कम भागीदारी है ये किसी से छुपा नहीं है। जनादेश के पैमाने पर बुरी तरह पिट चुकी वामपंथी दलों की राजनीति का प्रमाण यही है कि जहां उन्हें केरल,पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है वहीं उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों में आज कोई उनका नामलेवा नहीं है। भारत के सभी पाँच-छ: राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के बीच वामदलों की स्थिति बेहद कमजोर नजर आती है। भारतीय बहुदलीय लोकतंत्र में इतनी बुरी स्थिति में होने के बावजूद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी लोकतांत्रिक देशांे के बीच सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी है।
अगर पूरी लोकतांत्रिक एवं गैरलोकतांत्रिक देशो को मिलाकर पूरी दुनिया की बात करें तो माकपा से बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ और सिर्फ चाइना की कम्युनिस्ट पार्टी है। परस्पर विरोधाभाष भरा ये तथ्य दुनिया के तमाम वामपंथी दलों की दुर्दशा का साफ चित्रण करता है। लोकतांत्रिक देशों के बीच दुनिया की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी माकपा की लोकसभा की कुल 543 सीटों में से महज 16 सीटें हैं। वहीँ भारत की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा की लोकसभा में महज 4 सीटें हैं। बड़ा सवाल ये है कि विचारधारा के नाम पर आकर्षक लफ्फाजियों की पोथी लेकर ढोने वाले इन वामपंथी राजनीतिक दलों की स्थिति लोकतांत्रिक परिवेशों में इतनी निरीह क्यों हो जाती है? आखिर वो क्या कारण हैं कि दुनिया के किसी एक लोकतंत्र ने इनको अथवा इनकी विचारधारा को जनादेश के कटघरे में सही नहीं माना और नकार दिया है ?
रूसी क्रान्ति के प्रभाव स्वरूप भारत में भी सन1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का उद्भव हुआ। आजादी के आंदोलनों एवं साहित्यिक संस्थानों आदि में व्यापक हस्तक्षेप रखने वाले कम्युनिस्ट कई स्तरों पर सक्रिय भी रहे। आजादी के बाद सन 1952 के प्रथम आम चुनावों में कुल 17 लोकसभा सीटों पर वामपंथियों ने जीत दर्ज कराई हालांकि तब जनसंघ आदि की सदन में उपस्थिति गिनती की ही थी। लेकिन जब 1962 में चीन युद्घ शुरू हुआ तब भाकपा के अन्दर ही दो फाड़ हो गए। इनमे एक धड़ा था जो चीन के आक्रमण का समर्थन कर रहा था तो वही दूसरा धड़ा इसका विरोध कर रहा था। विदेशी ताकतों के आक्रमण के समय कम्युनिस्टों के इस रवैये ने कहीं न कहीं जनता के मन में इनके प्रति अविश्वास पैदा किया। खैर, आपसी मतभेद के परिणामस्वरूप कम्युनिस्ट दल भाकपा का विघटन हुआ और माकपा का जन्म हुआ। चीन के आक्रमण का समर्थन करना आजादी के बाद कम्युनिस्टों की पहली और बड़ी भूल थी। इसके बाद सीपीआई ने दूसरी भूल ये की कि जब पूरा देश और खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इंदिरा गाँधी के द्वारा लगाये गए आपातकाल का पुरजोर विरोध कर रहा था तब देश की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा इंदिरा के समर्थन में खड़ी मलाई खा रही थी।
हालांकि तब सीपीएम की स्थिति भी बहुत उग्र नहीं थी लेकिन वो आपातकाल के विरोध में थे। भाकपा की उन भूलों में सहभागी न बनने की वजह से ही आज माकपा की स्थिति भाकपा से कुछ बेहतर है। कहीं न कहीं वामदलों के प्रति जनता के विश्वास में आई कमी की परिणति ही थी उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे मजदूर बहुल बड़े राज्यों में धीरे-धीरे वाम राजनीति का अवसान होता गया। विश्व के मजदूरों को एक करने का आह्वान करने वाले कब खुद सत्रह फाड़ हो गए पता ही नहीं चला। एक दौर वो भी था जब यूपी एवं बिहार की विधानसभाओं में वामपंथी दल कांग्रेस-नीत सरकारों से सीधे लोहा लेते थे लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभार एवं राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति वामदलों के नीति विहीन अडियल रवैये ने इन राज्यों से उनका सूपड़ा साफ कर दिया।
देश में सोलहवीं लोकसभा के गठन की तैयारी जनादेश के माध्यम से हो रही है तो जरूरी है कि आज फिर वामदलों की शातिर चालों पर बारीक नजर रखी जाय। इतना तो तय है कि जनादेश की कसौटी पर क्षत-विक्षत हो चुके वामदलों की राजनीति आज हाशिए पर है एवं इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वर्तमान लोकसभा चुनाव मोदी बनाम अन्य हो चुका है। मोदी विरोध की राजनीति के नाम पर न जाने कितनी विचारधाराओं का गला इस चुनाव में घोंटा जा रहा हैै। मार्क्स की किताब में लिखे मजदूर एकजुटता की उन चार लाइनों और साम्यवादी घोषणा-पत्र को रटे पढाकू पट्टूओं ने मार्क्स के मजदूर को मोदी विरोध के नाम पर बनारस में घुटनों के बल ला दिया है। अगर आप बनारस से वाकिफ हों तो जाकर देखिये कि वहां कैसे वामपंथ रेंग रहा है। किसी जमाने में चीन के आक्रमण और इंदिरा के आपातकाल में मार्क्सवाद का भविष्य तलाशने वाले आजकल उस राजनीतिक दल में मार्क्सवाद तलाश रहे हैं जिसके अपने नवेले दल की स्थिति भानुमती के कुनबे जैसी है। जी हाँ, बनारस में सारे वामपंथी दल न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत एक उम्मीदवार तो नहीं उतार सके हैं लेकिन घुटनों के बल चलकर केजरीवाल का समर्थन करने बनारस पहंुच गए हैं। क्या वैचारिक स्तर पर कोई एक कारण बनता है कि कोई वामपंथी केजरीवाल का समर्थन करे? केजरीवाल के समर्थन के पीछे किसी वामपंथी विचारधारा का असर भी है अथवा केवल मोदी को रोकने की बेबसी में माक्र्सवाद की बलि चढाई जा रही है।
मार्क्स धर्म को मजदूरों की एकजुटता के लिए अफीम कहते हैं और वामपंथी हैं कि बनारस जाकर सुबह गंगा में चन्दन टीका से गंगा स्नान और शाम आरती-अजान से कर रहे हैं। वामपंथी बुद्घिजीवियों ने क्या केजरीवाल को अपना समर्थन देने से पहले यह जानने की कोशिश की। इसमें कोई संदेह नहीं कि बनारस में वामपंथी समर्थन का यह अद्भुत नजारा मार्क्स को भी सालता होगा। अगर ये सच है तो ठीक ही कहा था मार्क्स ने कि वो दुनिया के अंतिम माक्सवादी हैं। मोदी को रोकने की बेबसी कहें या अवसरवादी चरित्र की मजबूरी कि वर्तमान में वामपंथ के इकलौते खेवनहार के तौर पर केजरीवाल का उभार हो रहा है। कहीं न कहीं विचारधारा और राजनीति की कसौटी पर भविष्य में जब भी वामपंथियों द्वारा केजरीवाल को दिये इस समर्थन को कस कर देखा जाएगा, तब एकबार फिर वामपंथियों का यह समर्थन उनकी भारी भूल के रूप में साबित होगा। विचारधारा के नाम पर तकोंर् की लफ्फाजी करने वाले वामदल अक्सर जब खुलकर आते हैं तो अवसरवादी ही दिखते हैं। ल्ल

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ए जयशंकर, भारत के विदेश मंत्री

पाकिस्तान ने भारत के 3 राफेल विमान मार गिराए, जानें क्या है एस जयशंकर के वायरल वीडियो की सच्चाई

Uttarakhand court sentenced 20 years of imprisonment to Love jihad criminal

जालंधर : मिशनरी स्कूल में बच्ची का यौन शोषण, तोबियस मसीह को 20 साल की कैद

पिथौरागढ़ में सड़क हादसा : 8 की मौत 5 घायल, सीएम धामी ने जताया दुःख

अमृतसर : स्वर्ण मंदिर को लगातार दूसरे दिन RDX से उड़ाने की धमकी, SGPC ने की कार्रवाई मांगी

राहुल गांधी ने किया आत्मसमर्पण, जमानत पर हुए रिहा

लखनऊ : अंतरिक्ष से लौटा लखनऊ का लाल, सीएम योगी ने जताया हर्ष

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

शुभांशु की ऐतिहासिक यात्रा और भारत की अंतरिक्ष रणनीति का नया युग : ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर भारत

सीएम धामी का पर्यटन से रोजगार पर फोकस, कहा- ‘मुझे पर्यटन में रोजगार की बढ़ती संख्या चाहिए’

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies